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तिलोयपण्णत्तिका गणित
गा. ७, ४९३ - जिस नक्षत्र का अस्त होता है उस समय उससे १६वां नक्षत्र उदय को प्राप्त होता है । गणना स्पष्ट है, क्योंकि दिन और रात्रि में १८ : १२ आदि का अनुपात रहता है, इसलिये स्थूल रूप से १७ और ११; १६ और १२ आदि नक्षत्र क्रमशः ताप और तम क्षेत्र में रहते होंगे ।
गा. ७, ४९८ - सूर्य, चन्द्र और ग्रहों का गमन कुंचीयन या समापन कुन्तल ( winding spiral) असमापन कुंतल ( unwinding spiral ) में लेता है पर नक्षत्र तथा तारों का 'भयनों का नियम' नहीं है।
गा. ७, ४९९ - सूर्य के छः मास ( एक अथन ) में १८३ दिन-रात्रियां तथा चंद्रमा के एक अयन में १२ दिन होते हैं ।
६३० १५०
रेडियन का कोण आपतित
१००५४२
१००५ १०९८००
पुनर्वसु आदि १००५X३ शेष १० रेडियन का कोण
""
२०६८००
१०६८००
करता है। शतभिषक आदि आपतित करते हैं। ये एक चंद्र के नक्षत्र है। इसी प्रकार से दूसरे चंद्र के भी नक्षत्र है। ३०४४८ गा. ७, ५१० - सूर्य, चंद्रमा की अपेक्षा, तीस मुहूर्ती या घंटों में घ× ६० ३०x४८ अधिक शीघ्र गमन करता है । तथा, नक्षत्र सूर्य की अपेक्षा ६० शीघ्र गमन करते हैं ।
६२ ६२
गा. ७, ५१५ - इसके पश्चात् भिन्न २ नक्षत्रों में सूर्य या चंद्र कितने काल तक गमन करेंगे यह आपेक्षिक प्रवेग ( relative velocity ) के सिद्धांत पर निकाला गया है । जैसे, अभिजित नक्षत्र के सम्बन्ध में (जिसका विस्तार ६३० गगनखंड है ), सूर्य का आपेक्षिक प्रवेग अभिजित नक्षत्र को विश्रामस्थ मान लिया जाने पर १ दिन में १५० गगनखंड है । इस प्रकार, सूर्य अभिजित नक्षत्र के साथ ६३० × ३० x ४८ घंटे गमन करेगा ।
१५०×६०
६३० १०९८००
गा. ७, ५०१ - अभिजित नक्षत्र का विस्तार आंख पर -
• दिन या ४ अहोरात्र और ६ मुहूर्त अधिक अथवा
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गा. ७, ५२१ - इसी प्रकार अभिजित नक्षत्र की अपेक्षा ( इसे विश्रामस्थ मानकर ) चन्द्रमा का आपेक्षिक प्रवेग १ मुहूर्त में ६७ गगनखंड है, क्योंकि इतने समय में चन्द्रमा नक्षत्रों से १ मुहूर्त में ६७ गगनखंड पीछे रह जाता है। अभिजित नक्षत्र का विस्तार ६३० गगनखंड है, इसलिये इतने खंड तय करने में चन्द्रमा को
करेगा । यह समय
घंटे
घंटों में ६ × घंटे अधिक
६१ ६०
= ९३७ मुहूर्त लगेंगे। इतने समय तक चन्द्रमा अभिजित नक्षत्र के साथ गमन घंटे है । इसे त्रिलोकसार में आसन्न मुहूर्त कहा गया है ।
गा. ७, ५२५ आदि- सूर्य के एक अयन में १८३ दिन होते हैं। दक्षिण अयन ( annual southward motion ) पहिले और उत्तर अयन ( northward annual motion ) बाद में होता है। आषाढ़ शुक्ला पूर्णिमा के दिन अपरान्ह समय में पूर्ण युग की समाप्ति ( ५ वर्ष की समाप्ति ) होने पर उत्तरायण समाप्त होता है । इस समय के पश्चात् नवीन युग प्रारम्भ होता है। पांच वर्ष में १२ × ५ = ६० दिन अथवा दो माह बढ़ते हैं, क्योंकि सूर्य के वर्ष के ३६६ दिन माने गये हैं । सूर्य की अपेक्षा से चन्द्रमा का परिभ्रमण २९३ दिनों में होता है । इसलिये चन्द्र वर्ष २९३ × १२ = ३५४ दिन का होता है । इस प्रकार एक चन्द्रवर्ष सूर्यवर्ष से १२ दिन छोटा होता है इसलिये एक युग या पांच वर्ष में चन्द्र वर्ष के युग की अपेक्षा ६० दिन या २ मास अधिक होते हैं। उत्तरायण की समाप्ति के पश्चात् दक्षिणायन भावण मास के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा के दिन जब कि अभिजित नक्षत्र और चन्द्रमा का योग रहता है, प्रारम्भ होता है, वही नवीन पांच वर्षवाले युग का प्रारम्भ है ।
पूर्ण
ति, ग. १३
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