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________________ धर्मशास्त्र का इतिहास थे (गौतम १८३१० एवं मनु ९।९२)। इस प्रकार का सरल स्वयंवर सभी जातियों की लड़कियों के लिए सम्भव था। सावित्री ने इसी प्रकार का स्वयंवर किया था। किन्तु महाकाव्यों में वर्णित स्वयंवर बड़े विशाल पैमाने पर होते थे और वे केवल राजकुलों के लिए सम्भव थे। आदिपर्व में आया है कि क्षत्रिय लोग स्वयंवर करते थे, किन्तु कन्याओं के सम्बन्धियों को हराकर उनका अपहरण करके विवाह करना बहुत अच्छा समझते थे। भीष्म ने काशिराज की तीन कन्याओं का अपहरण करके दो (अम्बिका एवं अम्बालिका) का विवाह अपने रक्ष्य (आश्रित)विचित्रवीर्य से कर दिया (आदिपर्व १०२।१६)। सीता एवं द्रौपदी का स्वयंवर उनकी इच्छाओं पर नहीं निर्भर था, प्रत्युत वे उन्हीं को ब्याह दी गयीं जिन्होंने पूर्व निर्धारित दक्षता प्रदर्शित की। दमयन्ती के विषय में उसका स्वयंवर उसके मन का था, यद्यपि उसने बड़े विशाल रूप में सज्जित एवं एकत्र राजवरों के बीच में नल को ही चुना। कालिदास ने भी इन्दुमती के स्वयंवर का बड़ा सुन्दर दृश्य खड़ा किया है। अपने विक्रमांकदेवचरित्र (सर्ग ९) में विल्हण ने करहाट (आधुनिक करद) के शिलाहार राजा की लड़की चन्द्रलेखा (चन्दलदेवी) के ऐतिहासिक स्वयंवर का चित्रण किया है, जिसमें उसने कल्याण के चालुक्यराज विक्रमांक या आहवमल्ल को चुना था (ग्यारहवीं शताब्दी का उत्तरार्ध)। आदिपर्व (१८९।१) के मत से ऐसे स्वयंवर ब्राह्मणों के लिए अनुपयुक्त थे। कादम्बरी (पूर्व भाग, उपान्त्य अंश) मे पत्रलेखा कहती है कि स्वयंवर सभी धर्मशास्त्रों में उपदिष्ट है। आपस्तम्बधर्मसूत्र (२।५।१२।४) ने एक सामान्य वचन लिखा है कि जैसा विवाह होगा उसी प्रकार पतिपत्नी की सन्तानें होंगी, अर्थात् यदि विवाह अत्युत्तम ढंग का (यथा ब्राह्म) होगा तो सन्तान भी सच्चरित्र होगी, यदि विवाह निन्दित ढंग से होगा तो सन्तान भी निन्दित चरित्र की होगी। इसी स्वर में मनु (३।४९-४२) ने कहा है कि विवाह ब्राह्म तथा अन्य तीन प्रकार के हुए हैं तो उनसे उत्पन्न बच्चे आध्यात्मिक श्रेष्ठता के होंगे और होंगे सुन्दर, गुणी, धनी, यशस्वी एवं दीर्घायु। किन्तु अन्तिम चार प्रकार के विवाहों से उत्पन्न सन्तानें क्रूर, झूठी, वेदद्रोही एवं धर्मद्रोही होगी। सूत्रों एवं स्मृतियों ने अच्छे विवाहों से उत्पन्न बच्चों से पीढ़ियों को पवित्र बनते देखा है। आश्वलायनगृह्यसूत्र (१६) के मत से ब्राह्म, दैव, प्राजापत्य एवं आर्ष विवाहों से उत्पन्न बच्चे माता एवं पिता के कुलों की क्रम से १२, १०, ८ एवं ७ पीढ़ियों तक के पूर्वजों एवं वंशजों में पवित्रता ला देते हैं। मनु (३।३७-३८) एवं याज्ञवल्पय (१८५८-६०) ने यही बात दूसरे ढंग से उल्लिखित की है, जिसे स्थानाभाव से यहाँ नहीं दिया जा रहा है। यही बात गौतम (४।२४२७) में भी पायी जाती है। विश्वरूप एवं मेघातिथि ने अपनी टीकाओं में उपर्युक्त बातें ज्यों-की-त्यों नहीं मान ली हैं। वे केवल ब्राह्म प्रकार को उच्च दृष्टि से देखते हैं। _ विवाहों के प्रकारों के मूल के विषय में हमें वैदिक साहित्य की छानबीन करनी होगी। ऋग्वेद (१०।८५) में ब्राह्म विवाह की ओर संकेत है (कन्यादान आदि की ओर)। आसुर प्रकार (धन देकर) का संकेत ऋग्वेद (१॥ १०९।२) एवं निरुक्त (६।९) में मिलता है। ऋग्वेद (१०।२७।१२ एवं ११११९।५) में गांधर्व या स्वयंवर प्रकार की ओर भी संकेत मिलता है। ऋग्वेद (५।६१) के सिलसिले में बृहदेवता (५।५०) में श्वावाश्व की गाथा में वर्णित विवाह दैव प्रकार के आसपास पहुँच जाता है। ऐसा आया है कि आत्रेय अर्चनाना ने राजा रथवीति के यज्ञ में यज्ञ करते समय अपने पुत्र श्यावाश्व के लिए राजा की कन्या का हाथ मांगा था। आजकल ब्राह्म एवं आसुर विवाह प्रचलित है। ब्राह्म में कन्यादान होता है, किन्तु आसुर में लड़की के पिता या अभिभावकों को उनके लाभ के लिए शुल्क देना पड़ता है। गान्धर्व विवाह आजकल एक प्रकार से समाप्तप्राय है, यद्यपि कभी-कभी कुछ मुकदमे कचहरी में आ जाया करते हैं। कुछ लोगों के विचार से नयी रोशनी में पले नवयुवक एवं नवयुवतियाँ गान्धर्व विवाह की ओर उन्मुख हो रहे हैं। यदि कोई विधवा स्वयं विवाह करे तो वह गांधर्व के रूप में ग्रहण किया जा सकता है, क्योंकि इस विषय में कन्यादान नहीं होता। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002789
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1992
Total Pages614
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size20 MB
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