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________________ १६४ धर्मशास्त्र का इतिहास कमलाकर ( पृ० ३०-३१, जिसमें वराह, वामन एवं भविष्यपुराण के वाक्य उद्धृत हैं) देखा जा सकता है, जहाँ पाञ्चरात्र मत से विष्णुमन्त्र एवं शिव, सूर्य, शक्ति तथा विनायक के मन्त्र कहे जाने का विधान है। वराहपुराण में शूद्र के भागवत ( विष्णु भक्त) के रूप में दीक्षित होने का वर्णन है । (३) संस्कारों के विषय में स्मृतिकारों में मलैक्य नहीं है । मनु ( १०।१२६ ) के अनुसार यदि शूद्र प्याज या लहसुन खाये तो कोई पाप नहीं है, वह संस्कारों के योग्य नहीं है, उसे न तो धर्म-पालन का कोई अधिकार है और न पालने का कोई आदेश ही है । मनु ( ४।८० ) के कुछ वचन वसिष्ठ ( १८-१४), विष्णु (७१।४८-५२ ) से मिलते-जुलते लघुविष्णु का कहना है कि शुद्र सर्वसंस्कारों से वर्जित जाति है। मिताक्षरा (याज्ञ० ३।६२ ) के अनुसार शूद्र व्रत कर सकते हैं, किन्तु बिना होम एवं ( वैदिक ) मन्त्र के । किन्तु अपरार्क उसी श्लोक की व्याख्या में बिलकुल उलटी बात कहते हैं। शूद्रकमलाकर ( पृ० ३८ ) के अनुसार शूद्र व्रत, उपवास, महादान एवं प्रायश्चित्त कर सकते हैं, किन्तु बिना होम एवं जप के मनु (१०।१२७ ) के अनुसार शुद्र लोग बिना मन्त्रोच्चारण के द्विजातियों द्वारा किये जानेवाले सभी धार्मिक कृत्य कर सकते हैं। शंख एवं यम के अनुसार बिना मन्त्रोच्चारण के शूद्रों के लिए संस्कार किये जा सकते हैं । व्यास ( १।१७ ) ने शूद्रों के लिए बिना मन्त्रोच्चारण के दस ( गर्भाधान, पुंसवन, सीमन्तोन्नयन, जातकर्म, नामकरण, निष्क्रमण, अन्नप्राशन, चौल, कर्णवेध एवं विवाह ) संस्कारों के विषय में विधान लिखा है। यही बात कुछ कम संस्कारों के लिए गौतम (१०।५१) ने भी कही है। (४) कुछ अपराधों में शूद्रों को अधिक कड़ा दण्ड दिया जाता था । यदि कोई शूद्र उच्च वर्णों की किसी नारी के साथ व्यभिचार करता था तो उसका लिंग काट लिया जाता और उसकी सारी सम्पत्ति छीन ली जाती थी ( गौतम १।२) । यदि कोई शूद्र किसी धरोहर रूप में रखी स्त्री के साथ व्यभिचार करता था तो उसे प्राण दण्ड दिया जाता था । वसिष्ठ (२१।१ ) एवं मनु (८/३६६) ने कहा है कि यदि शूद्र किसी ब्राह्मण नारी के साथ उसके मन के अनुसार या विरुद्ध सम्भोग करे तो उसे प्राण दण्ड मिलना चाहिए। किन्तु यदि कोई ब्राह्मण किसी ब्राह्मणी के साथ बलात्कार करे तो उस पर एक सहस्र कार्षापण का दण्ड और जब केवल व्यभिचार करे तो ५०० का दण्ड लगता था (मनु ८१३७८) । यदि कोई ब्राह्मण किसी अरक्षित क्षत्रिय, वैश्य या शूद्र नारी से सम्भोग करे तो उस पर ५०० का दण्ड लगता था ( ८1३८५ ) । इसी प्रकार किसी ब्राह्मण की भर्त्सना या गाली-गलौज करने पर शूद्र को शारीरिक दण्ड दिया जाता था या उसकी जीभ काट ली जाती थी (मनु ८ २७०), किन्तु इसी अपराध पर क्षत्रिय या वैश्य को १०० या १५० का दण्ड दिया जाता था । यदि ब्राह्मण किसी शूद्र को दुर्वचन कहे तो उस पर केवल १२ कार्षापण का या कुछ नहीं दण्ड लगता था (मनु ८।२६८ ) । चोरी के मामले में शूद्र पर कुछ कम दण्ड था । (५) मृत्यु या जन्म होने पर शूद्र को एक महीने का सूतक लगता था। ब्राह्मणों को इस विषय में केवल १० दिनों का सूतक मनाना पड़ता था । (६) शूद्र न तो न्यायाधीश हो सकता था और न धर्म का उद्घोष ही कर सकता था (मनु ८९ एवं २०; याश० १ ३ एवं कात्यायन ) । (७) ब्राह्मण किसी शूद्र से दान नहीं ग्रहण कर सकता था। यह हो भी सकता था तो अत्यन्त कड़े नियन्त्रणों के भीतर । (८) ब्राह्मण उसी शूद्र के यहाँ भोजन कर सकता था जो उसका पशुपाल, हलवाहा या वंशानुक्रम से मित्र हो, या अपना नाई या दास हो ( गौतम १६ / ६ मनु ४२५३; विष्णु ५७/१६; याज्ञ० १।१६६ ; पराशर ९।१९ ) । आपस्तम्ब (१।५।१६।२२ ) के अनुसार अपवित्र शूद्र द्वारा लाया गया भोजन ब्राह्मण के लिए वर्जित है,. किन्तु उन्होंने शूद्रों को तीन उच्च वर्णों के संरक्षण में भोजन बनाने के लिए आज्ञा दी है, किन्तु इस विषय में उनके Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002789
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1992
Total Pages614
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size20 MB
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