________________
१०, ३५७ - ३८५ ]
नागपंचमीकहाओ - १०. भविस्सयत्तकहा
पारासराइएहिं केवट्टीमाइसंगमेणेह । तव - नाणसुट्ठिएहिं वि किं न कयं विगयज्जलेहिं ? ॥
३५७
इय गरुयाण वि जायइ मालिन्नं पुवकम्मदोसेण । तम्हा मा भणह तुमं गरुयाण न जायए दोसो ॥ ५८ पिउणा तेण विमुक्का अइदुहिया तत्थ कित्तिसेणा वि । समयं करेइ मेत्ति' पइदियहं नंदिभद्दाए ॥ ५९ काऊ पंचमिवयं उज्जवणं जा करेइ अइगरुयं । भत्तीऍ नंदिभद्दा कढजाया चिंतएँ ताव ॥ ३६० धन्ना खुइमा रामा जीसे सवं पि इच्छियं मिलइ । मह पुण पावाऍ मुहा जम्मं इह निम्मियं विहिणा ॥ ६१ इय चिंतिऊण जंपइसा पुरओ तीऍ एरिसं वयणं । तव - दाणाइविहिणा कह होहामो इले ! अहह्यं ॥ ६२ जइ वि नै पुज्जइ दाणं तह वि उवासेमि पंचमी' ताव । जम्मंतरे वि जेणं एरिसया न वि अहं होजा ॥ ६३ गहिऊण गुरुसया काऊणं पंचमिं च भावेणं । मरिऊण दीवतिलए भवदत्तघरम्मि पुन्नेहिं ॥ ६४ कुच्छीए उववन्ना नामेणं नागसेणघरिणीए । भविसणुरूव कन्ना तुह घरिणी जा इमा एहि ॥ ६५ भुंजतो विसयसुहं जा अच्छइ दीव तिलयनाहो वि । तो उव (य) हिम्मि सलोओ पक्खित्तो असणिवेगेणं ॥ ६६ तुट्टा रुट्ठींय " तहीं देवा वि हु रोस-तोसफलजणया । काले होंति" नियमा भोयगकम्मेहिँ पडिबद्ध ॥ ६७ मरिऊण नंदिभद्दा पुन्नेहिँ विमाणिएसु उववन्ना । अच्चुयइंदो जाओ मरिऊणं नंदिमित्तो वि ॥ ६८ धणदत्तो वि हु तत्तो तुझं पिया एस धणवई जाओ । धणभर्जी वि हु एसा कमलसिरी तुज्झ जणणि त्ति ॥ ६९ धमित्तो मरिऊणं पंचमिवयजणियधम्मनिवहेण । एयाण तुमं पुत्तो भविस्सदत्तो त्ति संजाओ ॥ ३७० पभणइ भविस्सदत्तो को अन्नो एरिसं जहावत्तं । वन्नेउं इह सक्कइ मोत्तूणं नाणिणो " तुब्भे" १ ॥ ७१ जइ इहई न वि होज्जी नाणपईवा तुमेहिँ सारिच्छा । ता मोहपउरलोए धम्माइपयासणं कह णु ? ॥ ७२ एयं सोऊण महं सामिय ! जाओ मणम्मि निवेओ । इच्छामि वयं गहिउं तुम्हाणं पार्थमूलम्मि ॥ ७३ अह गंतूणं नयरे हक्कारेऊण सङ्घलोयं च । जेसुयं अहिसिंचइ नियरज्जे परमबुद्धीए ॥ दाऊण तओ दाणं काऊणं जिणवराण महिमं चै । गंतूण मुणिसयासे दिक्खं भावेण सो लेइ ॥ ७५ कमल सिपमुहेहिं गहिया दिक्खा महाणुभावेहिं । केहिं पि देसविरई अन्नेहिँ वि" दंसणं चेव ॥ ७६ काऊण तवच्चरणं उववन्नो सत्तमम्मि कप्पम्मि | हेमंगयनामधरो भविस्सदत्तो य सुरपवरो ॥ तत्थेव य कमलसिरी संजाओ सुरवरो पहाचूलो । भविसणुरूवा वि तहा संजाय रयणचूलो त्ति ॥ ७८ दोह विपडाण मज्झे सुडु सुगंधाण तह य मउयाण । पढमं चिय उववज्जइ देवो पुन्नाणुभावेणं ॥ ७९ अंतमुहुत्तेण तओ" वीस वरिसोव निद्दविगमम्मि । उट्ठइ उम्मुट्टेउं नयण-मणाणंदणो सहसा ॥ ३८० चउसु वि दिसासु पेच्छइ सो सवं सुदुं तत्थै रमणीयं । पच्छा मणेण चिंता को एसो गुणमओ देसो ? ॥ ८१ एवं चिंतेमाणो ओहीनाणेण " पेच्छए सवं । नयणेणं पिव पयडं कम्मंतरसंचियं चरियं ॥ खीरोदय भरियाए सुवन्नवावीऍ रयणखचियाएँ । किंकरदंसिंयमग्गो" मज्जणयं कुणइ पत्रिसेउं ॥ ८३ उत्तरिऊणं पच्छा चेइयभवणम्मि पणमिउं देवे । वायइ पोत्थयरयणं सीहास संठिओ विहिणा ॥ ८४ तत्थ य अच्छइ लिहियं अणेण अत्थेण संजुयं" पढमं । धम्मेण इमं लष्भइ तम्हीं धम्मे " मई कुह ॥ ३८५
७४
७७
८२
1 A नेह | 2 B मित्ति | 3 C निंदए । 4 Bन। 5 B बि। 6 A पंच । 7 B सगासे । 8 C भविसाणुरूव । 9 B इहि । 10-12 A य तहा रुट्ठा | 13 B हुंति । 14 A D पडिरुद्धा | 15 B मज्झ । 16 B भद्दा | 17 A माणिणो । 18 B तुम्हे । 19 B हुजा । 20A CD तुम्हं । 21 A CD पायाण | 22 B जिटु । 23-24 B महिमाओ । 25 C it is not found in this Ms. 26 C संजाओ । 27 B पुणो | 28 A पणुवीह; B तीसइ । 29 A तस्थ । 30 A सुहु । 31 A ओहिनाणेण । 32 B नियनामं । 33B जम्मं । 34 C ° चित्ताए । 35 AD देसिय° । 36 B मग्गं । 37 B C सिंहासन | 38B संजु 39 A धम्मे । 40 A तम्हा ।
Jain Education International
७१
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org