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________________ yve धर्मशास्त्र का इतिहास स्थल में शुभ गुण होते हैं। उस स्थल पर कहीं गज भर खोदकर देख लेना चाहिए और पुनः निकाला हुई मिट्टी ही भर देनी चाहिए। यदि भरते समय कुछ मिट्टी बच जाय तो स्थल को सर्वोत्तम समझना चाहिए, यदि गड्ढा मरने के लिए मिट्टी पूरी हो जाय तो उसे मध्यम तथा यदि गड्ढा भरने के लिए मिट्टी कम पड़ जाय तो उसे निकृष्ट स्थल समझकर छोड़ देना चाहिए। स्थल - पहचान की दूसरी विधि भी है। गड्ढे में पानी भरकर रात भर छोड़ देना चाहिए, यदि प्रातः काल तक पानी पाया जाय तो स्थल सर्वोत्तम, यदि मींगा रहे तो मध्यम तथा सूखा रहे तो निकृष्ट समझकर छोड़ देना चाहिए। द्विजातियों को क्रम से श्वेत, लाल एवं पीत स्थल खोजना चाहिए। स्थल वर्गाकार या चतु कार होना चाहिए और स्वामी को चाहिए कि वह उस पर जोत की एक सहस्र हराइयाँ कर दे। शमी या उदुम्बर की टहनी से तीन बार प्रदक्षिणा करके दाहिने हाथ से उस पर जल छिड़कना चाहिए और शान्तातीय स्तोत्र (ऋग्वेद ७।३५।१-१५) का पाठ करना चाहिए। यह बिना रुके तीन बार करना चाहिए तथा 'आपो हि ष्ठा' (ऋग्वेद १०|९| १-३) का पाठ करना चाहिए। इस प्रकार की एक बहुत विस्तृत विधि है। मत्स्यपुराण (अध्याय २५२ - २५७) ने वास्तुशास्त्र पर एक लम्बा विवरण उपस्थित किया है। उसके अनुसार ( २५६।१०-११) वास्तुयज्ञ पाँच बार किया जाना चाहिए; नींव रखते समय, प्रथम स्तम्भ गाड़ते समय, प्रथम द्वार के साथ चौखट खड़ी करते समय, गृह प्रवेश के समय तथा वास्तु-शान्ति के समय ( जब कोई उपद्रव आदि उठ खड़ा हो तब ) । इसके उपरान्त मत्स्यपुराण ने अन्य विधियों का विशद वर्णन उपस्थित किया है, जिसे हम यहाँ उपस्थित नहीं कर रहे हैं। आजकल गृह प्रवेश का उत्सव बड़े ठाठ-बाट से किया जाता है। ज्योतिषी से पूछकर एक शुभ दिन निश्चित किया जाता है। गृह प्रवेश की विधि बड़ी लम्बी-चौड़ी होती है। दो-एक बातें यहाँ दी जा रही हैं। एक मण्डल बनाया जाता है जिसमें ८१ वर्ग बनाये जाते हैं और उसमें आगमन के लिए ६२ देवताओं का आवाहन किया जाता है। इसके उपरान्त समिधा, तिल एवं आज्य की २८ आहुतियों के साथ ९ ग्रहों का होम किया जाता है। घर को पूर्व दिशा से आरम्भ कर तीन बार सूत्र से घेर दिया जाता है और उसके साथ रक्षोघ्न (ऋग्वेद ४।४।१-१५, या १०१८७११-२५ ) तथा पवमान (ऋग्वेद ९।१।१-१०) नामक सूक्तों का पाठ होता है। इसी प्रकार अन्य बातें विधिवत् की जाती हैं और बाजे-गाजे के साथ स्वामी अपनी पत्नी, बच्चों ब्राह्मणों के साथ हाथ जोड़कर तथा अन्य शुभ सामग्रियाँ लेकर गृह में प्रवेश करता है। इसके उपरान्त पुण्याहवाचन किया जाता है। ब्राह्मणों को भोजन कराया जाता है। इसके उपरान्त गृह स्वामी अपने मित्रों के साथ भोजन करता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002789
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1992
Total Pages614
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size20 MB
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