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एक्कारसमो उद्देस
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खग्गसहस्वगूर्ड' मणिकंचणरयणभूसियसरीरं । किं बहुणा तं खर्ग' अच्छेश्यसारसंभूदं ॥ २२८ तस्स बहुमज्झदेसे' रमणिज्जुज्जर्लेविचितमणिसोहं । सिंहासणं सुरम्मं सपायपीठं भणोवमियं ॥ २२९ सो त सुहम्मदी वरचामरविज्ञमाण बहुमाणो | संतुट्ठसुद्द निसण्णो से विज्जई सुरसहस्सेहि ॥ २३० तं व सुहम्मवरसभं सिंहासनमुसमं सुरिंदं च । अच्छरसाण य सोहं को वण्णेदुं समुच्छहदि ॥ १३१ दिग्यविमाणसभाए तीए अच्छेरेंरूवकलिदाए । को उवमाणं कीरडे तिहुयणसारेक्कसाराएँ ॥ २३२ को व भणोषमरूवं रूवं उथमेज्ज अण्णरूवेर्णे । भ्रमराद्दिवस्स सयढं अचम्भुदरूवसारस्यें ॥ २३३ जोयणसयं समद्दियं सा तस्तै सभा सभावणिम्माद । भरइ निरंतरणिचिदा देवेहि महाणुभावेहि" ॥ १२४ विलसंतघयवडाया मुत्तामणिहेमजालकयसोहा | पुढषीवर परिणामा निष्यचिदें सुरहिमल्केहिं ॥ २३५
स्वग्ग (!) है ।। २२७ ॥ उक्त खग्ग इजारें। खड्गों से आलिंगित तथा मणि, सुवर्ण एवं रत्नों से भूषित शरीरवाल है । बहुत कहनेसे क्या ? वह खग्ग आश्चर्यजनक श्रेष्ठ द्रव्योंसे उत्पन्न हुआ है ॥२२८॥ उसके बहुमध्य भागमें रमणीय, उज्ज्वल व विचित्र मणियोंसे शोभायमान एवं पादपीठ से सहित सुन्दर अनुपम सिंहासन है ॥ २२९ ॥ उसके ऊपर संतुष्ट होकर सुखपूर्वक स्थित वह सौधर्म इन्द्र उत्तम चामरोसे वीज्यमान व बहुत सन्मानको प्राप्त होकर हजारों देवोंसे सेवित है ॥ २३० ॥ उस उत्तम सुधर्मा सभा, उत्तम सिंहासन, सुरेन्द्र और अप्सराओंकी शोभाका वर्णन करने के लिये कौन उत्साहित होता है ? अर्थात् कोई भी उनका वर्णन करनके लिये समर्थ नहीं है || २३१ ॥ आश्चर्यजनक रूपसे सहित और तीनो लोकोंकी सारभूत वस्तुओं में अद्वितीय उस दिव्य विमानसभा के लिये कौनसी उपमा की जाय ? अर्थात् वह सर्वश्रेष्ठ होने से उपमातीत है || २३२ ॥ अत्यन्त आश्चर्यजनक श्रेष्ठ रूपसे संयुक्त उस सुरेन्द्र के अनुपम सुन्दरता से परिपूर्ण समस्त रूपकी अन्य किसके रूपसे तुलना की जा सकती है ! अर्थात् नहीं की जा सकती ॥ २३३ ॥ एक सौ योजन से कुछ अधिक व स्वभावसे निर्मित वह सौधर्म इन्द्रकी सभा महान् प्रभाववाले देवोंसे निरन्तर भरी रहती है || २३४ ॥ शोभायमान वजा-पताकाओंसे सहित; मोतियों, मणियों व सुवर्णके समूहसे की गई शोभासे सम्पन्न, पृथिवी के उत्तम परिणाम
१ उ श चाग्नसहस्वगूढं. २ उ खग्नं, श खस्सं. ३ क व बहुदेसमन्. ४ ब वरविज्जल ५ श तस्स. ६ उ संचिट्ठमुहतिसनो विब्जर, क प य संचिट्ठमुहणिण्णो सेविन्जइ, श संचिट्ठएहतिसको सेवज्जह. तत्य सुहम्मदं. श सुहम्मवरहंसहं. ८ उ सोहं को वणे, क सोक्खं को वण्णे, श सोहं को बजे अमराहिवस्स बणे नं. ९ क व समुव्बाइ १० उश समाप् अच्छे ११ क कोवमाणपमाणं कीरह, व को सवमाणपमाणं की इ. १२ ब तिहुयणसारिकसाराए. १३ उ रा अभीवमरूवं उबमिब्ज अणरावेण १४ उ अचम्भदतूक्सारस्य श अच्चभ्वदतबसारस. १५ उ व श तत्थ १६ व जिम्मदा १७ उ निरिदादिम्बेहि सहानुमानेहि, श निरिवादिग्वेहि सदाभावेहि १८ क विलसति १९ क निन्चंद, व निभ्वंचद, श निश्चियः
नं. डी. १०.
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