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अध्याय ३१
चातुर्मास्य ( ऋतु-सम्बन्धी यज्ञ )
आश्वलायन ( २/१४११ ) के मतानुसार इष्ट्ययन के अन्तर्गत वातुर्मास्य, तुरायण, दाक्षायण तथा अन्य इष्टियां आ जाती हैं। चातुर्मास्य सीन हैं, यथा- वैश्वदेव, वरुणप्रघास एवं साकमेष; किन्तु कुछ लेखकों ने शुनासीरीय नामक एक चौथा चातुर्मास्य मी सम्मिलित कर लिया है। इनमें प्रत्येक चातुर्मास्य को पर्व (अंग या संधि) कहा जाता है । इनमें से प्रत्येक प्रति चौथे मास के अन्त में किया जाता है अतः इन्हें चातुर्मास्य संज्ञा मिली है। ये क्रम से फाल्गुन
चैत्र, आषाढ़ तथा कार्तिक की पूर्णमासी को या पूर्णमासी के पाँचवें दिन या साकमेघ के दो या तीन दिन पूर्व किये जाते हैं। इनसे तीन ऋतुओं यथा वसन्त, वर्षा एवं हेमन्त के आगमन का निर्देश मिलता है। शुनासीरीय के लिए कोई निश्चित तिथि नहीं है। यह साकमेध के उपरान्त या इसके दो, तीन या चार दिनों या एक या चार मासों के उपरान्त सम्पादित किया जा सकता है ( देखिए कात्यायन ५।११।१-२ और इसकी टीका) । यदि वैश्वदेव पर्व चैत्र की पूर्णमासी को सम्पादित हो तो वरणप्रघास एवं साकमेध क्रम से श्रावण एवं मार्गशीर्ष की पूर्णिमाओं के अवसर पर होते हैं।
वैश्वदेव
आश्वलायन के मत से फाल्गुन की पूर्णिमा के एक दिन पूर्व चातुर्मास्य के निमित्त वैश्वानर (अग्नि) एवं पर्जन्य के लिए एक इष्टि करनी चाहिए। कात्यायन ( ५।१।२ ) ने यहाँ विकल्प किया है कि उस दिन व्यक्ति यह इष्टि करे या अन्वारम्भणीया इष्टि करे । पूर्णिमा के दिन प्रातः काल वैश्वदेव किया जाता है और तब पूर्णमास इष्टि की जाती है । कात्यायन (५1१ ) की टीका के मत से वैश्वदेव-इष्टि पूर्णिमा के एक दिन उपरान्त प्रातःकाल की जाती है और तभी फाल्गुन की पूर्ण मास इष्टि की विधि उचित मानी जाती है। चातुर्मास्य के सभी पर्वों में यजमान के लिए कुछ व्रत या कृत्य करना आवश्यक होता है, यथा सिर-मुण्डन या दाढ़ी बनदाना, पृथिवी पर सोना, मधु सेवन न करना; मांस, नमक, मिथुन, शरीरालंकरण आदि से दूर रहना आदि । मुंछ एवं दाढ़ी बनवाने के विषय में विकल्प भी पाया जाता है, यथाया तो व्यक्ति प्रथम दिन तथा अन्तिम दिन या चारों अवसरों पर ऐसा कर सकता है। सभी चातुर्मास्यों में पाँच कृत्य आवश्यक माने गये हैं, यथा अग्नि के लिए आठ घट-शकलों (कपालों) का एक पुरोडाश (रोटी), सोम के लिए पकाया हुआ चावल अर्थात् भात, सविता ( उपांश) के लिए बारह या आठ कपालों वाला एक पुरोडाश, सरस्वती के लिए चरु तथा पूषा के लिए चावल के आटे का चरु । चातुर्मास्यों के सम्पादन से यजमान को स्वर्ग मिलता है। ये यज्ञ जीवन भर या केवल एक वर्ष के लिए किये जा सकते हैं।
वैश्वानर एवं पर्जन्य की आरम्भिक इष्टि में वैश्वानर के लिए बारह कपालों वाली रोटी तथा पर्जन्य के लिए
१. देखिए तैत्तिरीय संहिता १२८१२-७, तैत्तिरीय ब्राह्मण ११४१९-१० एवं १।५।५-६, शतपथ ब्राह्मण २।५।१-३ एवं ९५/२, आपस्तम्ब ८५ कात्यायन ५, आश्वलायन २।१५-२०, बौधायन ५ ।
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