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________________ ३७० चंद्रार्क हेमगिरि सागर भूविमान, Jain Education International गंगानदी गगन सिद्ध शिलाश्च लोके । तिष्ठति यावदभितो वरमर्त्यसेवास् श्रीशुभचन्द्राचार्यवर्येण विरचितम् तिष्ठतु कोविदमनोंबुजमध्यभूताः ।। १२५।। और शीघ्र ही हाथी पर विराजमान करेगा। उस समय ईशान इन्द्र भगवान पर छत लगायेगा । सनत्कुमार और माहेन्द्र दोनां इन्द्र चमर ढोरेंगे एवं सबके सब मिलकर आकाश मार्ग से मेरू पर्वत की ओर उसी क्षण चल देंगे। मेरू पर्वत पर पहुँच इन्द्र भगवान को पांडुक शिला पर बिठायेगा । उस समय देवगण एक हजार आठ कलशों से भगवान का अभिषेक करेंगे । इन्द्र उसी समय भगवान का नाम पद्मनाभ रखेगा। अनेक प्रकार भगवान की स्तुति करेंगे । और उस समय भगवान का रूप देख तृप्त न होता हुआ सहस्त्राक्ष होगा। बालक भगवान को इन्द्रानी अपनी गोद में लेगी और अनेक भूषणां से भूषित करेगी । भूषण भूषित भगवान उस समय सूर्य के समान जान पड़ेंगे और दुंदुभि आनक शंख काहलों के शब्दों के साथ नृत्य करते हुए, ताल के शब्दों से समस्त दिशापूर्ण करते हुए, लयपूर्वक राग सहित सरस गान करते हुए, और जय-जय शब्द करते हुए समस्त देव मेरु पर्वत पर भगवान के जन्मकाल का उत्सव मनायेंगे । पश्चात अनेक देवों से सेवित इन्द्र भगवान को गोद में लेकर हाथी पर विराजमान करेगा। अनेक शालि धान्ययुक्त, बड़ी-बड़ी गलियों से व्याप्त ध्वजायुक्त, अनेक मकानों से शोभित अयोध्यापुरी में आयेगा बड़े-बड़े नेत्रों से शोभित भगबान को पिता के सुपुर्द करेगा । मेरू पर्वत पर जो काम होगा इन्द्र उस सबको भगवान के पिता महापद्म से कहेगा । पिता माता के विनोदार्थ इन्द्र फिर नृत्य करेगा एवं भगवान को अनेक भूषण प्रदान कर और भगवान को भक्तिपूर्वक नमस्कार कर इन्द्र समस्त देवों के साथ स्वर्ग चला जायेगा । इस प्रकार समस्त देवों से पूजित भाँति-भाँति के आभरणयुक्त देह का धारक, अनेक गुणों का आकार बालक पद्मनाभ दिनोंदिन बकेता हुआ पिता माता का संतोष स्थान होगा। पद्मनाभ अमृत से परिपूर्ण अपने पाँव के अंगूठे को चूसेगा और पवित्र देह का धारकशुभ लक्षणों का स्थान वह कलाओं से जैसा चन्द्रमा बढ़ता चला जाता है वेसा ही शुभ लक्षणों से बढ़ता चला जायेगा । अतिशय पुण्यात्मा तीर्थंकर पद्मनाभ के शरीर की ऊँचाई सात हाथ होगी और आयु ११६ (एक सौ सोलह वर्ष की होगी । तीर्थंकर पद्मनाभ की स्त्रियाँ उत्तम अनेक गुणों 'भूषित सुवर्ण के समान कांति की धारक शुभ और यौवनकाल में अतिशय शोभायुक्त होंगी। भगवान वृषभदेव के जैसे भरत चक्रवर्ती आदि शुभ लक्षणों के धारक पुत्र हुए थे। वैसे ही तीर्थंकर पद्मनाभ के भी चक्रवर्ती पुत्र होंगे। तीर्थंकर वृषभदेव के ही समान तीर्थंकर पद्मनाभ राज्य करेंगे । नीतिपूर्वक प्रजा का पालन करेंगे और प्रजा वर्ग को षट्कर्म की ओर योंजित करेगे । तथा देश ग्रामपुर द्रोण आदि की रचना करायेंगे । वर्णभेद और नृपवंश भेद का निर्माण करेंगे। राजा लोगों को नीति की शिक्षा देंगे, व्यापार का ढंग सिखलायेंगे । और भोजनादि सामग्री की शिक्षा प्रदान करेंगे। इस रीति से भगवान पद्मनाभ कुछ दिन राज्य करेंगे पश्चात् कुछ निमित्त पाकर शीघ्र ही भवभोगां से विरक्त हो जायेंगे और सद्धर्म की ओर For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002771
Book TitleShrenika Charitra
Original Sutra AuthorShubhachandra Acharya
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size18 MB
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