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होली (परि. दो, अ. चार) गल्हेश, श्रीवल्लदेव, श्री लक्ष्मणपालदेव, क्षेमराज, नयनसिंह, रत्न, पद्मसिंह, वील्ह, पल्हिक, तल्हण, वोल्हण, महीचन्द्र (4), महीन्द्रसिंह (6), साहससिंह (6), श्रीसिंह (9), जसदेव (9 और 20), जुगराज (परि. दो, 5),
खेमराज (वही), अर्जुन (वही), रामदेव (वही), पद्म (वही), नेमिचन्द्र (26), पाहस (20), केशव (20), विरच (इन्द्र) (31), भुवनसिंह (46), गंगक (86), शिवदेव (86), कल्लन (91), प्रभाकर (117), रुद्रवान (118) आदि श्रावकों ने विभिन्न धर्म कार्यों के लिए दान किये थे। इसी प्रकार स्रजासोधरा (111), सागरसिरि (परि. दो, अ. तीन), सालसिरि (वही), उदयसिरि (वही), देवरति (परि. दो, अ. चार), पद्मश्री (वही), रत्नश्री (वही), साविनी (7), सलाखी (7), अक्षयश्री (परि. दो, अ. पाँच), क्षेमा (वही), गुणश्री (वही), पद्मश्री (वही), कालश्री (वही), पूर्णश्री (वही), जसदेवी (इन्दपई), ठकुरानी (12), सदिया (98) आदि श्राविकाओं ने विभिन्न अवसरों पर विविध धर्म कार्यों के लिए दान किये थे।
4. धार्मिक जीवन :
संघ, गण, गच्छ : विवेच्य अभिलेखों में उल्लिखित अनेक संघों,' गणों, गच्छों, आचार्यों, आर्यिकाओं और भट्टारकों आदि के नाम सूचित करते हैं कि देवगढ़ न केवल मन्दिरों और मूर्तियों के लिए ही प्रसिद्ध था, प्रत्युत धर्मात्मा पुरुषों और स्त्रियों के लिए भी प्रसिद्ध था।
साधु-साध्वियों द्वारा धार्मिक कृत्य : यहाँ के अभिलेखों में कमलदेव (58 और परि. 2-1), श्रीदेव' (वही), रत्नकीर्ति' (3, परि. 2-4), देवेन्द्रकीर्ति
1. यहाँ से वोल्हण तक के नाम परि. दो, अभि. क्र. चार में उत्कीर्ण हैं। 2. दे.--मूलसंघ (परि. एक, अभि. तीन), नन्दिसंघ (परि. दो, अभि. तीन), मूलसंघ (परि. दो, अभि.
चार), नन्दिसंघ (वही), मूलसंघ (वही, पाँच) आदि। 3. दे.-बलात्कारगण (परि. दो, अभि. तीन, चार और पाँच)। 4. दे-सरस्वतीगच्छ (परि. एक, अभि. तीन), मदसारदगच्छ (परि. दो, अभि. चार), सरस्वतीगच्छ
(परि. दो, अभि. पाँच) आदि। 5. जै. शि. सं. द्वि., अभि. क्र. 128 । 6. जै. प्र., पृ. 124। 7. (अ) भ., प्रस्ता ., पृ. 16, पा. टि. 29,81, 231, 232, 258, 277, 297, 399, 100, 522, 539,
540, 589 1 (ब) जै. प्र., पृ. 11, 12, 14, 21, 34, 59, 60, 61, 80, 87, 93 । (स) जे. द्वि., पृ. 33, 54, 130 । (द) रा., पृ. 638, 722 ! (इ) वी., लेखांक 1373 । (ई) रा. जे. सं., पृ. 61, 62, 70, 124, 127-30, 132-36, 148, 153, 159, 161, 171, 183, 185, 191, 192 | (उ) अने. (व. 17, कि. एक), पृ. 38, (जून (61), पृ. । । । (ऊ) जैन सिद्धान्त भास्कर, भाग 2), कि. एक, पृ. 58!
260 :: देवगढ़ की जैन कला : एक सांस्कृतिक अध्ययन
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