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सर्वप्रथम होना चाहिए, वे हैं चक्रवर्ती भरत और कामदेव बाहुबली। भरत की मूर्ति के साथ उनकी चक्रवर्तित्व की सूचक नौ निधियाँ (नौ घड़ों के रूप में) (दे. चित्र संख्या 89) अंकित की गयी हैं। यह स्मरणीय है कि उनकी मूर्ति जहाँ भी मिली है, प्रायः द्विमूर्तिका के रूप में ही है। जिनमें दूसरी उनके अनुज बाहुबली की होती है।' इसके विरुद्ध बाहुबली की मूर्ति स्वतन्त्र रूप से भी, बल्कि अपेक्षाकृत अधिक मिली है। ये कामदेव के अवतार माने जाते हैं।
भरत ने अपनी दिग्विजय के सन्दर्भ में जब इनपर भी आक्रमण कर दिया तब विजेता होकर भी ये संन्यासी बन गये। और फिर इन्होंने निरन्तर एक-वर्ष12
1. छह खण्ड पृथ्वी के स्वामी। चक्रवर्ती से सम्बन्धित अन्य ज्ञातव्य बातों के लिए देखिए
(अ) त्रिकालवर्ती महापुरुष, पृ. 174-186 । (ब) बृहत् जैन शब्दार्णव, द्वितीय खण्ड, पृ. 451 । 2. 'मनुश्चक्रभृतामाद्यः षट्खण्डभरताधिपः ।
राजराजोऽधिराट् सम्राडित्यस्योद्घोषितं यशः ॥' -जिनसेन : महापुराण (आदिपुराण), पं. पन्नालाल साहित्याचार्य सम्पादित (काशी, 1951 ई.),
भाग दो, 37-20। 3. अनुपम सौन्दर्य सम्पन्न महापुरुष। इनके नामों तथा अन्य विशेषताओं के लिए द्रष्टव्य
(अ) मुनि आदिसागर; त्रिकालवी महापुरुष, पृ. 200-204 ।
(ब) बृहत् जैन शब्दार्णव, द्वितीय खण्ड, पृ. 419 । 4. 'तत्कालकामदेवोऽभूद युवा बाहुबली बली। रूपसम्पदमुत्तुङ्गां दधानोऽसुमतां मतान्।'
दे.-जिनसेन : वही, भाग 1, पृ. 16-9 । कामदेव-बाहुबली के सौन्दर्य वर्णन के लिए द्रष्टव्य-वही,
16, 10-26। 5. (अ) 'कालाख्यश्च महाकालो नैस्सlः पाण्डुकायाः। पद्ममाणव-
पिङ्गाब्ज-सर्वरत्न-पदादिकाः।
-जिनसेन : म. प., 37-731 (ब) नेमिचन्द्र सिद्धान्त चक्रवर्ती : त्रिलोकसार, पं. मनोहरलाल शास्त्री सम्पादित (बम्बई,
1918 ई.), गाथा 682 1 (स) नवनिधियों के विस्तृत परिचय के लिए द्रष्टव्य-जिनसेन :
महापुराण (आदिपुराण), 37, 73-82 । 6. साहू जैन संग्रहालय में चक्रवर्ती भरत की अकेली मूर्ति भी प्रदर्शित है। दे.-चित्र सं. 89। 7. मं. सं. दो, दे.-चित्र सं. 88। 8. मं. सं. दो, 11, साहू जैन संग्रहालय आदि में दे.-चित्र सं. 86, 87। 9. (अ) महापुराण (आदिपुराण), भाग दो, 36-60 1 (ब) रविषेण : पद्मपुराण, पं. पन्नालाल जैन
सम्पादित (काशी, 1958 ई.). प्रथम भाग, 4-68 | 10. (अ) महापुराण (आदिपुराण), भाग दो, 36-60। (ब) पद्मपुराण, प्रथम भाग, 4-72 । 11. वही, दोनों, क्रमशः 36-104 और 4174-75 । 12. (अ) 'गुरोरनुमतेऽधीती दधदेकविहारिताम् । प्रतिमायोगमावर्षम् आतस्थे किल संवृतः ॥'
-दे.-महापुराण (आदिपुराण), भाग दो, 36-106 1 (व) 'संत्यज्य स ततो भोगान् भूत्वा निर्वस्त्रभूषणः । वर्ष प्रतिमया तस्थौ मेरुवन्निःप्रकम्पकः ॥'
दे.-पद्मपुराण, प्रथम भाग, 4-75 ।
मूर्तिकला :: 171
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