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________________ प्रस्तावना दानचंद्र पछी सप्तसंधान' महाकाव्यना लेखक उपाध्याय मेघविजयजीए (अढारमी सदी) पण 'पंचमी कथा' लखी होवानो उल्लेख मळी आवे छे. ते हजु मुद्रित थई जणाती नथी. तेनी प्रति पंन्यास श्रीहंसविजयजी पासे छे एम श्री देसाई पोताना 'जैन साहित्यना संक्षिप्त इतिहास'मां जणावे छे. . आ पछी ओगणीसमी सदीमा वि.सं. १८२९ थी १८६९ ना गाळामां खरतरगच्छीय क्षमाकल्याण उपाध्याये 'सौभाग्य पंचमी' नामे पंचमी व्रतना माहात्म्य उपर संस्कृतमां गद्य पद्य युक्त कथा रची. आ पुस्तक विजयधर्मसूरि जैनग्रंथमाळा तरफथी प्रकाशित 'पर्वकथासंग्रह' नामना ग्रन्थथी भिन्न परंतु तेज नामधारी एक बीजा 'पर्वकथासंग्रह' नामना पत्राकारे मुद्रित पुस्तकमां प्रथम कथारूपे स्थान पामेली छे. तेना संपादक मणिसागरजी छे अने जैन छापखाना-कोटा (राजपुताना) तरफथी प्रसिद्ध थयेली छे. आ क्षमाकल्याण उपाध्याय खरतरगच्छीय जिनलाभसूरिना शिष्य अमृतधर्मना शिष्य हता. श्री. देसाई नोंधे छे के तेमणे चातुर्मासिक होलिका आदि दश पर्व कथा रची हती.२९ परंतु त्यां आगळ तेओ ए दश पर्व कथाओमां 'सौभाग्य पंचमी' नो उल्लेख स्पष्ट रीते करता नथी. जो के क्षमाकल्याण उपाध्याये ‘सौभाग्य पंचमी' रची हती ए निर्विवाद छे. लींबडी भंडारमा आनी एक प्रति छे.३० “जैन ग्रंथावलि'मां क्षमाकल्याण कृत 'सौभाग्य पंचमी' विषे स्पष्ट उल्लेख नथी. 'अक्षयतृतीया कथा, 'अट्ठाई व्याख्या,' 'चातुर्मासिक पर्व कथा, 'पौष दशमी कथा,' 'मेरु त्रयोदशी कथा,' 'मौन एकादशी कथा (प्रा), 'रजः पर्व कथा,' 'होलिका कथा' अने रोहिणी कथा' वगेरेनो ग्रन्थ तरीके 'जैनग्रंथावलि'मा उल्लेख छ पण कर्तानुं नाम नथी लखेल; अने ए बधानी प्रतिओ अमदावादना डेलाना भंडारमा छे एम त्यां लखेलुं छे.३१ आ बधा पर्वोनो सरवाळो करतां नव पर्व थाय छे; अने श्री. देसाई दश पर्वकथाओ लखी होवानो उल्लेख करे छे. ते उपरांत 'जैन ग्रंथावलि'मां तेज पृष्ठ उपर 'ज्ञान पंचमी' कथानो उल्लेख छे. कर्त्तानुं नाम नथी अने प्रति अमदावादना डेलाना भंडारमा छे एम जणाव्युं छे.१२ तो कदाच आ 'ज्ञान पंचमी कथा' क्षमाकल्याण रचित होवा संभव छे; कारण के ए रीते श्रीदेसाईनो क्षमाकल्याणे दश पर्वकथाओ लखी होवानो उल्लेख तेमज लींबडी भंडारमाथी मळी आवती क्षमाकल्याण रचित 'ज्ञानपंचमी कथा' वाळो उल्लेख ए बन्ने बाबतो साची ठरे. 'जैन ग्रंथावलि' त्रण ज्ञान पंचमी कथाओ नोंधे छे.१३ तेमांथी एक तो स्पष्ट रीते कनककुशल रचित लखेल छे. बीजी में कल्पना करी छे तेम क्षमाकल्याण रचित होय अने त्रीजी सौंदर्यगणि रचित पाटणना संघवीपाडाना भंडारमा छे एम सूचवी पादनोंधमां शंका करी छे के सौंदर्यगणि नामना कोई आचार्य थया जाणवामां नथी. एकज लेखक रचित एकज ग्रंथनी बे प्रतिओ होवा पण संभव छे. सौंदर्यगणिए पोतानुं नाम पोतानी मालीकी सूचववा त्यां लख्युं होय अने भूलथी एने नामे ए कृति मात्र त्यां लखेल नाम उपरथी चडानी देवामां आवी होय एम पण बने. क्षमाकल्याणकृत समाकल्याणकृत 'सौभाग्य पंचमी' (मद्रित) तपासवाथी मालम पडे छ के एमणे पद्यो तो कनककुशल रचित 'ज्ञान पंचमी माहात्म्य' मांथी लीधा छे अने गद्यविभाग पोते रच्यो होय एम देखाय छे, जो के आ गधविभाग पण कनककुशल रचित 'ज्ञान पंचमी माहात्म्य'ना भावने बराबर अनुसरे छे. २८ जुओ उपर्युक्त पुस्तकनु पृ. ६५३. २९ जुओ उपर्युक्त जै. सा. सं. इ. पृ. ६७६. ३० जुओ उपर्युक्त ली. भा. प्र. सू. नुं परिविष्टि नं. १ पृ. ४. ३१ जुओ उपर्युक्त जै. प्र. पृ. २६४. ३२ जुओ उपर्युक्त प्रन्थ- उपर्युक्त पृ. ३३ जुओ उपर्युक्त ग्रन्थनुं उपर्युक्त पृ. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002786
Book TitleGyanpanchami Katha
Original Sutra AuthorMaheshwarsuri
AuthorJinvijay
PublisherSinghi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai
Publication Year1949
Total Pages162
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size12 MB
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