________________
- ११. १६२ ]
एक्कारसमो उदेस
[ २०१
विसयासत्ता जीवा कसायलेस्सुक्कडा य लोहिल्ला' । दारुणमंसाहारा पडति णरए दुरायारा ॥ १५६ पिसुणासया ये चंडा मच्छरिया चोरकवर्डमायावी । जिंदणवधकरणरदा पडंति णिरए खडखडत ॥ १५७ जोयणसयप्पमाणा तत्तकवल्लिम्हि ते दु छुन्भंति' । डज्यंति धगधगत महिसोरडिगं करेमाणा ॥ १५८ हम्मति ओरसंता दढप्पहारेहि णरयपालेहि' । छिंदेति तडतडेंता' वज्जकुढारेहिं बेत्तणं ॥ १५९ भज्जंति" कडकडेहि हड्डुइं चूरंति' लउडपहरेहि । बंधेवि अग्गिमज्झे छुहंति जमदूव रोसेहिं ॥ १६० रोवंति य विलवंति य पायपडतम्मि णाहि" मेल्लंति । पीडति चादुरोधों काऊ छुहंति चुल्लीसु ॥ १६१ तत्तकालिहिं छुद्ध अण्णे खरफरुसवज्जसूलेहिं । अण्णे वहतरणीहि य खारणदीएहि छुम्भंति ॥ १६२
3
*
E
९
1
तीव्र कषाय व दुर्लेश्यासे सहित हैं, लोभसे युक्त हैं, क्रोधी हैं, तथा मांसभोजी हैं वे नरकों में पड़ते हैं ॥१५६॥ जो जीव पिशुनाशय अर्थात् परनिन्दा रूप अभिप्रायसे सहित, क्रोधी, मात्सर्य भावसे संयुक्त, चोर, कपटी, मायाचारी तथा परनिन्दा व जीवहिंसा करनेमें तल्लीन हैं वे खडखड नरक ( चतुर्थ पृथिवीका अन्तिम इन्द्रक बिल ) पर्यन्त नरकमें पड़ते हैं ॥ १५७ ॥ [ इन नरकोंमें परस्पर ] a नारकी वहां सौ योजन प्रमाण संतप्त कड़ाहीमें डाले जाते हैं, जहां वे महिषके समान रुदन करते हुए धग्-धग् शब्दपूर्वक जलते हैं ॥ १५८ ॥ वे रुदन करते हुए नरकपालों अर्थात् अम्बावरीष जातिके असुरकुमारोंके द्वारा दृढ प्रहारोंसे मारे जाते हैं । वे उन्हें पकड़ कर वज्रके समान कठोर कुठारोंके द्वारा तड़-तड़ शब्दपूर्वक छेदते हैं ॥ १५९ ॥ यमके दूतोंके समान वे क्रुद्ध होकर उन्हें कड़-कड़ शब्दोंके साथ भग्न करते हैं, डंडोंके प्रहारों द्वारा उनकी हड्डियों को चूर-चूर करते हैं, तथा बांधकर अग्निके मध्यमें डालते हैं ॥ १६० ॥ इस अवस्थामें वे नरकी रोते व विलाप करते हैं। पैरोंमें गिरनेपर भी वे असुरसमूह उन्हें छोड़ते नहीं हैं, किन्तु पीड़ा देते हैं। चारों ओरसे अवरुद्ध करके वे उन्हें चूल्हों में फेंकते हैं ।। १६१ || दूसरे कितने ही नारकी संतप्त कड़ाही में फेंके जाते हैं, तथा कितने ही अन्य नारकी तीक्ष्ण स्पर्शवाली वज्रशूलियोंपर व क्षारनदी वैतरिणी में फेंक दिये जाते हैं ।। १६२ ॥ कितने ही पापी नारकी वसा, रुधिर एवं पीवके
१ उश लेसुक्कडा य लोहिल्ला, क लेसुक्कडा य लोभिक्खा, ( बप्रतौ त्रुटितेयं गाधा ) २ उ क पिसुणासदा य, व पिसुणासंदा य, श पिणासट्टा य. ३ उ कव्वड, श कव्त्रण. ४ क ब खडखर्डेता. ५ उ श तत्तक्रववीहि ते दु च्छब्भंति, क तत्तकवल्लीहिं ते दु बुझंति, ब तत्ताकवलीहिं ते दु छुशंति. ६ क डब्भंति धगधगेता. श इज्यंति धगडता. ७ ब उरसंता. ८ उ श स्यगपालेहि ९ उ श छिंदंति तडितडिता. ब छिंदंति तडतडता. १० उ वज्जावुढारेहि घेत्तणं, श वज्जुकडारेहि गंतूणा. ११ व वज्जंति. १२ उ हदुइं चूरंति, क हृद्दई चूरैति, ब हद्दइ चूरेहि, शहदुहं तूरति. १३ क पहरेहिं, ब पउरेहिं, श यहरहि, १४ ब बंधवि. १५ क णाहिं, बणा. १६ क पी ंति, १७ उ श चादुरोधा, क चादुचोप्पा, ब चादुरोप्पा. १८ उ तत्तकवलिहिं च्छूडा, क तत्तवल्लिहिं छूटा, ब तत्तवल्लिहिं छूटा, श तत्तकाल्लिहि छूढा. १९ उ खारणदीये य छुब्भंति, श खारणदीए ए छुभंति. जं. दी. २६.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org