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________________ व्यवहार का अर्थ एव परिभाषा ७०५ ऋग्वेद में परमोच्च या सर्वातिशायी नियम या व्यवहार (कानून) अथवा अखिल ब्रह्माण्ड की व्यवस्था का द्योतक है, जिसके द्वारा अखिल विश्व और यहां तक कि देवगण भी शासित होते हैं और जो यज्ञों से अविच्छेद्य रूप से संबन्धित है (देखिये ऋग्वेद १।६८।२; १।१०५।१२; १।१३६।२; १।१४२१७; १११६४।११, २०२८।४; ४।२३।८-१०; जहां ऋत दस बार आया है एवं १०।१६०1१) । इस विषय में विशेष अध्ययन के लिए देखिये श्री बेरोल्झीमीर कृत पुस्तक 'दी वर्ल्ड स लीगल फिलासफीज़' (जास्ट्रो द्वारा अनूदित, न्यूयार्क, १६२६) एवं प्रो० वी० एम० आप्टे का ऋत सम्बन्धी लेख (भण्डारकर ओरिएण्टल रिसर्च इंस्टीट्यूट की रजतजयन्ती जिल्द, पृ० ५५-६०)। ____ व्यवहार' शब्द सूत्रों एवं स्मृतियों द्वारा कई अर्थों में प्रयुक्त हुआ है। इसका एक अर्थ है लेन-देन (उद्योगपर्व ३७।३०, आपस्तम्बधर्म सुन्न २।७।१६।१७, १।६।२०।११ एवं १६)। इसका एक अन्य अर्थ है झगड़ा या मुकदमा (अर्थ, कार्य, व्यवहारपद) जिसकी ओर संकेत हमें शान्तिपर्व (६६।२८), मनु (८।१), वसिष्ठ० (१६।१) याज्ञ० (२।१), विष्णुधर्मसूत्र (३।७२), नारद (१।१) एवं शुक्रनीतिसार (४।५।५) में मिलता है। इसका तीसरा अर्थ है लेन-देन में प्रविष्ट होने से सम्बन्धित न्याय्य (कानूनी) सामर्थ्य (गौतम १०।४८, वसिष्ठ० १६।८, शंखलिखित)।६ इसका चौथा अर्थ है 'किसी विषय को तय करने का साधन' (गौतम १०।१६, यथा--तस्य व्यवहारो वेदो धर्मशास्त्राणि अंगानि, आदि-आदि) । इस अध्याय में 'व्यवहार' शब्द को हम मुकदमा या कचहरी में गये हुएशगड़े एवं न्याय सम्बन्धी विधि के अर्थ में प्रयुक्त करेंगे। यह तात्पर्य बहुत प्राचीन भी है । अशोक के दिल्ली-तोपरा स्तम्भ के प्रथम अभिलेख में 'वियोहालसमता' (व्यवहार-समता) तथा खारवेल के हाथीगुम्फा शिलालेख (एपी० इण्डि०, जिल्द २२, पृ० ७६) में 'व्यवहार-विधि' शब्द आये है। महावग्ग (१।४०।३) एवं चुल्लवग्ग (६।४।६) में 'बोहारिकमहामत्त' शब्द आया है । मध्य काल के निबन्धों में कानून एवं कानून-विधि (लॉ एवं प्रोसीडयोर) कभी-कभी एक ही ग्रन्थ में लिखित हैं, यथा--वरदराजकृत व्यवहारनिर्णय तथा एक अन्य पुस्तक व्यवहारमयूख में। कहीं-कहीं व्यवहार की विभिन्न बातें (विवाद आदि) एक ग्रन्थ में तथा न्याय-विधि दूसरे ग्रन्थ में वर्णित हैं। किसी-किसी पुस्तक में 'व्यवहार' शब्द केवल न्याय्य विधि (जुडीशियल प्रोसीड्योर) के लिए प्रयुक्त हुआ है, यथा--जीमूतवाहनकृत व्यवहारमातृका एव रघुनन्दनकृत व्यवहारतत्व । विवाद शब्द, जिसका अर्थ है झगड़ा (मुक़दमा), कभी-कभी व्यवहार या व्यवहार-विधि के अर्थ में प्रयुक्त होता रहा है। आपस्तम्बधर्मसूत्र (२।११।२६।५) एवं नारद० (१।५) में 'विवाद' का अर्थ है मुक़दमा (लॉ-सूट) । मिसरू मिश्र के विवादचन्द्र एवं कमलाकार के विवादताण्डव में व्यवहार एवं न्याय्य विधि (लॉ एवं जुडिशियल प्रोसीड्योर) दोनों का वर्णन हुआ है। याज्ञवल्क्य (२।८ एवं ३०५) ने संभवतः विवाद (लॉ-सूट) एवं व्यवहार (जुडिशियल प्रोसीड्योर) में भेद किया है। कतिपय स्मृतियों एवं टीकाकारों ने 'व्यवहार' शब्द की परिभाषा की है। कात्यायन ने दो परिभाषाएं की हैं, जिनमें एक व्युत्पत्ति के आधार पर है और विधि की ओर प्रमुख रूप से संकेत करती है तथा दूसरी परम्परा के आधार पर झगड़े या मुक़दमे या विवाद से सम्बन्धित है। "उपसर्ग वि का प्रयोग 'बहुत' के अर्थ में, अव का 'सन्देह' के अर्थ में तथा हार का 'हटाने' के अर्थ में प्रयोग हुआ है; अर्थात् 'व्यवहार' नाम इसलिए पड़ा क्योंकि यह बहुत से सन्देहों को हिसकाः । लोभषाभिभूतानां व्यवहारः प्रकीर्तितः ॥ वृहस्पति० (स्मृतिचन्द्रिका, अध्याय २, पृ० १ एवं व्यवहारप्रकाश, पृ. ४ में उद्धृत)। ६. रक्षेद् राजा बालानां धनान्यप्राप्तव्यवहाराणाम् आदि-आदि-शंखलिखित (चण्डेश्वर का विवादरत्नाकर, पृ० ५६६ में उद्धृत)। १७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002790
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1973
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size12 MB
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