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________________ दान के प्रकार ४६७० हत्या करने, व्यभिचार करने (अगम्यागमन, यथा मातृगमन, स्वसृगमन आदि वर्जित गमन) से उत्पन्न पापों से छुटकारा हो जाता है। धेनुदान धेनु- संख्या-गोदान की अनुकृति मे कुछ अन्य पदार्थों का दान किया जाता है। उन पदार्थों को धेनु कहा जाता है। मत्स्यपुराण (८२।१७-२२) ने दस धेनुओं के नाम लिये हैं, यथा-गुड़, घृत, तिल, जल, क्षीर, मधु, शर्करा, दधि, रस ( अन्य तरल पदार्थ) एवं गोधेन ( स्वयं गाय ) । इस पुराण ने गुड़धेनु का वर्णन करते हुए लिखा है कि तरल धेनुओं को घड़ों में रखना चाहिए तथा अन्य धेनुओं को राशि के रूप में रखना चाहिए। सबके दान की विधि एक-सी है। कुछ लोगों ने अन्य धेनुओं के नाम भी लिये हैं, यथा-सुवर्णधेनु, नवनीतधेनु ( मक्खन की गाय ) एवं रत्नधेनु । अग्निपुराण (२१०।११-१२ ) ने भी दस धेनुओं के नाम लिये हैं। अनुशासनपर्व ( ७१ ३९-४१ ) में घृत, तिल एवं जलं नामक धेनुओं का वर्णन है। वराहपुराण (अध्याय ९९-११०) ने १२ धेनुओं का विस्तार के साथ वर्णन किया है। इसकी सूची में मत्स्यपुराण के घृत एवं गोधेनु नहीं हैं तथा नवनीत, लवण, कार्पास ( कपास - रुई) एवं धान्य (अनाज) नाम नये जोड़े गये हैं । विधि - चार हाथ लम्बा काला मृगचर्म गोबर से लिपी भूमि पर बिछा दिया जाता है। जिस स्थल पर मृगचर्म बिछा रहता है उस पर कुश, जिनकी नोकें पूर्वाभिमुख होती हैं, बिछे रहते हैं। यह रूप गाय का प्रतीक माना जाता है । उसी की भाँति बिछा हुआ एक छोटा सा मृगचर्म बछड़े का प्रतीक माना जाता है। यदि यह गुड़धेनु है, तो यह २ या ४ मारों की तथा बछड़ा इसके चौथाई भाग का बना होता है। गाय के विभिन्न भागों के प्रतीक के रूप में बहुत से पदार्थ, यथा— शंख, ईख के टुकड़े, मोती, चमर, सीपी आदि रखे जाते हैं और धूप-दीप से पूजा करके पौराणिक मन्त्रों से गौ का आह्वान किया जाता है। इसके उपरान्त वस्तुओं का दान कर दिया जाता है। हेमाद्रि (दानखण्ड, पृ० ४०१ ), दानमयूख ( पृ० १७२ -१८४ ) ने अन्य विस्तार भी दिये हैं, जिन्हें हम स्थानामाव के कारण यहाँ नहीं दे रहे हैं । वर्जित गोदान गोदान की महत्ता के फलस्वरूप दाता लोग कभी-कभी बूढ़ी एवं दुर्बल गायें भी दान में दे देते थे। कठोपनिषद् ((१११३) ने इस प्रकार के व्यवहार की भर्त्सना की है—“जो लोग केवल जल पीनेवाली एवं घास खानेवाली, किन्तु सो दूध देनेवाली या न बिआने वाली गाय का दान करते हैं, वे अनन्द (आनन्द न देनेवाले) लोक में पहुँचते हैं।" यही बात अनुशासनपर्व ( ७७/५-६ ) में पायी जाती है। अनुशासनपर्व में एक स्थल (६६।५३) पर यह भी आया है। कि ब्राह्मण को कुश, बिना बछड़े की, बाँझ, रोगी, व्यंग (जिसका कोई अंग भंग हो गया हो ) एवं थकी हुई गाय नहीं २४. ५ कृष्णल= १ माष, १६ भाष= १ सुवर्ण, ४ सुवर्ण = १ पल, १०० पल = १ तुला, २० तुला = १ भार । अपर कं ( पृ० ३०३ ) एवं अग्निपुराण (२१०।१७-१८ ) । भविष्यपुराण को उद्धृत कर हेमाद्रि ( व्रतखण्ड, पृ० ६७) एवं पराशरमाधवीय (२।१, पृ० १४१ ) मे की तोल के बटलरों की सूची यों दी है -२ पल= : - प्रसूति, २ प्रसूति कुडव, ४ कुडल प्रस्थ, ४ प्रस्थ आढक, फोन, १६ द्रोण बारी। किन्तु देश-देश में विभिन्न बटलरे चलते थे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002789
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1992
Total Pages614
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size20 MB
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