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________________ ३९६ धर्मशास्त्र का इतिहास पापी गण भक्त रूप में विष्णु की शरण में आते हैं तो पवित्र हो जाते हैं । इन बातों से स्पष्ट होता है कि विष्णु के अवतार ( दस से कम या अधिक) ईसा के कई शताब्दियों पहले से प्रसिद्धि पा चुके थे। महाभारत एवं रामायण में ऐसा आया है कि दुष्टों को दण्ड देने, सज्जनों की रक्षा करने एवं धर्म के संस्थापन के लिए भगवान् इस पृथिवी पर आते हैं। " शान्तिपर्व ( ३३९।१०३-१०४) में भी दस अवतारों के नाम आये हैं, किन्तु यहाँ बुद्ध के स्थान पर नया नाम 'हंस' आया है एवं कृष्ण को सात्वत कहा गया है। पुराणों में से भी कुछ बुद्ध को अवतार रूप में नहीं घोषित करते । मार्कण्डेयपुराण (४७।७ ) ने मत्स्य, कूर्म एवं वराह को अवतार माना है और ४।५३-५४ में वराह् से आरम्भ कर नृसिंह, वामन एवं माथुर (कृष्ण) के नाम लिये हैं । मत्स्यपुराण (४७।३९-४५ ) ने १२ अवतार बताये हैं जिनमें कुछ सर्वथा भिन्न हैं, इसने यह भी लिखा है कि मृगु ने विष्णु को सात बार मनुष्य रूप में जन्म लेने का शाप दिया, क्योंकि उन्होंने अपनी स्त्री को मार डाला था । किन्तु मत्स्यपुराण ( २८५/६-७ ) में उल्लिखित अवतारों में बुद्ध का भी नाम है । इस पुराण (४७।२४० ) ने बुद्ध को नवाँ अवतार माना है। नृसिंह पुराण (अध्याय ३६), अग्निपुराण (अध्याय २ से १६) एवं वराहपुराण (४/२ ) ने प्रसिद्ध दशावतारों के नाम लिये हैं । वृद्धहारीतस्मृति (१०।१४५ - १४६ ) में दशावतारों में बुद्ध के स्थान पर हयग्रीव आया है, और यह कहा गया है कि बुद्ध की पूजा नहीं होनी चाहिए। रामायण ( अयोध्याकाण्ड, १०९ । ३४ ) में बुद्ध को चोर एवं नास्तिक कहा गया है । " किन्तु यह उक्ति क्षेपक भी हो सकती है। भागवतपुराण में अवतारों की तीन सूचियाँ हैं - ( १ ) १।३ में २२ अवतार हैं, जिनमें बुद्ध, कल्कि, व्यास, बलराम एवं कृष्ण पृथक्-पृथक् आये हैं, (२) २७० में प्रसिद्ध अवतारों के साथ कपिल, दत्तात्रेय एवं अन्य नाम हैं तथा ( ३ ) ६४८ में बुद्ध और ६१७ में बुद्ध एवं कल्कि दोनों उल्लिखित हैं। कृत्यरत्नाकर (पृ० १५९-१६० ) ने ब्रह्मपुराण को उद्धृत कर बताया है कि वैशाख शुक्ल सप्तमी को व्रत करना चाहिए, क्योंकि उसी दिन विष्णु ने बुद्ध रूप में शाक्यधर्मं चलाया; वैशाख की सप्तमी को पुष्य नक्षत्र में बुद्धप्रतिमा को शाक्यवचन के साथ स्नान कराना चाहिए और शाक्य साधुओं को वस्त्र दान करना चाहिए। इसी ग्रन्थ में बुद्ध द्वादशी की चर्चा है जब कि सोने की बुद्धप्रतिमा को स्नान कराकर ब्राह्मण को दान कर देने का उल्लेख है। सातवीं शताब्दी के एक अभिलेख में भी बुद्ध का नाम दशावतारों में वर्णित है ।" इन विवेचनों से स्पष्ट होता है कि अवतार रूप में बुद्ध की पूजा लगमग सातवीं शताब्दी से होने लगी थी। उस समय तक भी कुछ लोग उन्हें अवतार मानने को उद्यत नहीं थे, यथा कुमारिल भट्ट (लगभग ६५० से ७५० ई० ) । वराहमिहिर ने बृहत्संहिता (६०।१९) में लिखा है - "जो लोग देवताओं के १४. विष्णु के अवतारों के विषय में विस्तार से अध्ययन के लिए देखिए हाप्किन्स की 'एपिक मंयोलाजी', १९१५, पृ० २०९-२१९ एवं इण्डियन हिस्टारिकल क्वार्टरली, जिल्द ११, पृ० १२१; पढ़िए 'असतां निग्रहार्थाय धर्मसंरक्षणाय च । अवतीर्णो मनुष्याणामजायत यवुक्षये ॥ वनपर्व २७२|७१; बह्वीः संसरमाणो वं योनीवर्तामि सत्तम । धर्मसंरक्षणार्थाय धर्मसंस्थापनाय च ॥ आश्वमेधिक पर्व ५४|१३; भगवद्गीता ४।७-८; वनपर्व २७२।६१-१०, २७६।८ आदि; अयोध्याकाण्ड ११७, उत्तरकाण्ड ८ २७; हंसः कूर्मश्च मत्स्यश्च प्रादुर्भावाद् द्विजोत्तम । वराहो नारसिंहश्व वामनो राम एव च ॥ रामो दाशरथिश्चैव सात्वतः कल्किरेव च ॥ शान्तिपर्व ३३९।१०३-१०४ । १५. यथा हि चीरः स तथा हि बुद्धस्तथागतं नास्तिकमत्र विद्धि । अयोध्याकाण्ड १०९ । ३४। १६. मत्स्यः कूर्मो वराहश्च नर्रासहोऽथ वामनः । रामो रामश्च कृष्णश्च बुद्धः कल्की च ते दश ॥ वराहपुराण ४१२; देखिए डा० आर० जी० भण्डारकर कृत “वैष्णविज्म एण्ड शैविज्म", पृ० ४१।४२ । और देखिए अभिलेख के लिए आलाजिकल सर्वे आव इण्डिया ( मेम्वायर संख्या २६ ) । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002789
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1992
Total Pages614
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size20 MB
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