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________________ ११८ जंबूदीवपण्णत्तिकी प्रस्तावना वशमें करके यह विजया पर्वतकी गुफार्मेसे जाकर उत्तरके म्लेच्छ खण्डोंको भी अपने अधीन करता है। उस समय म्लेच्छ राजाओंकी प्रार्थनापर मेघमुख नामका देव चक्रवर्तीकी सेनापर घोर उपसर्ग करता है, फिर भी चक्रवर्ती के प्रभायसे उसमें किसी प्रकारका क्षोभ नहीं होता । इस समय समस्त सैन्यका रक्षण चर्मरत्न और छत्ररत्न के द्वारा होता है । अन्तमें वह इन म्लेच्छ राजाओंपर केवल विजय ही प्राप्त नहीं करता, बलि उनके द्वारा हाथी और घोड़ों आदिके साथ ही अनेक कन्या-रत्नोंसे भी सत्कृत होता है । इस समय उसे यह महान गर्य होता है कि मुझ जैसा प्रतापी पृथिवीपर अन्य कोई भी नहीं है। इसी अभिमानसे प्रेरित होकर वह निज कीर्तिस्तम्भको स्थापित करनेके लिये ऋषभगिरिके निकट जाता है। किन्तु यहां समस्त पर्वतको ही नाना चक्रवर्तियोंके नामोसे व्याप्त देखकर वह तत्क्षण निर्मद हो जाता है। अन्तत: वह दण्ड रत्नसे एक नामको विसकर वहां अपना नाम लिख देता है। इस प्रकार वह छहों खण्डोंको जीतकर वापिस क्षेमा नगी में प्रविष्ट होता है। (८) आठवें उद्देशमें १९८ गाथायें हैं। यहां पूर्वविदेहका वर्णन करते हुए बतलाया है कि कच्छा देशके पूर्वमें क्रमशः चित्रकूट पर्वत, सुकच्छा देश, ग्रहवती नदी, महाकच्छा देश, पद्मकूट पर्वत, कच्छकावती देश, द्रहवती नदी, आवर्ता देश, नलिनकूट पर्वत, मंगलावर्ता देश, पंकवती नदी, पुष्कला देश, एकशैल पर्वत और महापुष्कलावती देश है । इसके आगे देवारण्य नामका वन है । उक्त सुकच्छा आदि देशोंकी राजधानियोंके नाम क्रमसे ये हैं- क्षेमपुरी, अरिष्टनगरी, अरिष्टपुरी, खड्गा, मंजूषा, औषधि और पुण्डरीकिणी । महापुष्कलावती देशसे आगे पूर्वमें देवारण्य नामका वन है ।। ___ इसके आगे दक्षिणमें सीता नदीके दक्षिण तटपर दूसरा देवारण्य वन है । इसके आगे पश्चिम दिशामें जाकर क्रमसे निम्न देश, पर्वत और नदियां हैं - वत्सा देश, त्रिकूट पर्वत, सुवस्सा देश, तप्तजला नदी, महावत्सा देश, वैश्रवणकूट पर्वत, वत्सकावती देश, मत्तजला नदी, रम्या देश, अंजनगिरि पर्वत, सुरम्या देश, उन्मत्तजला नदी, रमणीया देश, आत्मांजन पर्वत और मंगलावती देश । इन देशोंकी राजधानियां क्रमश: ये हैंमुसीमा, कुण्डला, अपराजिता, प्रभंकरा, अंकावती, पद्मावती, शुभा और रत्नसंचया नगरी । इन नगरियोंका वर्णन क्षेमापुरीके समान है । इन सब देशों, नदियों और पर्वतोंकी लम्बाई समान रूपसे १६५९२२० यो. मात्र है। समानताका कारण यह है कि इनमेंसे कच्छा-सुकच्छा आदि नील पर्वतकी वेदिकासे लेकर सीता नदीके तट तक तथा वत्सा-सुवत्सा आदि निषधपर्वतकी वेदिकासे लेकर सीता नदीके तट तक आये हुये हैं। अत एव विदेहके विस्तार से सीता नदीके विस्तारको कम करके शेषको आधा कर देनेपर इनकी लम्बाईका उपर्युक्त प्रमाण आ जाता है । जैसे- ३३६८४१५ - ५०० + २ = १६५९२३२६ । (९) नौवें उद्देशमै १९७ गाथायें हैं । यहां अपरविदेहका वर्णन करते हुए बतलाया है कि रत्नसंचयपुरके पश्चिममें एक वेदिका और उस वेदिकासे ५०० यो. जाकर सौमनस पर्वत है। यह पर्वत भद्रशाल, वनके मध्यसे गया है । निषध पर्वतके समीपमें उसकी उंचाई ४०० यो. और अवगाह १०० यो. है । विस्तार उसका ५०० यो. मात्र है। फिर इसी पर्वतकी उंचाई और अवगाह क्रमशः वृद्धिंगत होकर मंदर पर्वतके समीपमें ५०० और १२५ यो. हो गये हैं । इसकी लम्बाई ३०२०९,६. यो. है । सौमनस पर्वतसे ५३००० यो. पश्चिममें जाकर विद्युत्प्रभ नामका पर्वत है । इसकी उंचाई आदि सौमनस पर्वतके समान है । इसके पश्चिनमें ५०० यो. जाकर एक वेदिका है। उपर्युक्त वेदिकाके पश्चिममें पद्मा नामका देश है । यह गंगा-सिन्धु नदियों और विजयाध पर्वतके वारण ६ खण्डोंमें विभक्त हो गया है। इसकी राजधानी अश्वपुरी है। इस पदमा क्षेत्रके आगे पश्चिममें क्रमशः Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002773
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year2004
Total Pages480
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Mathematics, & agam_jambudwipapragnapti
File Size10 MB
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