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________________ ५५ श्रेणिक पुराणम् है वह स्त्री बँधी हुई है अथवा खुली हुई कुमार के इस प्रकार के वचन सुनकर इन्द्रदत्त ने विचारा कि यह कुमार अवश्य पागल है इसमें किसी प्रकार का सन्देह नहीं ॥१६८-१७१॥ अन्यदा मृतमावीक्ष्य नीयमानं जनैर्नरम् । दहनार्थं स पप्रच्छ वणिज विनयान्वितः ॥१७२॥ पंचत्वं प्राप्तवानद्य पूर्वं वा वद मां प्रति । द्वापरो वर्त्तते चित्ते मामकीने च मातुल ॥१७३।। इस प्रकार अपने मन में कुमार के पागलपने का दृढ़ विश्वास कर फिर भी दोनों आगे को बढ़े आगे चलते-चलते उन्होंने जिसको मनुष्य जलाने के लिए ले जा रहे थे एक मरे हुए मनुष्य को देखा। मृत मनुष्य को देखकर फिर भी कुमार श्रेणिक को शंका हुई और शीघ्र ही उन्होंने सेठ इन्द्रदत्त से धर पूछा कि हे माम ! मुझे शीघ्र बतावें कि यह मुर्दा और मरा है कि पहले का मरा हुआ है॥१७२-१७३॥ सुपक्वं फलितं रम्यं गंधाकृष्टमध्रुवतं । जला फलनम्रांगं शालिवप्रं विलोक्य सः ॥१७४।। उक्तवानिति हे श्रेष्ठिन् स्वामिना फलमस्य वै । क्षेत्रस्य भोक्ष्यतेऽभोजि ब्रूहि मां मे मनोगतं ।।१७।। आगे बढ़कर कुमार श्रेणिक ने भली प्रकार पके हुए फलों से रम्य, फलों की उत्तम सुगन्धि से जिसके ऊपर भौंरा गुंजार कर रहे हैं। जो जल से भीगे हुए फलों से नीचे को नम रहा है एक उत्तम शालिक्षेत्र देखकर कुमार ने फिर सेठी इन्द्रदत्त से प्रश्न किया कि हे माम ! शीघ्र बताइए इस क्षेत्र का मालिक इस क्षेत्र के फलों को खावेगा कि खा चुका है।।१७४-१७५।। बाह्यमानं नरैर्वप्रेहलं प्रेक्ष्य नराधिपः । कतिडालानि वर्त्तते हले मां वद सत्वरं ॥१७६।। आगे चलकर किसी एक नवीन क्षेत्र में हल चलाता हुआ एक किसान मिला उसको देखकर फिर कुमार श्रेणिक ने प्रश्न किया कि हे श्रेष्ठिन् ! जल्दी बताइये इस हल पर हल के स्वामी कितने हैं ॥१७॥ बदरीवृक्षमावीक्ष्य पृष्टवानिति पुंगवः । वर्त्तते कंटका वृक्षे कियंतो मातुल ।।१७७॥ तथा आगे बढ़कर एक बदरी वृक्ष, दृष्टिगोचर हुआ उसे देखकर फिर भी कुमार ने सेठी इन्द्रदत्त से पूछा कि हे मातुल ! कृपा कर मुझे बताइये कि इस बेरिया के पेड़ में कितने कांटे हैं ॥१७॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002771
Book TitleShrenika Charitra
Original Sutra AuthorShubhachandra Acharya
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size18 MB
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