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________________ (१६) १० गच्छमर्यादापट्टकनिर्माणम् एतर्हि संसारे जातीयं धार्मिकं सामाजिकं च चिरस्थायित्वं वस्तुतस्तदीयमर्यादाऽऽयत्तमेव वर्वर्ति, अत एनां जनान् ज्ञापयितुं तदनुसारिणी प्रवृत्ति प्राधान्येन प्रवर्तयितुं च प्राच्या आप्ता प्राचार्याः प्रतिवेलं बहून् नीतिग्रन्थान् मर्यादापट्टकानि च निरमिमत । अमुमेव शिष्टाचारमभिलक्ष्य श्रीमद्विजयराजेन्द्रसूरीश्वरैः सर्वत्राऽऽत्मगच्छे साम्यतया तत्प्रवृत्तये मालव-मरुधरीयनृगिरा स्वगच्छीयमर्यादापट्टकं व्यधायि । तथाहि स्वगच्छीयमर्यादा-पट्टकम् । " श्रीहुजूर फुरमावे हे के साधु, साध्वी, श्रावक, श्राविकाओंने मर्यादा पालणी तथा क्रिया करणी सो लिखते हैं, इस मुजब पालणी और करणी. (१) चैत्यवन्दनविधि-चैत्यवन्दन, नमुत्थुणं०, अरिहंतचेइ०, वंदणवत्ति०, अन्नत्थ० १नोकारनो काउस्सग्ग पारी, नमोऽर्ह० थुई १, लोगस्स०, सव्वलो०, वंदण०, अन्नत्थ० १नोकारनो कायोत्सर्ग पारी, थुई२, पुक्खरवरदी०, सुअस्स भग०, वंदण०, अन्नत्थ. १नोकारनो काउस्सग्ग पारी नमोऽर्ह ० थुई३, सिद्धाणं बुद्धाणं, हेठा बेठी नमुत्थुणं०, जावंति०, इच्छामि०, जावं० इच्छा० स्तवन भणुं ? नमोऽर्ह ०, उवसग्गादि तवन जय वीयराय संपूर्ण कही, दूजा चैत्यवन्दन न कहणा, लगते ही भगवान हं इत्यादि चार खमासणा, पछे पडिक्कमणो ठावणो. चैत्यमें पण चैत्यवंदन उत्कृष्ट एसेही जाणना. (२) सामायिकविधि पूर्वे करो जेसे ही, ओर जो गुरुवंदन करणा होय तो ईरियावही करने द्वादशावर्त करके करणा. (३) ठावारो पाठ ' इच्छं सव्वसवि' सब जणा साथे कहणा, न आवे तो सर्व जणा साथे 'मिच्छामि दुक्कडं ' देणो. एसे ही वंदेतु बाद में ' सव्वसवि' तथा अंत में 'वंदामि जिणे चउवीसं ' सर्वजणा साथे करणा. (४) ओर सामायिक पडिक्कमण चैत्यवंदनविधि चोपडी में हे ज्यु ही करणा. (५) पूजादिविशिष्ट कारणे चोथी थुई कहणे में ना नहीं कहणा, नंदी प्रमुखमें भी एसे ही जाणना. (६) रत्नाधिक विना दूसरे साधुकुं वांदणा देणा नहीं, दोय समासमण देइ 'इच्छकार' पूछणा. साध्वीने उभा ' मत्थएण वंदामि' कहणा. (५) रलाधिक विना सामेला प्रमुख करणा नहीं, प्राचार्यसे उतार उपाध्याय का करणा, जय गुरु की ही बोलणा, सबों की बोलणा नहीं. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002772
Book TitleKalpasutrartha Prabodhini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendrasuri
PublisherRajendra Pravachan Karyalay Khudala
Publication Year1933
Total Pages408
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_kalpsutra
File Size10 MB
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