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________________ धर्मशास्त्र का इतिहास आपस्तम्बगृह्यसूत्र (८)१०-११) तथा गोभिल (२५) ने भी संक्षेप में यही विधि लिखी है, किन्तु उनके मन्त्र मन्त्र-पाठ वाले है । आधुनिक लोग आश्चर्य प्रकट कर सकते हैं कि संभोग के समय भी मन्त्रोच्चारण होता था । किन्तु उन्हें जानना चाहिए कि प्राचीन समय में प्रत्येक कृत्य धार्मिक समझा जाता था । आत्रेय (हिरण्यकेशिगृह्यसूत्र १/७/२५/३ ) के अनुसार जीवन भर प्रत्येक संभोग के समय मन्त्रों का उच्चारण होना चाहिए, किन्तु वादरायण के अनुसार यह केवल प्रथम संभोग तथा प्रत्येक मासिक प्रवाह के उपरान्त होना चाहिए। वैखानम ( ३९ ) ने इस कृत्य को ऋतु- संगमन कहा है ( आपस्तम्बगृह्यसूत्र एवं हिरण्यकेशिगृह्य ० ) । स्मृतियों एवं निवन्धों के कुछ विस्तारों का संक्षेप में सर्णन अपेक्षित है। मनु ( ३/४६ ) एवं याजवल्क्य - ( १/७९ ) के अनुसार गर्भधारण का स्वाभाविक समय है मासिक प्रवाह की अभिव्यक्ति के उपरान्त सोलह रातें । आपस्तम्बगृह्यसूत्र ( ९1१ ) के अनुसार मासिक प्रवाह की चौथी रात से सोलहवीं रात तक युग्मता वाली (समता वाली) रातें नर बच्चे (लड़के) के लिए उपयुक्त हैं। यही बात हारीत ने भी कही है। इन दोनों के मत से चौथी रात गर्भाधान के लिए उपयुक्त है । मनु ( ३।४७ ) एवं याज्ञवल्क्य ( १।७९ ) ने प्रथम चार रातें छोड़ दी हैं। कात्यायन, पराशर (७/१७) तथा अन्य लोगों के मत से रजस्वला चौथे दिन स्नान करके विमल होती है । लघु-आश्वलायन ( ३।१ ) के अनुसार चौथे दिन के उपरान्त रक्त के प्रथम प्रकटीकरण पर गर्भाधान संस्कार करना चाहिए। स्मृतिचन्द्रिका का निर्देश है कि प्रवाह की पूर्ण समाप्ति पर चौथा दिन उपयुक्त है। मनु (४।१२८) एवं याज्ञवल्क्य (१।७९ ) के अनुसार गर्भाधान के लिए अमावास्या एवं पूर्णमासी वाले दिनों तथा अष्टमी एवं चतुर्दशी के दिनों को छोड़ देना चाहिए। याज्ञवल्क्य ( ११८० ) ने ज्योतिष सम्वन्धी विस्तार भी दिया है, यथा मूल एवं मघा नक्षत्रों को भी छोड़ देना चाहिए। इसी प्रकार निबन्धों ने बहुत-से महीनों, तिथियों, सप्ताहों, नक्षत्रों, वस्त्र वर्णों आदि को अशुभ माना है और उनके लिए शान्ति की व्यवस्था की है। आपस्तम्बगृह्यसूत्र, मनु ( ३।४८), याज्ञवल्क्य ( १/७९ ) एवं वैखानस ( ३1९ ) ने लिखा है कि लड़के की उत्पत्ति के लिए मासिक धर्म के चौथे दिन के 'उपरान्त सम दिनों में तथा लड़की के लिए विषम दिनों में संभोग करना रजस्वला स्त्री चौथे दिन स्नानोपरान्त श्वेत वस्त्र धारण वैखानस ( ३९ ) ने लिखा है कि वह अंगराग लेप करे, पायी जाती है- “रजस्वला नारियाँ चाहिए । भारद्वाजगृह्यसूत्र ( ११२० ) में आया है कि करे, आभूषण पहने तथा योग्य ब्राह्मणों से बातें करें। किसी नारी या शूद्र से बातें न करे, पति को छोड़कर किसी अन्य को न देखे, क्योंकि स्नानोपरान्त वह जिसे देखेगी, उसी के समान उसकी मन्तान होंगी। यही बात शंख-लिखित में मी उस अवधि में जिन्हें देखती हैं उन्ही के गुण उनकी सन्तानों में आ जाते हैं । " क्या गर्भाधान गर्भ (भ्रूणस्थित बच्चे ) का संस्कार है या स्त्री का ? याज्ञवल्क्य ( १|११ ) की व्याख्या में विश्वरूप ने लिखा है कि सीमन्तोन्नयन संस्कार को छोड़कर सभी संस्कार बार-बार सम्पादित होते हैं, क्योंकि वे गर्म के संस्कार हैं, किन्तु सीमन्तोन्नयन केवल एक बार सम्पादित होता है, क्योंकि यह स्त्री से सम्बन्धित है । यही बात लघु-आश्वलायन (४/१७ ) में भी पायी जाती है । किन्तु मनु ( २।१६ ) की व्याख्या में मेधातिथि ने लिखा है कि विवाहोपरान्त, कुछ लोगों के मत से प्रथम संभोग के समय ही गर्भाधान संस्कार किया जाना चाहिए, किन्तु अन्य लोगों के मत से जब तक गर्भ धारण न हो जाय तब तक प्रत्येक रक्तप्रवाह के उपरान्त उसे किया जाना चाहिए। कालान्तर वाले लेखकों एवं ग्रन्थों का कहना है ( यथा मिताक्षरा, याज्ञ०, १११, स्मृतिचन्द्रिका एवं संस्कारतत्व ) कि गर्भाधान, पुंसवन एवं सीमन्तोन्नयन स्त्री के संस्कार हैं और केवल एक बार सम्पादित होने चाहिए। हारीत ने भी यही कहा है। अपरार्क ने कहा है कि सीमन्तोन्नयन एक ही बार होता है, किन्तु पुंसवन प्रत्येक गर्भाधान पर किया जाता है। यही बात संस्कारमयूख, संस्कारप्रकाश एवं पारस्कर १८२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002789
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1992
Total Pages614
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size20 MB
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