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________________ प्रदक्षिणापथ का प्रवेश-द्वार : गर्भगृह के चतुष्कोण होने से प्रदक्षिणापथ भी चतुष्कोण है। उसके चारों ओर एक-एक द्वार है, उनमें से पश्चिमी अर्थात् मुख्य द्वार अपेक्षाकृत विशाल और अधिक अलंकृत है । इस द्वार का तोरण पूर्ववर्ती नहीं है ओर वर्तमान तोरण इतना कम अलंकृत है कि उसकी समता शेष द्वार से बिलकुल नहीं बैठती। जो भाग अवशिष्ट है उसे ही 'सप्तशाखा द्वार' का उत्कृष्ट निदर्शन मानना होगा। ऐसे द्वारों का प्रारम्भिक रूप गुर्जर-प्रतिहार काल में मिलता है । कलचुरि काल में इनकी प्रधानता हो गयी। नौहटा, बिनेका, पाली, त्रिपुरी, अमरकण्टक, सोहागपुर, रतनपुर, जांजगीर, खरोद, शिवरीनारायण आदि में ऐसे ही द्वार देखे जा सकते हैं । चन्देलकाल में इन द्वारों का प्रचलन कदाचित् और बढ़ा। खजुराहो के प्रायः सभी मन्दिरों में इनकी संयोजना दर्शनीय है । विशेष रूप से वहाँ के विश्वनाथ मन्दिर का प्रवेश द्वार प्रस्तुत द्वार से पूर्णतः समानता रखता है । गर्भगृह का प्रवेश-द्वार : गर्भगृह का प्रवेश द्वार अलंकरण की दृष्टि से प्रदक्षिणापथ के प्रवेश द्वार की अपेक्षा कदाचित् अधिक उत्कृष्ट है । जैसा कि कहा जा चुका है, इसका निर्माण गर्भगृह के साथ नहीं हुआ था । पूर्वोक्त द्वार के पाषाण और आकार-प्रकार आदि में इस द्वार से अत्यधिक समानता को देखते हुए कहा जा सकता है कि उन दोनों का निर्माण एक साथ हुआ था। इस प्रवेश-द्वार के सम्पूर्ण अलंकरण का विश्लेषण यहाँ प्रसंगानुकूल होगा । ड्योढ़ी के मध्य में कल्पवृक्ष की उभरी हुई सज्जा के दोनों ओर स्नेह - क्रीड़ा में मग्न सिंह और हाथी तथा बायें पार्श्वयक्ष और दायें लक्ष्मी का अंकन है । उस पर दोनों ओर तीन-तीन शाखाओं वाले द्वार स्तम्भ स्थित हैं। बाहरी शाखाएँ सिरदल के ऊपरी भाग तक बढ़ती जाती हैं । उनमें सर्वप्रथम एक-एक देवी का और विभिन्न मुखाकृतियोंवाले शार्दूलों का आलेखन है, जिनमें गजमुख और मनुष्यमुख शार्दूल उल्लेखनीय हैं । भीतर की बायीं शाखा में गंगा जिसके साथ नाग भी अंकित हैं, अपनी तीन सहायक - देवियों के साथ चित्रित है । यहीं एक पुस्तकधारी उपाध्याय का आलेखन है । 1. प्रदक्षिणापथ में चारों ओर एक-एक द्वार बनाने की पद्धति अन्यत्र भी थी, जैसा कि नचना के एक मन्दिर का वर्णन करते हुए श्री राखालदास वैनर्जी ने संकेत किया है। दे. - दी एज ऑव द इम्पीरियल गुप्ता (बनारस, 1963), पृ. 1461 2. आजकल इसे लोहे के जालीदार 'शटर' से बन्द किया जाता है। इसका दायाँ पक्ष चित्र संख्या 23 में देखा जा सकता है I 3. दे. -- चित्र संख्या 18 | 4. आजकल इसे लकड़ी के कपाटों द्वारा बन्द किया जाता । Jain Education International For Private & Personal Use Only स्थापत्य :: 107 www.jainelibrary.org
SR No.002774
Book TitleDevgadh ki Jain Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagchandra Jain Bhaskar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size10 MB
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