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बाबू श्री बहादुर सिंहजी सिंघी
स्मरणञ्जलि
$ ११ बीजा १० हजार रुपियानी उदार रकम पण आपी जेना वडे भवनना तेमना नामनो एक खण्ड वैधाववामां आवे अजे तेमां प्राचीन वस्तुओ तेम ज चित्र विगेरेनो संग्रह राखवामां आवे.
भवननी प्रबंधक समितिए सिंधीजीना आ विशिष्ट अने उदार दानना प्रतिघोष रूपे भवनमा प्रचलित 'जैन शास्त्रशिक्षण विभाग'ने स्थायी रूपे 'सिंघी जैनशास्त्र शिक्षापीठ' ना नामे प्रचलित राखवानो सविशेष निर्णय कर्यो.
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ग्रंथमाळाना जनक अने परिपालक सिंधीजीए, प्रारंभधी ज एनी सर्व प्रकारनी व्यवस्थानो भार मारा उपर मूकीने पोते तो फक्त खास एटली ज आकांक्षा राखता हता के ग्रन्थमालामां केम वधारे ग्रन्थों प्रकट थाय अने केम तेमनो वधारे प्रसार थाय. तेमना जीवननी एक मात्र ए ज परम अभिलाषा हती के आ ग्रन्थमाळा द्वारा जेटला बने तेटला सार सारा अने महत्त्वना ग्रन्थो जल्दी जल्दी प्रकाशित थाय अने जैन सहित्यनो खूब प्रसार थाय. ए अंगे जेटलो खर्च थाय तेटलो ते बहु ज उत्साहथी करवा उत्सुक हता. भवनने प्रथमाळा समर्पण करती वखते तेमणे मने कह्युं के—'अत्यार सुथी तो वर्षमां सरेराश ३-४ ग्रंथो प्रकट थता आव्या छे परंतु जो आप प्रकाशित करी शको तो, दरमहिने
ग्रंथो पण प्रकाशित थता जोई हुं धराउं तेम नथी. ज्यां सुधी आपनी अने मारी जींदगी छे त्यां सुधी, जेटलं साहित्य प्रकट करवा कराववानी आपनी इच्छा होय ते प्रमाणेनी आप व्यवस्था करो. मारा तरफथी पैसानो संकोच आपने जराय नहीं जणाय'. जैन साहित्यना उद्धार माटे आवी उत्कट आकांक्षा अने आवी उदार चित्तवृत्ति धरावनार दानी अने विनम्र पुरुष, में मारा जीवनमां बीजो कोई नथी जोयो. पोतानी हयाती दरम्यान तेमणे मारा हस्तक ग्रन्थमाळा खाते लगभग ७५००० ( पोगो लाख) रूपिया खर्च कर्या हशे; परंतु ए १५ वर्षना गाळा दरम्यान तेमणे एकवार पण मने एम नथी पूछ के कई रकम, कया ग्रन्थ माटे, क्यारे खर्च करवमां आवी हे; के कया ग्रन्थना संपादन माटे, कोने शुं आपवामां आव्युं छे. ज्यारे ज्यारे हुं प्रेस इत्यादिना बीलो तेमनी उपर मोकलतो त्यारे त्यारे, तेओ ते मात्र जोईने ज ऑफिसमां ते रकम चुकववाना शेरा साथे मोकली देता. हुं तेमने कोई बीलनी विगत समजावत्रा इच्छतो, तो पण तेओ ते विषे उत्साह होता बतावता अने एनाथी विरुद्ध ग्रन्थमाळानी साइझ, टाईप, प्रींटींग, वाइंडींग, हेडींग आदिनी बाबतमां तेओ खूब झीणवटी विचार करता रहेता अने ते अंगे विस्तारथी चर्चा पण करता. तेमनी आवी अपूर्व ज्ञाननिष्ठा यने ज्ञानभक्तिये ज मने सेमना स्नेहपाशमां बद्ध कर्यो अने तेथी हुं यत्किंचित् आ जातनी ज्ञानोपासना करवा समर्थ थयो.
