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देवि श्री-श्रुत-देवते भगवति त्वत्-पाद-पङ्केरुहद्वन्द्वे यामि शिलीमुखत्वमपरं भक्त्या मया प्रार्थ्यते, मातश-चेतसि तिष्ठ मे जिन-मुखोद्भूते सदा त्राहि मां दृग-दानेन मयि प्रसीद भवती सम्पूजयामोधुना।
देव-शास्त्र-गुरु-पूजा, श्लोक 3
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