SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 40
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्रेणिक पुराणम् २७ न जाने तनुजो राजन् भवितास्यां न वा शुभः । कदाचिज्जातवान्पूर्व पुत्रपादप्रघर्षणात् ॥ ७१ ॥ दुःखभाग् जायते नूनं सुतदुःखेन दुःखिनी।। सुता मम भवेन्नूनं पराभववशंगता ।। ७२ ।। न दास्यामि महाराजन्नतः पुत्रींमम प्रियां । विधास्यसि व्रतंचेत्थं यदितुभ्यं ददाम्यहं ॥ ७३ ॥ कदाचिन्मम पुत्र्याश्च तनुजो यदि जायते । तस्मै राज्यं प्रदातव्यमिति नियमो विधीयतां ॥ ७४ ॥ तहि दास्यामि पुत्रीं मे नान्यथेतिवचो मम । तत्रथेति प्रपद्यासौ मागधः परिणीतवान् ।। ७५ ॥ महाराज उपश्रेणिक के इस प्रकार के वचनों को सुनकर राजा यमदंड ने इस विनयभाव से कहा कि हे प्रभो कहाँ तो आप समस्त मगध देश के प्रतिपालक ? और कहाँ मेरी अत्यंत तुच्छ यह कन्या? हे महाराज देवांगनाओं के समान अतिशय रूप और सौभाग्य की खानि आपके अनेक रानियाँ हैं। तथा कुमार श्रेणिक को आदिले आपके ही पुत्र हैं जो अतिशय बलवान, धीर और समस्त पृथ्वी-तल की भली प्रकार रक्षा करनेवाले हैं। इसलिए अत्यंत तुच्छ यह मेरी प्यारी पुत्री प्रथम तो आपके किसी काम की नहीं यदि दैवयोग से इसका सम्बन्ध आपसे हो भी जाय? तो हे प्रभो, क्या यह अन्य रानियों द्वारा घृणा की दृष्टि से देखी जाने पर उस अपमान से उत्पन्न हुई पीड़ा को सहन कर सकेगी? और हे प्रजापालक! प्रथम तो मुझे विश्वास नहीं कि इसके कोई पुत्र होगा? कदाचित दैवयोग से इसके कोई पुत्र भी उत्पन्न हो जाय और श्रेणिक आदि कुमारों का वह सदा दास बना रहे, तो भी उसको अवश्य दुःख ही होगा, और पुत्र के दुःख से दुःखित यह मेरी प्राणस्वरूप पुत्री अन्य रानियों द्वारा अवश्य ही अपमानित रहेगी? इसलिए उपरोक्त दुःखों के भय से मैं अपनी इस प्यारी पुत्री का आपके साथ विवाह करना उचित नहीं समझता। हाँ, यदि आप मुझे इस प्रकार का वचन देवें कि जो इससे पुत्र उत्पन्न होगा वही राज्य का उत्तराधिकारी बनेगा तो मैं हर्षपूर्वक आपकी सेवा में अपनी पुत्री को समर्पण कर सकता हूँ। आप जो उचित न्याय एवं अन्याय समझें सो करें आप मेरे स्वामी हैं और मैं आपका सेवक हूँ॥६७-७५॥ ततो राजगृहं गंतुंचचाल सह संपदा । तया समं परां क्रीडां कुर्बन्नाना सुखोद्यतः ॥ ७६ ।। नागराः सेवकाः सर्वे तदा पुत्राः समुत्सुकाः । आगच्छतं परिज्ञाय बभूवुः सोद्यमाः शुभाः ।। ७७ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002771
Book TitleShrenika Charitra
Original Sutra AuthorShubhachandra Acharya
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy