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________________ धर्मशास्त्र का इतिहास 'अयन' का अर्थ है खाना। आपस्तम्ब (६।२९।६) के अनुसार इसमें अग्नि प्रज्वलित करने वाले १७ मन्त्र (सामिधेनी) होते हैं। इस कृत्य के देव हैं इन्द्र एवं अग्नि (आप० ६।२९।१० एवं आश्व० २।९।१६ के मत से ऐन्द्राग्न या आग्नेन्द्र) तथा आहुतियाँ हैं बारह कपालों वाली रोटी, वैश्वदेवों के लिए दूध या जल में पकाया हुआ चरु, एक कपाल वाली रोटी (द्यावापृथिवी के लिए) तथा सोम के लिए चरु (यदि सावाँ के अन्न के विषय में कृत्य हो रहा हो तो)। आग्रयण के सम्बन्ध की अन्य बातें विस्तार भय से छोड़ दी जा रही हैं। दक्षिणा के विषय में कई मत हैं। कात्यायन (४।६।१८) के मत से रेशमी वस्त्र, मधुपर्क (मधु, दही एवं घी) या वर्षा ऋतु में यजमान द्वारा पहना गया वस्त्र दिया जा सकता है। आपस्तम्ब (६।३०१७) के मत से माघ की पूर्णिमा के पूर्व उत्पन्न हुए बछड़ों में प्रथम बछड़ा, और इष्टि वाला वस्त्र (सावाँ अन्न के साथ) दिया जा सकता है। जैमिनि (१०॥३॥३४-३८, १२।२।३४-३७) के मत से रेशमी वस्त्र, बछड़ा तथा दक्षिणाग्नि पर पकाया हुआ चावल दिया जा सकता है। आग्रयण कृत्य श्रौत यज्ञ का ही एक रूप है जो तीनों वैदिक अग्नियों को प्रज्वलित करनेवालों के लिए मान्य है। काम्येष्टि श्रौतसूत्रों में बहुत-सी ऐसी इष्टियों के सम्पादन के नियम पाये जाते हैं जो विशिष्ट घटनाओं, अवसरों या वाञ्छित वस्तुओं की प्राप्ति के लिए की जाती हैं। आश्वलायन (२।१०-१४), आपस्तम्ब (१९।१८-२७) तथा अन्य श्रौतसूत्रों ने बहुत-सी इष्टियों के नाम लिये हैं, यथा आयुष्कामेष्टि (लम्बी आयु की अभिकांक्षा रखने वाले के लिए), स्वस्स्ययनी (सुरक्षापूर्ण यात्रा के लिए), पुत्रकामेष्टि (उसके लिए जो पुत्र या दत्तक की अभिलाषा करता है, आश्वलायन २।१०।८-९), लोकेष्टि, महावराजी (आश्वलायन २०११।१-४) या मित्रविन्दा (कात्यायन ५।१२, उसके लिए जो सम्पत्ति, राज्य, मित्रों एवं लम्बी आयु की अभिलाषा रखता है। इसमें १० देवों की पूजा की जाती है), संज्ञानी (समझौते के लिए), कारीरीष्टि (उसके लिए जो वर्षा चाहता है, आश्व० २।१३।१-१३, आप० १९।२५।१६), तुरायण (आश्व० २।१४।४-६), दाक्षायण (आश्व० २११४१७-१०)। इन इष्टियों का वर्णन स्थानाभाव से यहाँ नहीं किया जा रहा है। ६. अने अयनं भक्षणं येन कर्मणा तदारयणम् । प्रथमद्वितीययोर्हस्वदीर्घत्वव्यत्ययः । आश्वलायन (२।९।१) की टीका। ७. कालिकापुराण (व्यवहारमयूख, पृ० ११४) के मत से पांच वर्ष वाले या उससे बड़े पुत्र को मोद लेने वाला पुष्टि करता है। कारीरीष्टि में यजमान काले अञ्चल वाले काले वस्त्र को धारण करता है (तैत्तिरीय संहिता, २।४।७-१०) । मित्रविन्दा के लिए देखिए शतपथब्राह्मण १।४।३ । दाक्षायण के लिए देखिए शतपथ ब्राह्मण (२।४।४, ११२।१३) जिसके अनुसार यह इष्टि केवल १५ वर्षों तक की जाती है, क्योंकि इसमें प्रति मास दो अमावस्याओं एवं दो पूर्णिमाओं को आहुतियां दी जाती हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002789
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1992
Total Pages614
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size20 MB
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