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________________ १२२ धर्मशास्त्र का इतिहास पीढ़ियों में केवल पिता ही ब्राह्मण थे, सभी माताएँ ब्राह्मण नहीं थी, वे सवर्ण थी)। यह जात्युत्कर्ष (जाति में उत्कर्ष या उत्थान) कहलाता है। जब कोई ब्राह्मण क्षत्रिय नारी से विवाह करता है और उसे कोई पुत्र उत्पन्न होता है तो वह सवर्ण कहलायेगा। यदि वह सवर्ण पुत्र किसी क्षत्रिय कन्या से विवाह करता है और उसे पुत्र उत्पन्न होता है और यह क्रम पाँच पीढ़ियों तक चला जाता है तो जब पाँचवीं पीढ़ी का पुत्र क्षत्रिय कन्या से विवाह करता है तब उसका पुत्र क्षत्रिय वर्ण का कहलायेगा (यद्यपि पूर्व पीढ़ियों में पिता क्षत्रिय से ऊँची जाति का था और माता केवल क्षत्रिय जाति की थी)। इसे जात्यपकर्ष (जाति की स्थिति में अपकर्ष या पतन) कहा जाता है। यही नियम क्षत्रिय का वैश्य नारी से तथा वैश्य का शूद्र नारी से विवाह करने पर लागू होता है। यही नियम अनुलोमों के साथ भी चलता है। मनु के मतानुसार (१०१६४) जब कोई ब्राह्मण किसी शूद्र नारी से विवाह करता है तो उससे उत्पन्न कन्या 'पारशव' कहलाती है और यदि यह पारशव लड़की किसी ब्राह्मण से विवाहित होती है और पुनः इस सम्मिलन से उत्पन्न लड़की किसी ब्राह्मण से विवाहित होती है तो इस प्रकार की सातवीं पीढ़ी ब्राह्मण होगी, अर्थात् जात्युत्कर्ष होगा। ठीक इसके प्रतिकूल यदि कोई ब्राह्मण किसी शुद्रा से विवाह करता है और पुत्र उत्पन्न होता है तो वह पुत्र पारशव' कहलायेगा और जब वह पारशव पुत्र किसी शूद्रा से विवाहित होता है और उसका पुत्र पुन: वैसा करता है तो इस प्रकार सातवी पीढ़ी में पुत्र केवल शूद्र हो जाता है। इसे जात्यपकर्ष कहा जाता है। गौतम और मनु के मतों में कई भेद स्पष्ट हो जाते हैं-(१) मनु ने जात्युत्कर्ष एवं जात्यपकर्ष दोनों के लिए सात पीढ़ियाँ आवश्यक समझी हैं, किन्तु गौतम ने (हरदत्त के अनुसार) क्रम से सात एवं पाँच पीढ़ियाँ बतायी हैं। (२) गौतम के अनुसार प्रथम से आठवाँ अनुलोम ही जात्युत्कर्ष प्राप्त करता है, किन्तु मनु के अनुसार सातवीं पीढ़ी ही ऐसा कर पाती है। (३) जब आरम्भिक माता-पिता अनुलोम होते हैं तो जात्युत्कर्ष कैसे होता है, इसके विषय में मनु मौन हैं। मनु के भाष्यकारों ने जाति के उत्कर्ष एवं अपकर्ष के विषय में अवधियाँ कम कर दी हैं। मेधातिथि के अनुसार पाँचवीं पीढ़ी में जात्युत्कर्ष सम्भव है। इसी प्रकार जात्यपकर्ष के लिए पाँच पीढ़ियाँ ही पर्याप्त हैं। याज्ञवल्क्य (१९६) ने जात्युत्कर्ष एवं जात्यपकर्ष के दो प्रकार बताये हैं, जिनमें एक तो विवाह (मनु एवं गौतम के समान) से उत्पन्न होता है और दूसरा व्यवसाय से। यह जानना चाहिए कि सातवीं एवं पांचवीं पीढ़ी में जात्युत्कर्ष होता है; यदि व्यवसाय (जाति या वर्ण की वृत्ति या पेशा) में विपरीतता पायी जाती है तो उसमें भी वर्ण के समान ही सातवीं एवं पाँचवीं पीढ़ी में जात्युत्कर्ष पाया जाता है। मेधातिथि ने इसे इस प्रकार समझाया हैयदि कोई ब्राह्मण शूद्र से विवाह करे और उससे कन्या उत्पन्न हो तो वह कन्या निषादी कही जायगी, यदि चह निषादी एक ब्राह्मण से विवाहित होती है और पुत्री उत्पन्न करती है और वह पुत्री एक ब्राह्मण से विवाहित होती है और यह क्रम छ: पीढ़ियों तक चला जाता है, तो छठी का बच्चा सातवीं पीढ़ी में आकर ब्राह्मण हो जाता है। इसी प्रकार यदि कोई ब्राह्मण किसी वैश्य नारी से विवाह करता है, तो उससे जो कन्या उत्पन्न होगी वह अम्बष्ठा कहलायेगी, और यदि यह अम्बष्ठा कन्या किसी ब्राह्मण से विवाहित होती है तो इस क्रम से चलकर छठी पीढ़ी से जो सन्तान होगी वह ब्राह्मण कहलायेगी। यदि कोई ब्राह्मण किसी क्षत्रिय नारी से विवाह करे और पुत्री उत्पन्न हो तो वह मूर्षावसिक्त कहलायेगी (याज्ञवल्क्य ११९१) और यदि वह मूर्धावसिक्त. कन्या किसी ब्राह्मण से विवाहित होती है तो पांचवीं पीढ़ी में इसी क्रम से जो सन्तान होगी वह ब्राह्मण होगी। इसी प्रकार यदि कोई क्षत्रिय किसी शूद्रा से विवाहित होता है तो उससे उत्पन्न कन्या उग्र कहलायेगी, और यदि वह क्षत्रिय से विवाह करे तो जात्युत्कर्ष छठी पीढ़ी में हो जायगा। २३. जात्युत्कर्षो युगे ज्ञेयः सप्तमे पञ्चमेऽपि वा। व्यत्यये कर्मणा साम्यं पूर्ववचारोत्तरम् ॥ याश०१३९६ । Jain Education International Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002789
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1992
Total Pages614
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size20 MB
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