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2. मं. सं. 11 में स्थित बाहुबली : यहाँ बाहुबली की ऐसी मूर्ति भी उपलब्ध है जिसपर सर्प, बिच्छू आदि तो रेंगते हुए अंकित हैं परन्तु लताओं का आलेखन नहीं है।
3. भरत-बाहुबली : इनके अतिरिक्त भरत-बाहुबली की दो उल्लेखनीय द्विमूर्तिकाएँ' और भी दर्शनीय हैं। पहली द्विमूर्तिका किसी भित्ति के कोने का अंग है, क्योंकि उसके दो ओर मूर्तियाँ हैं। एक ओर बाहबली की कायोत्सर्ग मर्ति है, जिसपर लिपटी हुई लताएँ, रेंगते हुए सर्प और एक छिपकली अंकित है, दूसरी ओर चक्रवर्ती भरत का अंकन है, उनके दायें उनके विशेष चिह्न नव-निधियाँ आदि अंकित हैं। दूसरी द्विमूर्तिका भी किसी भित्ति के कोने का अंग है और उसमें भी इसी प्रकार के अंकन हैं।
4. भरत : साहू जैन संग्रहालय में चक्रवर्ती भरत की नवनिधि सहित एक मनोरम मूर्ति प्रदर्शित है। सादे प्रभामण्डल के अतिरिक्त नौ घड़ों के रूप में नवनिधियाँ प्रदर्शित हैं। केशराशि और मुखमुद्रा अत्यन्त सुन्दर है।
8. आचार्य, उपाध्याय और साधुओं के मूलूकन
(अ) आचार्य-मूर्तियाँ
___1. मं. सं. एक के पीछे जड़ी आचार्य मूर्ति (छत्रधारी श्रावक सहित): आचार्य परमेष्ठी की मूर्तियों में वह सर्वाधिक उल्लेखनीय है जिसमें, मध्य में एक हृष्ट-पुष्ट आचार्य' विराजमान हैं। उनके दोनों ओर एक-एक पुस्तकधारी उपाध्याय परमेष्ठी बैठे हैं, जिनके दायें हाथ खण्डित हैं। आचार्य की मुद्रा किंचित् क्रुद्ध प्रतीत होती है और उपाध्याय भी खिन्न या आतंकित लगते हैं। उपाध्यायों द्वारा किसी त्रुटि के हो जाने पर आचार्य ने कदाचित् उन्हें प्रायश्चित्त दिया होगा। आचार्य के दायें और उपाध्याय के पीछे एक अंजलिबद्ध साधु बाजू में पीछी दबाये विनय से झुका है, दूसरी ओर एक छत्रधारी श्रावक खड़ा है। छत्र की छड़ी खण्डित हो गयी
1. मं. सं. 11 के दूसरे खण्ड के गर्भगृह में स्थित । इस पर सर्पो को हटाते हुए कुछ भक्त भी अंकित
हैं। दे.-चित्र सं. 871 2. मं. सं. दो में अवस्थित फलक क्र. पाँच और छह पर । 3. दे.-चित्र सं. 881 1. दे.-चित्र सं. 891 5. मं. सं. एक के पृष्ठभाग (पश्चिम) में जड़ी हुई। (6-7. दे.-चित्र सं. 771
मूर्तिकला :: 173
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