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________________ याज्ञवल्क्य स्मृति ५१ से की जाय तो यह झलक उठता है कि याज्ञवल्क्यस्मृति में ८०० ई० से लेकर ११०० ई० तक कुछ शाब्दिक परिवर्तन अवश्य हुए, किन्तु मुख्य स्मृति सन् ७०० ई० से अब तक ज्यों-की-त्यों चली आयी है । याज्ञवल्क्यस्मृति मनुस्मृति से अधिक सुगठित है । याज्ञवल्क्य ने सम्पूर्ण स्मृति को तीन भागों में विभाजित कर विषयों को उनके उचित स्थान पर रखा है, व्यर्थ का पुनरुक्ति- दोष नहीं आने दिया है। दोनों स्मृतियों के विषय अधिकांश एक ही हैं, किन्तु याज्ञवल्क्यस्मृति अपेक्षाकृत संक्षिप्त है। इसी से मनुस्मृति के २७०० श्लोकों के स्थान पर याज्ञवल्क्यस्मृति में केवल लगभग एक हजार श्लोक हैं। मनु के दो श्लोक याज्ञवल्क्य के एक श्लोक के बराबर हैं। लगता है, जब याज्ञवल्क्य अपनी स्मृति का प्रणयन कर रहे थे तो मनुस्मृति की प्रति उनके सामने थी, क्योंकि दोनों स्मृतियों में कहीं-कहीं शब्द साम्य भी पाया जाता है । सम्मुर्ण याज्ञवल्क्यस्मृति अनुष्टुप् छन्द में लिखी हुई है । यद्यपि इसके प्रणेता का उद्देश्य बातों को बहुत थोड़े में कहना था, तथापि कहीं भी अवोध्यता नहीं टपकती । शैली सरल एवं धाराप्रवाह है। पाणिनि के नियमों का पालन भरसक हुआ है, किन्तु कहीं-कहीं अशुद्धता आ ही गयी है, यथा पूज्य (१-२९३) एवं 'दूय' ( २- २९६ ) | किन्तु विश्वरूप और अपरार्क ने इन दोषों से अपनी टीकाओं को मुक्त कर रखा है। मिताक्षरा के अनुसार याज्ञवल्क्य ने अपने शब्द सामश्रवा एवं अन्य ऋषियों के प्रति सम्बोधित किये हैं । कहीं-कहीं ऋषि लोग वी में लेखक को टोक देते हैं । यह कहा जाता है कि ऋषि लोगों ने मिथिला में जाकर याज्ञवल्क्य से वर्णों, आश्रमों तथा अन्य बातों के धर्मो की शिक्षा देने के लिए प्रार्थना की। संक्षेप में इस स्मृति की विवरण- सूची निम्न है, काण्ड १चौदह वाएँ धर्म के बीस विश्लेषक; धर्मोपादान; परिषद्-गठन; गर्भाधान से लेकर विवाह तक के संस्कार; उपनयन, इसका समय एवं अन्य बातें, ब्रह्मचारी के आह्निक कर्तव्य; पढ़ाये जाने योग्य व्यक्ति; ब्रह्मचारी के लिए वर्जित पदार्थ एवं कर्म विद्यार्थी - काल; विवाह ; विवाहयोग्य कन्या की पात्रता; सपिण्ड सम्बन्ध की सीमा, अन्तर्जातीय विवाह; आठों प्रकार के विवाह और उनसे प्राप्त आध्यात्मिक लाभ; विवाहाभिभावक ; क्षेत्रज पुत्र; पत्नी के रहते विवाह के कारण पत्नी- कर्तव्य; प्रमुख एवं गौण जातियाँ; गृहस्थ- कर्तव्य तथा "पवित्र गहाग्नि-रक्षण, पंच महाह्निक यज्ञ; अतिथि सत्कार; मधुपर्क; अग्रगमन के कारण; मार्ग-नियम; चारों वर्णों के विशेषाधिकार एवं कर्तव्य; सबके लिए आचार के दस सिद्धान्त; गृहस्थ- जीविका-वृत्ति; पूत वैदिक यज्ञ; स्नातक कर्तव्य; अनध्याय; भक्ष्याभक्ष्य के नियम ; मांस-प्रयोग-नियम; कतिपय पदार्थों का पवित्रीकरण, यथा -- धातु एवं लकड़ी के बरतन; दान; दान पाने के पात्र कौन दान को ग्रहण करे; दान-पुरस्कार; गोदान; अन्य वस्तु-दान; ज्ञान सबसे बड़ा दान श्राद्ध, इसका उचित समय; उचित व्यक्ति जो श्राद्ध में बुलाये जायें। इसके लिए अयोग्य व्यक्ति; निमन्त्रित ब्राह्मणों की संख्या ; श्राद्ध विधि; श्राद्ध प्रकार, यथा पार्वण, वृद्धि, एकोद्दिष्ट सपिण्डीकरण; श्राद्ध में कौन सा मांस दिया जाय श्राद्ध करने का पुरस्कार; विनायक एवं नव ग्रहों की शान्ति के लिए क्रिया-संस्कार; राजधर्म; राजा के गुण; मन्त्री; ुरोहितं; राज्यानुशासन; रक्षार्थ राजा - कृर्तव्य; न्याय - शासन; कर एवं व्यय कतिपय कार्यों का दिन निर्णय; मण्डल - रचना; चार साधन; षट् गण; भाग्य एवं मानवीय उद्योग; दण्ड में पक्षपातरहितता; तौल-बटखरे की इकाइयाँ; अर्थ - दण्ड की श्रेणियां | खण्ड २ -- न्यायभवन ( न्यायालय) के सदस्य ; न्यायाधीश; व्यवहारपद की परिभाषा; कार्य - विधि; अभियोग; उत्तर, जमानत लेना; झूठे दल या साक्षी पर अभियोग; धर्मशास्त्र एवं अर्थशास्त्र का परस्पर- विरोध; उपपत्ति; लेखप्रमाण, साक्षियों एवं स्वत्व के साधन; स्वत्व एवं अधिकार; न्यायालय के प्रकार, बल-प्रयोग; धोखाधड़ी, अप्राप्तव्यवहारता एवं अनिष्पत्ति के अन्य कारण; सामानों की प्राप्ति कोष ऋण ब्याज Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002789
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1992
Total Pages614
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size20 MB
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