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(ब) भट्टारक : अधोवस्त्र, उत्तरीय, माला। (स) ऐलक : कोपीन, पीछी, कमण्डलु । (ड) क्षुल्लक : कोपीन, खण्ड-वस्त्र (उत्तरीय), पीछी, कमण्डलु। (इ) आर्यिका : साड़ी, उपरिवस्त्र, पीछी, कमण्डलु। 2. गृहस्थ-संस्था (अ) पुरुष : धोती, अंगरखी, तुर्की टोपी, टोपा, फुलपैण्ट, झोली, जनेऊ, केशसज्जा, दाढ़ी, मुकुट, तिलक, कुण्डल, कर्णावतंस, कर्णिका, विभिन्न प्रकार के गलहार, केयूर, कटिसूत्र, पायल। (ब) स्त्रीवर्ग : साड़ी, अवगुण्ठन का अभाव, स्तनपट्टिका, उत्तरीय, टोपियाँ, तिलक, मुकुट, केशसज्जा, आभूषण, वोरला, ललाटिका, मुकुट, कुण्डल, कर्णपूर, हार, अर्धहार, स्तनहार, मोहनमाला, कण्ठश्री (ठुसी), कटिसूत्र, मेखला, केयूर, कंकण, बघमा के चूरा, बोहटा, हथफूल, आरसी, अंगूठियाँ, चूड़ियाँ, पाजेब, पायल, पाँवपोश, घुघरू आदि। 7. आमोद-प्रमोद अनुष्ठान और समारोह, संगीत और नृत्य, वाद्ययन्त्र, अन्य साधन।। 8. आर्थिक जीवन 9. निष्कर्ष
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8. अभिलेख
253-268 1. प्रारम्भिक, 2. अभिलेखों के स्थान और उद्देश्य, 3. अभिलेखों के । अवसर, 4. देवगढ़ के अभिलेखों का अध्ययन। (अ) बाह्य पक्ष
254 (1) स्थान, उद्देश्य और अवसर।
254 (2) वर्गीकरण : 1. दानसूचक, 2. स्तुतिपरक, 3. स्मारक, 4. अन्य। 254 (3) लिपि, भाषा और तिथि।
257 (ब) आन्तरिक पक्ष
257 (1) भौगोलिक महत्त्व : चन्देरीगढ़, पालीगढ़ नगर, लुअच्छगिरि, गोपालगढ़, वेत्रवती, करनाटकी, श्रीमालवनागत्रात। (2) इतिहास की सामग्री : भोजदेव, विष्णुराम पचिन्द, राजपाल, 259 उदयपालदेव, सुलतान महमूद, उदयसिंह (उदेतसिंह,) देवीसिंह (दुर्गासिंह)। (3) समाज का चित्रण : गोत्र तथा उपजातियाँ, सम्मानित पद, उदार श्रावक-श्राविकाएँ।
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