उक्त रीते भवनने ग्रन्थमाळा समर्पित कर्या बाद, सिंघीजीनी उपर जणावेली उत्कट आकांक्षाने अनुलक्षीने मने प्रस्तुत कार्य माटे वधारे उत्साह थयो, अने जो के भारी शारीरिक स्थिति, ए कार्यना अविरत श्रमश्री प्रतिदिन वधारे ने वधारे झडपथी क्षीण थती गई छ, छतां में एना कार्यने वधारे वेगवान् अने वधारे विस्तृत बनाववानी दृष्टिये केटलीक विशिष्ट योजना करवा मांडी, अने संपादनाना कार्यमा वधारे सहायता मळे ते माटे केटलाक विद्वानोना नियमित सहयोगनी पण व्यवस्था करवा मांडी. अनेक नाना-मोटा ग्रन्थो एक साथ प्रेसमां छापवा आप्या अने बीजा तेवा अनेक नवा नवा अन्थो छपावा माटे तैयार करवा मांड्या जेटला ग्रन्थो अलार सुधीमां कुल प्रकट थया हता तेटला ज बीजा ग्रन्थो एक साथै प्रेसमा छपावा शरू थया अने तेथी पण बमणी संख्याना ग्रन्थो प्रेस कॉपी आदिना रूपमां तैयार थवा लाग्या.
ए पछी थोडा ज समय दरम्यान, एटले सप्टेंबर १९४३ मां, भवन माटे कलकत्ताना एक निवृत्त दक्षिणी प्रोफेसरनी म्होटी लाईब्रेरी खरीद करवा हुं त्यां गयो. सिंघीजी द्वारा ज ए प्रोफेसर साथे वाटाघाट करवामां आवी हती अने मारी प्रेरणाथी ए आखी लाईब्रेरी, जेनी किंमत रु. ५०००० (पचास हजार ) जेटली मागवामां आवी हती, सिंघीजीए पोताना तरफथी ज भवनने भेट करवानी अतिमहनीय मनोवृत्ति दर्शावी हती. परंतु ते प्रोफेसर साथै ए लाईब्रेरी अंगेनो योग्य सोदो न थयो अने तेथी सिंघीजीए, कलकत्ताना सुप्रसिद्ध स्वर्गवासी जैन सद्गृहस्थ बाबू पूरणचंद्रजी नाहारनी म्होटी लाइब्रेरी लई लेवा विषे पोतानी सलाह आपी अने ते अंगे पोते ज योग्य रीते एनी व्यवस्था करवनुं माथे लीधुं.
कलकत्तामा अने आखाय बंगालमा ए वर्ष दरम्यान अन्न-दुर्भिक्षनो भयंकर कराळ काळ वत रह्यो हतो. सिंघीजीये पोताना वतन अजीमगंज, मुर्शिदाबाद तेम ज बीजां अनेक स्थळे गरीबोने मफत अने मध्यमवित्तोने अल्प मूल्यमां, प्रतिमास हजारो मण धान्य वितीर्ण करवानी म्होटी अने उदार व्यवस्था करी हती, जेना निमित्ते तेमणे ए वर्षमां लगभग त्रण-साडा त्रण लाख रूपिया खर्च खाते मांडी वाळ्या छता. बंगालना वतनीयोमां अने जमीनदारोमां आवो म्होटो उदार आर्थिक भोग ए निमित्त अन्य कोईये आप्यो होय तेम जाणवामां नथी आव्युं.
अक्टोबर-नवंबर मासमां तेमनी तबियत बगडवा मांडी अने ते वीरे धीरे वधारे ने वधारे शिथिल थती गई. जान्युआरी १९४४ नां प्रारंभमां हुं तेमने मळवा फरी कलकत्ता गयो. ता. ६ ठी जान्युआरीना संध्या समये, तेमनी साथे बेसीने ३ कलाक सुधी ग्रन्थमाळा, लाईब्रेरी, जैन इतिहासना आलेखन आदि अंगेनी खूब उत्साहपूर्वक वातोचीतो करी
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