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प्रस्तावना
३१
कन्या जन्मे त्यारे शोक करावे छे; उमरे मोटी थाय त्यारे चिंता करावे छे अने परणे त्यारे खर्च करावे छे. आ ते कन्यानो बाप हंमेशनो दुःखीयो ज होय छे. जुओ :
-:
"उप्पण्णाए सोगो वर्द्धतीए य वढए चिंता ।
परिणीयाए उदन्तो जुवइपिया दुखिओ निच्चं " ॥ १।८८ ॥
केट वास्तविक चित्र !
महेश्वरसूरिना शिक्षासूत्रो जेटलां सचोट छे तेटां मौलिक छे, एमां भरेल विशाल ज्ञानराशि अने अनुभवयुक्त ठावकापणुं लगभग अद्वितीय छे. " पंचतंत्र "मां के " हितोपदेश "मां जे हित शिक्षाओ प्रत्येक वार्त्तामा गोठवेल छे तेवी ज अहिंआ पण आख्याने आख्याने आपणने जडी आवे छे. आ शिक्षासूत्रो तेमना पूर्ववर्त्ती साहित्यमांथी महेश्वरसूरिए शब्दफेर साथै तफडावी काढ्या होय एम पण देखातुं नथी. कारण के दरेक शिक्षासूत्र एटलं मौलिक देखाय छे के आपणने जराय एम लाग्या विना रहेतुं नथी के लेखकन अनुभवमांथी अने सूक्ष्म निरीक्षणमांथी ए हितशिक्षा सीधे सीधी टपकी शब्दनुं खरूप पकडे छे. मारी आ मान्यता मने एम कहेवा प्रेरे छे के लेखक समाजना अने संसारना ऊंडा अभ्यासी हता. ते उपरांत आ अनुभव तेमणे कोई बीजा पासेथी मेळव्यो हतो एम पण नहि परंतु तेओए पोते गृहस्थ जीवन सारी रीते भोगव्युं होवुं जोईए. अन्यथा एमनी उक्तिओमां जे सामर्थ्य अने वेग छे ते संभवी शके नहि. मानी पुरुषोना मनने दुःख आपनार वस्तुनी गणना करती वखते लेखक कहे छे : -
"अब्भक्खाणमकां कज्जविणासो रिणं च गुणनिंदा ।
पच्चुवयाराकरणं दुर्मति हु माणविहवाण" ॥ १।९२ ॥
अर्थः – कलंक, अकार्य, कार्यनुं बगडवु, देवुं, गुणनिंदा अने प्रत्युपकार न करवो आटला वानां मानी पुरुषोने दुःख दे छे. सर्व भयमां मरणनो भय सौथी मोटो छे. माणस मरवानी तैयारीमां होय छतां मरण गमतुं नथी ए बताववा सूरि श्री कहे छे
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"अंगीकए वि मरणे मरणभयं तह वि होइ जीवस्स ।
कडुओसहस्स पाणं कडुयं चिय नियमओ जेण” ॥ १।१०१ ॥
अर्थः- - मरण अंगीकृत कर्यु होय छतां पण जीवने मृत्युनो भय होय ज छे कारण के कडवा औषधनुं पान नियमपूर्वक कडवुं ज होय छे. स्त्री कद्दि पण निराधार होती ज नथी. स्त्री स्वभाव ज एवो छे के गमे ते अवस्थामां एने स्वामी तो जोईए ज. आ अनुभवजन्य घटना सूरिवर्य निम्नोक्त सुभाषितमां गोठवे छे : -
" जणओ कुमारभावे तारुन्ने तह य होइ भत्तारो ।
विद्वत्तमि पुत्तो न कया वि णिरासिआ नारी” ॥ १।१७९ ॥
अर्थः- कौमार्य वखते बाप, जुवानीमां धणी अने वृद्धावस्थामां पुत्र रक्षण करे छे. नारी कहि निराश्रित होती ज नथी. "Suspicion in friendship is poison " ए त्रिकालाबाधित सत्य लेखक निम्नोक्त सुभाषितमां गोठवे छे :
" जुत्ताजुत्तवियारो जह कीरइ इयरलोयवयणेसु ।
तह जइ वल्लहभणिए ता णेहो कित्तिमो नूणं" ॥ १।२३२ ॥
अर्थः- योग्य वचन छे के अयोग्य ए विचार बीजा लोकोना वचन परत्वे करवामां आवे ए तो जाणे के ठीक; परंतु ए जो प्रियजनना संबंधमां करवामां आवे तो तो पछी ए स्नेह कृत्रिम ज छे एम ज समजवुं जोईए. पाके घडे कांठा न चडे ए वर्तमान लोकोक्ति ते वखते केटली प्रचलित हती तेनुं प्रमाण निम्नोक्त सुभाषित पूरूं पाडे छे :
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