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________________ ४०६ धर्मशास्त्र का इतिहास १४) के मत से क्षार एवं लवण का होम नहीं होता और न घटिया अन्नों (यथा कुलत्थ आदि) का ही वैश्वदेव होता है, किन्तु यदि दरिद्रता के कारण अच्छे अन्न न मिल सकें तो जो कुछ पका हो उसी को गृ ह्याग्नि या साधारण अग्नि को उत्तर दिशा में ले जाकर उसके भस्म पर डाल देना चाहिए। स्मृत्यर्थसार (पृ० ४७) ने भी चना, मसूर आदि को वैश्वदेव-वजित माना है। भले ही उस दिन स्वयं भोजन, किसी कारण से, न करे, किन्तु वैश्वदेव तो होना ही चाहिए (अपराकं, पृ० १४५)। भोजन न रहने पर फल, कन्दमूल या केवल जल दिया जा सकता है। आपस्तम्बधर्मसूत्र (२।२।३।१ एवं ४) के मत से वैश्वदेव का अन्न आर्यों (द्विज लोगों) द्वारा स्नान करने के जाना चाहिए, किन्त आर्यों की अध्यक्षता में शद्र भी पका सकता है। मध्यकाल के निबन्धों के मत से शूद्र द्वारा भोजन बनाने की बात प्राचीन युग की है। अर्थात् यह युगान्तर का विषय है, कलियुग में वर्जित है (स्मृतिमुक्ताफल, आह्निक, पृ० ३९९) । यदि किसी दिन वैश्वदेव का भोजन किसी कारण से न बनाया जा सके तो गृहस्थ को एक रात और दिन तक उपवास करना चाहिए (गोभिलस्मृति ३।१२०) । जो व्यक्ति बिना वैश्वदेव के स्वयं खा लेता है, वह नरक में जाता है (स्मृतिचन्द्रिका, १, पृ० २१३) । हाँ, आपत्ति या कोई परेशानी या क्लेश मा जाने पर बात दूसरी है। शूद्र इन पंच महायज्ञों को बिना वैदिक या पौराणिक मन्त्रों के कर सकता है, किन्तु 'नमः' शब्द का उच्चारण कर सकता है। वह बिना पका हुआ भोजन वैश्वदेव के लिए प्रयोग में ला सकता है (देखिए याज्ञवल्क्यस्मृति १।१२१, मिताक्षरा एवं आह्निकप्रकाश, पृ० ४०१)। बलिहरण या भूतयज्ञ बलिहरण के विषय में भी प्राचीन गृह्यसूत्रों, मध्यकालिक निबन्धों एवं आधुनिक व्यवहारों में मतक्य नहीं है। आश्वलायनगृह्यसूत्र (१।२।३-११) ने इसके विषय में विस्तार किया है। निम्न देवताओं को बलि (या वैश्वदेव करते समय पक्वान्न का एक अंश) दी जाती है—देवयज्ञ वाले देवताओं, जलों, जड़ी-बूटियों, वृक्षों, घर, घरेलू देवताओं (कुलदेवताओं), जहाँ पर घर बना रहता है उस स्थल के देवताओं, इन्द्र तथा उसके अनुचरों, यम तथा उसके अनुचरों, वरुण तथा वरुण के अनुचरों, सोम तथा उसके अनुचरों (कई दिशाओं में),ब्रह्मा तथा ब्रह्मा के अनुचरों (मध्य में), विश्वेदेवों, दिन में चलने वाले सभी प्राणियों एवं उत्तर में राक्षसों को बलि दी जाती है। "पितरों को स्वा" शब्दों के साथ शेषांश दक्षिण में छोड़ दिया जाता है। बलिहरण करते समय जनेऊ को दाहिने कंधे पर रखना चाहिए। जब बलिहरण रात्रि में हो तो "दिन में चलने वाले सभी प्राणियों" के स्थान पर “रात्रि में चलने वाले सभी प्राणियों" बोलकर बलि देनी चाहिए। इस विषय को लेकर गोभिलगृह्यसूत्र (१।४।५-१५), पारस्करगृह्यसूत्र (२।९) एवं अन्य गृह्यसूत्रों तथा आपस्तम्बधर्मसूत्र (२।२।३।१५ एवं २।२।४।९) एवं गौतम (५।१०-१५) में पर्याप्त मतभेद है, जिसे हम स्थानामाव से यहाँ छोड़ रहे हैं। भूतयज्ञ में बलि अग्नि में न देकर पृथिवी पर दी जाती है। पहले मू-स्थल हाथ से स्वच्छ कर दिया जाता है, वहाँ जल छिड़क दिया जाता है, तब बलि रखकर उस पर जल छोड़ा जाता है (आपस्तम्बधर्मसूत्र २।२।३।१५)। ६. क्रोद्रवं चणकं माषं मसूरं च कुलत्यकम् । भारं च लवणं सर्व वैश्वदेवे विवर्जयेत् ॥ स्मृत्यर्पसार (पृ. ४५)। Jain Education International Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002789
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1992
Total Pages614
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size20 MB
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