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________________ . खरतरगच्छ-गुर्वावलिका ऐतिहासिक महत्त्व 'भगवन् ! देखिये न इस ओर आकाश धूलिसे आच्छादित हो गया है - मालूम देता है समीप ही में कोई म्लेच्छ कटक है। पूज्यश्रीने कहा – महानुभावो ! धैर्य रखो, अपने बैल आदि चतुष्पदोंको एकत्र कर लो; प्रभु श्रीजिनदत्त सूरिजी सबका भला करेंगे। पूज्यश्रीने मन्त्र- ध्यान पूर्वक अपने दण्डेसे संघके पड़ावके चारों तरफ कोटके आकार वाली रेखा खींच दी । सब लोग उसमें छिप गये। संघके लोगोंने आस-पाससे जाते हुए हजारों म्लेच्छोंको देखा पर सूरिजीके प्रभावसे वे लोग संघको न देख सके; केवल कोटको देखते दूर चले गये, जिससे सब लोग निर्भय हुए। ___ सं० १२५१ में माण्डव्यपुरस अजमेरके लिये श्रीजिनपति सूरिजीने विहार किया। वहां म्लेच्छोंका उपद्रव होनेसे २ मास बडे कष्टसे बीते । सं० १२५३ में मुसलमानोंने पाटणका भंग कर दिया। गुर्वावलीमें “पत्तनभंगानन्तरं धाटीग्रामे चतुर्मासी कृता" लिखा है। ___ सं० १३७१ ज्येष्ठ वदि १० को, जावालिपुरमें कलिकाल-केवली श्रीजिनचन्द्र सूरिजीकी विद्यमानतामें दीक्षा, मालारोपणादि उत्सव हुए। फिर म्लेच्छोंने उस नगरका भंग कर दिया - " ततो म्लेच्छकृतो भंगः श्रीजाबालपुरे जातः ।" सं० १३७७ में, पाटणको ' म्लेच्छबहुलेऽपि समग्रजनपदे" लिखा है और सं० १३८० के वर्णनमें “प्रभूतम्लेच्छव्यवहारीसमूहसंकुले श्रीपत्तने श्रीमहाराजाधिराजसैन्यलीलायमान आवासितः" लिखा है। सं० १३८४ में श्रीजिनकुशलसूरिजीने सिन्ध प्रांतमें विहार किया । उस समय सिन्ध देशको “ महाम्लेच्छकुलाकुलगुरुतरश्रीसिन्धुमण्डलोपरि" लिखा है। उच्च नगरके प्रवेशोत्सवके समयमें " हिन्दूराज्यकालमें श्रीजिनपति सूरिजी पधारे थे" लिखा है, इससे निश्चित है कि उस समय वहां मुसलमानोंका शासन हो चुका था। पाटणमें भीषण दुष्काल। सं० १३७७ में श्रीजिनकुशल सूरिजीके महोत्सवके समय पाटणमें महादुर्भिक्ष था। लिखा है कि- “ श्रीपत्तने समागताः, तत्र च विषमकाले महादुर्भिक्षप्रवर्त्तमानेऽपि" । इस प्रकार इस पट्टावलिमें ऐतिहासिक दृष्टिसे अनेक महत्त्वकी बातोंका उल्लेख मिलता है जो अन्यत्र अज्ञात हैं । पट्टावलि -साहित्यमें यह एक बहुत ही विशिष्ट प्रकारकी रचना है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002780
Book TitleKhartar Gacchha Bruhad Gurvavali
Original Sutra AuthorJinpal Upadhyaya
AuthorJinvijay
PublisherSinghi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai
Publication Year1956
Total Pages148
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size13 MB
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