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________________ वर्णों के कर्तव्य, अयोग्यताएँ एवं विशेषाधिकार १५१ पशु (मारे जानेवाले), मनुष्य (दास), बाँझ (वन्ध्या या बहिला) गायें, बछवा-बछिया (वत्स-वत्सा), लड़ जानेवाली गायें आदि वस्तुएँ बेचने को मना किया है। उन्होंने (७।१५) यह भी लिखा है कि कुछ आचार्यों ने ब्राह्मण के लिए भूमि, चावल, जौ, बकरियाँ एवं भेड़, घोड़े, वैलं, हाल में व्यायी हुई गायें एवं गाडी में जोते जानेवाले बैल आदि वेचना मना किया है। वाणिज्य में रत क्षत्रिय के लिए इन वस्तुओं के विक्रय के लिए कोई नियन्त्रण नहीं था। आपस्तम्ब (१।७।२०।१२-१३) ने भी ऐसी ही सूची दी है, किन्तु उन्होंने कुछ वस्तुओं पर रोक भी लगा दी है, यथा चिपकनेवाली वस्तुएँ (श्लेष्म, जैसे लाह), कोमल नाल (तने), खमीर उठी (फेनिल) हुई वस्तुएँ (किण्व, शराव या मुरा आदि), अच्छे कर्म करने के कारण उपाधि, प्रशंसा-पत्र आदि के मिलने की आशा। उन्होंने अन्नों में तिल एवं चावल बेचने पर बहुत कड़ा नियन्त्रण रखा है। बौधायन (२।११७७-७८) ने भी तिल एवं चावल बेचने के लिए वर्जना की है और कहा है कि जो ऐसा करता है वह अपने पितरों एवं अपने प्राणों को बेचता यह बात इसलिए उठायी गयी कि श्राद्ध एवं तर्पण में तिल का प्रयोग होता है। वसिष्ठधर्मसूत्र (२।२४-२९) में भी ऐसी ही सूची है, किन्तु अन्य वस्तुएँ भी जोड़ दी गयी हैं, यथा प्रस्तर, नमक रेशम, लोहा, टीन, सीसा, सभी प्रकार के वन्य पशु, एक खुर वाले तथा अयाल वाले पशुओं सहित सभी पालतू पशु, पक्षी एवं दाँत वाले पशु । मनु (१०।९२) के अनुसार ब्राह्मण मांस, लाह, नमक बेचने से तत्क्षण पापी हो जाता है और तीन दिनों तक दूध बेचने से शूद्र हो जाता है। तिल के विषय में बौधायन (२।१२७६), मनु (१०।९१), वसिष्ठ (२।३०) ने एक ही बात लिखी है--यदि कोई तिल को ग्वान, नहाने में (उसके तेल को) प्रयोग करने या दान देने के अतिरिक्त किसी अन्य काम में लाता है तो वह कृमि (क्रीड़ा) हो जाता है और अपने पितरों के साथ कुत्ते की विष्ठा में डूब जाता है। किन्तु वसिष्ठ (२।३१), भनु (१०।९०) ने कृषि-कर्म से उत्पन्न तिल को बेचने के लिए कहा है, हाँ, मनु ने केवल धार्मिक कार्यों के लिए ही विक्रय की व्यवस्था दी है। याज्ञ० (३।३९), नारद (ऋणादान, ६६) ने भी कुछ ऐसा ही कहा है। याज्ञ० (३।३६-३८) एवं नारद (ऋणादान, ६१-६३) ने भी वजित वस्तुओं की सूचियाँ उपस्थित की है। मन ने उपयुक्त सूची में मोम, कुश, नील को जोडा है, याज्ञवल्क्य ने सोम, पंक बकरी के ऊन से बने हुए कम्बल, चमरी हिरन के बाल, खली (पिण्याक) को जोड़ दिया है। इसी प्रकार शंख-लिखित, उद्योगपट (३८१५), शान्तिपर्व (७८।४-६), हारीत ने वजित वस्तुओं की लम्बी-लम्बी मूचियाँ दी हैं। इसी प्रकार याज्ञः (३।४०), मनु (११।६२), विष्णु (३७।१४), याज्ञ० (३।२३४, २६५), हारीत, लघु शातातप आदि ने वर्जित वस्तुओं के बेचने पर प्रायिश्चत्त के लिए भी व्यवस्था दी है। २५. आपदि व्यवहरेत पण्यानामपण्यानि व्युदस्यन् । मनुष्यान् रमानरागान् गन्धानन्नं चर्म गवां वशां श्लेष्मोदके तोक्मकिण्वे पिप्पलीमरीचे धान्यं मांसमायुधं सुकृताशां च । तिलतण्डुलांस्त्वेव धान्यस्य विशेषेण न विक्रीणीयात् । आप० १७.२०१११-१२। . २६. भोजनाभ्यञ्जनादानाद् यदन्यत्कुरुते तिलैः । कृमिभूतः श्वविष्ठायां पितृभिः सह मज्जति ॥ मनु १०।९१; स्मृतिचन्द्रिका में उद्धृत यम का श्लोक (१११८०)। २७. न विक्रीणीयादविक्रेयाणि। तिलतलदधिक्षौद्रलवणलाक्षामद्यमांसकृतान्नस्त्रीपुरुषहस्त्यश्ववृषभगन्धरसं कृष्णाजिनसोमोदकनीलीविक्रयात्सद्यः पतति ब्राह्मणः। शंखलिखित (अपरार्क द्वारा उद्धृत, १० १११३, एवं स्मृतिचन्द्रिका १११८०) । अविक्रयं लवणं पक्वमन्नं दधि क्षीरं मधु तैलं घृतं च । तिला मांसफलमूलानि शाकं रक्तं वासः सर्वगन्धा गुडाश्च ॥ उद्योगपर्व ३८।५ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002789
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1992
Total Pages614
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size20 MB
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