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________________ श्रेणिक पुराणम् अत्यंत उत्कृष्ट, भाग्यवती तिलकवती को महाराज उपश्रेणिक नाना प्रकार की क्रीड़ाओं से सन्तुष्ट करते थे। तथा मोह से नाना प्रकार की काम पैदा करनेवाली चेष्टाओं को करनेवाली,, अत्यंत मनोहर, अपने शरीर को दिखानेवाली अत्यंत प्रौढ़ा, देदीप्यमान वस्त्रों से शोभित, मुकुटजड़ित मणियों की किरणों से अधिक शोभायमान, अत्यंत निर्मल रूपवाली और पुण्य की मूर्ति, तिलकवती भी अपने हाव-भावों से, नाना प्रकार के भोग-विलासों से महाराज उपश्रेणिक के साथ क्रीड़ा कर उन्हें तृप्त करती थी॥९६-९८॥ हावैर्भावविलासैविरमयति नृपम् सापि मोहानुभावात्......... कुर्वती कामचेष्टां सुभग निजतनुं दर्शयंती प्रगल्भां चंचद्वस्त्रासभूषा मुकुटमणिकरालंकृता तार हारा स्वर्गाधीशं शचीवा विशदगुणगणालंकृतापुण्यरूपा ॥ ६६ ॥ धर्माज्जन्मकुले सतां भवति वै धर्माद्वरं मंदिर, धर्माद्रपवती सती शुभलता सीमंतिनी जायते । धर्माद्भतिरनाकुला शिवसुखं धर्मान्महानंदता, मत्त्वा धर्मफलं कुरुध्वमखिलं राज्यादिनाकाप्तिकं ॥१००॥ इति श्रेणिक भवानुबद्ध भविष्यत्पत्मनाभ तीर्थकर-चरित्रे भट्टारक श्रीशुभचंद्राचार्य विरचिते उपधेणिक नगरप्रवेशनं नाम द्वितीयः सर्गः ।।२।। सच है धर्मात्मा प्राणियों को धर्म की कृपा से ही उत्तम कुल में जन्म मिलता है धर्म की कृपा से ही उत्तमोत्तम राजमंदिर मिलते हैं धर्म के माहात्म्य से ही मनोहर रूपवाली भाग्यवती सती सर्वोत्तम स्त्री-रत्न की प्राप्ति होती है, धर्म से ही समस्त प्रकार की आकुलता रहित विभूति प्राप्त होती है, एवं अत्यंत आनंद को देनेवाले धर्म से ही मोक्ष-सुख भी मिलता है। इसलिए उत्तम मनुष्यों को उचित है कि वे उत्तमोत्तम राज्य, स्वर्ग, मोक्ष इत्यादि सुखों के प्राप्त करानेवाले धर्म के फलों को भलीभाँति जानकर धर्म में अपनी बुद्धि को स्थिर कर धर्म को धारण करें॥६९-१००॥ इस प्रकार महाराज श्रेणिक के जीव भविष्यतकाल में होनेवाले श्री पद्मनाभ तीर्थंकर के चरित्र में भट्टारक श्री शुभचन्द्राचार्य विरचित महाराज उपश्रेणिक के नगर-प्रवेश को कहनेवाला द्वितीय सर्ग समाप्त हुआ। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002771
Book TitleShrenika Charitra
Original Sutra AuthorShubhachandra Acharya
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size18 MB
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