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तेरसमो उदेसो
पदेसि पल्लाणं कोडाकोशी हवेज्ज वसगुणिदं । तं सागरोषमस्स दु उवमा एक्कस्स परिमाण ॥ दस सागरोवमाण पुष्णालो होति कोरिकोटीको मोसप्पिणीय कालो सो दुस्सपिणीए वि ॥ पाहो सायर सूची पदरो पर्णगुलो य जगसेही । कोगपदगे' य लोगो भट्ट दु माणा मुणेयध्धा ॥ ५ सम्बण्डसाधणय पचक्सपमाण तह य भगुमाण होदि उवमा पमाणे मविरुद्धं भागमपमाणं ॥४ सुहुमंतरिदपदस्थे दूरस्थे जो मुणे गाणेण । सो सम्वह जाणह धूमणुमाणेग जह मग्गी ॥४५ रागो दोसी मोहो तिम्मेदे जस्स गस्थि जीवस्स सो जवि मोसं भादितस्स पमाण हवे वयणं ॥४॥ सो दुपमाणो दुषिहो पन्चक्लो तह य होदि य परोक्तों पक्खो दुपमाणो दुविधो सो होदि णाययो ।४७
बराबर एक सागरोपमका प्रमाण होता है ॥ ११॥ पूर्ण दश कोडाकोड़ी सागरोपम प्रमाण एक अवसर्पिणी काल और उतना ही उत्सर्पिणी काल भी होता है ॥ ४२ ॥ पत्य, सागर, सूभ्यंगुल, प्रतरांगुल, धनागुल, जगश्रेणि, लोकप्रतर और लोक, ये आठ उपमा मानके भेद जानना चाहिये ॥ ४३ ॥ सर्वज्ञसिद्धि के लिये प्रत्यक्ष, अनुमान, उपमा प्रमाण और अविरुद्ध आगम प्रमाण है; अर्थात् इन चार प्रमाणोंके द्वारा सर्वज्ञ सिद्ध होता है ॥ १४॥ जो सूक्ष्म (परमाणु आदि ), अन्तरित ( राम-रावणादि ) और दूरस्थ ( मेरु आदि ) पदार्थोंको प्रत्यक्ष रूपसे जानता है उसे सर्वज्ञ समझना चाहिये, जैसे धूमानुमानसे अनिका ज्ञान ॥ १५ ॥
विशेषार्य- इसका अभिप्राय यह है कि यद्यपि सर्वज्ञकी सिद्धि इन्द्रियप्रत्यक्षके द्वारा सम्भव नहीं है, तथापि उसकी सिद्धि निम्न अनुमान प्रमाणसे होती है- सूक्ष्म, अन्तस्ति ( कालान्तरित) और दूरस्थ (देशान्तरित ) पदार्थ किसी न किसी व्यक्तिके प्रत्यक्ष अवश्य हैं; क्योंकि, वे अनुमानके विषयभूत है; जो जो अनुमानका विषय होता है वह वह किसी न किसीके प्रत्यक्षका भी विषय होता ही है, जैस अग्नि । अर्थात् धूमको देखकर चूंकि अग्निका अनुमान होता है अत एव वह अनुगन की विषयभूत है, और इससे वह अनेक व्यक्तियों के लिये प्रत्यक्ष भी है। इसी प्रकार चूंकि उपर्युक्त सूक्ष्मादि पदार्य भी अग्नि के ही समान अनुमान के विषयभूत है, अत एव वे भी किसी न किसी के प्रत्यक्ष अवश्य होने चाहिये । अब इनका जो प्रत्यक्ष ज्ञाता है वही सर्वज्ञ है। इस अनुमानसे सर्वज्ञ सिद्ध होता है ।
जिस जीवके राग द्वेष और मोह ये तीन दोष नहीं हैं वह असल्य भाषण नहीं करता, अत एव उसका वचन प्रमाण होता है ॥४६॥ वह प्रमाण प्रत्यक्ष और परोक्षके भेदसे दो प्रकार है। इनमें जो प्रत्यक्ष प्रमाण है वह भी दो प्रकार जानना चाहिये-- प्रथम सकल प्रत्यक्ष र
.क उवमा एकम्म परिमाणं, पब उवमा परिमाणं. २ उ सो चोदुस्सप्पिणिए वि, पब सो चेतसप्पिणीए कि, श सो बोस्सप्पिणिए वि. ३ उ श पदरो यर्णालो. ४ उ श उगसेटी. ५.उशोगापरले, कपबरो.. पदके पन्चमबोपबयते पश्चाजोपबोपन्चकोटिपरोपको
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