SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 273
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अतः केन्द्रीय तथा राज्य शासनों को यहाँ वैज्ञानिक उत्खनन कराने की व्यवस्था करनी चाहिए। 7. मूर्तिभंजकों द्वारा काटे गये मूर्तियों के जो सिर वापस मिले हैं उन्हें संग्रहालय में प्रदर्शित न करके सम्बद्ध मूर्तियों से यथास्थान संयुक्त करा देना चाहिए। 8. अधित्यका तक परिवर्धित सड़क और भी परिवर्धित की जानी चाहिए ताकि. नाहरघाटी, राजघाटी, सिद्ध की गुफा और वराह-मन्दिर तक वाहन द्वारा भी पहुंचा जा सके। 9. कला का समुचित मूल्यांकन होना चाहिए। इसके लिए प्रशिक्षित प्रदर्शक, प्रदर्शिका-पुस्तिका और चित्र-कार्डों की व्यवस्था की जा सकती है। कुछ मूर्तियों की 'पेरिस-प्लास्टर' की प्रतिकृतियाँ निर्मित करायी जा सकती हैं। 10. निकटवर्ती स्थानों से समय-समय पर प्राप्त होती रहनेवाली सामग्री का संचय और प्रदर्शन स्थानीय सामग्री से पूर्णतया भिन्न रूप में होना चाहिए, ताकि यहाँ की मौलिक विशेषताओं और उपलब्धियों की भिन्नता बनी रहे। 11. देवगढ़ को एक प्रथम श्रेणी के पर्यटन केन्द्र का रूप दिया जाना चाहिए। मन्दिरों के आसपास उद्यानों की योजना की जा सकती है। हवाई पट्टी का निर्माण कराया जा सकता है। क्षेत्र को अधिकाधिक महत्त्व देने के लिए यहाँ विपुल मात्रा में उपलब्ध लकड़ी और पत्थर के उद्योग बड़े पैमाने पर स्थापित किये जा सकते हैं। वनोपज का ‘डिपो' भी यहाँ स्थापित किया जा सकता है। ____12. यहाँ की कला का मूल्यांकन करनेवाले विद्वानों को प्रोत्साहन मिलना चाहिए। अन्त में यह कहना उपयुक्त होगा कि देवगढ़ की जैन कला की सुरक्षा और मूल्यांकन न केवल एक स्थानविशेष और धर्मविशेष के कारण प्रत्युत प्राचीन भारतीय इतिहास, संस्कृति और पुरातत्त्व के सन्दर्भ में अनिवार्य रूप से आवश्यक है। उपसंहार :: 271 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002774
Book TitleDevgadh ki Jain Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagchandra Jain Bhaskar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy