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________________ प्रस्तावना जैन संस्कृतिए साहित्य, स्थापत्य आदि कळानां विविध क्षेत्रोमां अनेक सिद्धि प्राप्त करी छे अने पोतानी ए अपूर्व सिद्धिओनो लाभ जगतने पण छूटे हाथे आप्यो छे. उपर जणाव्यु तेम श्रमणोपासको श्रमणोनी आवश्यकताओ पूरी पाडता तेना मूळमां जैन श्रमणोना त्याग तप संयम अने विद्वत्तादि गुणोनो प्रभाव तो हतो ज, पण ते उपरांत केटलाक वर्गने ओछे वत्ते अशे आवी कथाओ पण दानादि कार्योमा प्रेरणाप्रद बनेली होवी जोईए, ए पण एक हकीकत छे. एटले प्राचीन भारतीय संस्कृतिना एक प्रधान अंगभूत जैनसंस्कृतिना निर्माण अने विकासमा प्रेरक बनेली आवी सुपात्रदान आदिनो महिमा दर्शावती अनेक कथाओ काल्पनिक होवा छतां निरर्थक छे, एम न ज कही शकाय. आथी उलटुं घणी वार तो आवा साहित्यनी महत्ता समजवा माटे ते ते युगनी परिस्थिति अने जनसमाजनी अभिरुचिनो आपणे विचार करवो ए पण आवश्यक वस्तु छे. आपणा भारतीय कथासाहित्यना निर्माणमा मात्र एक बीजा संप्रदायनी ज नहि पण देश-विदेशना कथासाहित्यनी पण असरो आवी छे. जो ते ते युगने लगती आवी विविध परिस्थितिओनो आपणे विचार करीशुं तो आवी कथाओनुं निर्माण शाने आभारी छे अने केटल्लू महत्तनुं छे ए आपणा ध्यानमां आवी शकशे. लोकमानस हमेशां मोटे भागे विनिमय वृत्तिवाळू ज होय छे. अने तेमां य व्यापारकुशळ वणिकोनुं स्थान मोखरे ज होय. वणिक् जेम व्यापारमा व्यय करतां लाभनी मात्रा विशेष इच्छे तेम अहिं पण विविध प्रकारना दानादि प्रसंगे जे कोई बदलावृत्ति धरावता होय ते पण, आवी कथाओमाथी प्रोत्साहन मेळवी धार्मिक अने सामाजिक जरूरीयातो प्रत्ले बेदरकार न रहे, ए कारणथी पण कदाच रचायेली आवी कथाओ जे वर्ग पारलौकिक लाभमां संदिग्ध छे तेने पण निःशंकित करवा मददरूप थाय ए स्वाभाविक छे.. कथाना खामी जिनदत्तना शौर्य, साहस, सहिष्णुता, परगजुपणुं, औदार्य, आयुर्वेदसंगीतादिशालोमां नैपुण्य, तेम ज जैन जैनेतर ग्रंथोर्नु ऊडुं ज्ञान अने त्याग विगेरे गुणो आलेखी ग्रन्थकारे षणिक पुत्र केवो होवो जोईए तेनी हिमायत करी छे. हकीकत पण साची छे. जो संसारवास अनिवार्य मान्यो तो पछी तेमां मायकांगली मनोदशा रहे तेवु शरीरखास्थ्य ते पण एक शापरूप छे. जो आमांथी वणिकपुत्रोने प्रेरणा आपवी न ज होत अने केवळ धर्मकथारूपे ज आ कथा लखवी होत तो, ग्रन्थकार कथानायकने क्षत्रिय के एवी बीजी कोई लडायक जातनो ज बतावत. प्राचीन जैनाचार्योए ते ते युगने अनुरूप विशाळ अने विविध प्रकारना कथासाहित्यनुं सर्जन करी प्रजामानसना विकासमाटे जेवो गौरवपूर्ण प्रयत्न कर्यो छे तेवो प्रयत्न आजना युगने लक्षीने जैन प्रजाए खास करी जैनाचार्योए अने जैन मुनिवर्गे अवश्य करवो जोइए. जो जैन मुनिवर्ग आजे आवी नक्कर प्रवृत्तिओमां पोताना कीमती समयनो सदुपयोग करे तो आजना मुनिवर्गनी केटलीक क्लिष्ट प्रवृत्तिओनो अंत आववा साथे जैनधर्म अने जैनप्रजा उन्नतिना मार्गे अनाबाधपणे गति करे. अने फलतः विश्वनी समग्र प्रजाने जैनसंस्कृतिनी वास्तविकतानुं दर्शन थाय. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002776
Book TitleJindattakhyana Dwaya
Original Sutra AuthorSumtisuri
AuthorAmrutlal Bhojak
PublisherSinghi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai
Publication Year1953
Total Pages122
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size7 MB
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