SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 355
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३४२ श्रीशुभचन्द्राचार्यवर्येण विरचितम् दिये। हाथ के कंगन तोड़कर फेंक दिये। हाहाकार करती जमीन पर गिर गई और मछित हो गई। शीतोपचार से बड़े कष्ट से रानी को होश में लाया गया ज्यों ही रानी होश में आई तो उसे और भी अधिक दुःख हुआ। वह पति बिना चारों ओर अपना पराभव देख वह इस प्रकार विलाप करने लगी हा प्राणवल्लभ ! हा नाथ ! हा प्रिय ! हा कांत ! हा दयाधीश ! हा देव ! हा शुभाकर ! हा मनुष्येश्वर ! मुझ पापिनी को छोड़कर आप कहाँ चले गये? हाय ! मैं अशरण निराधार आपने कैसे छोड़ दी ? रनवास के (अन्तःपुर वास के) इस प्रकार रोने पर समस्त पुरवासी जन और स्त्रियाँ भी असीम रोदन करने लगीं । पश्चात् राजा कुणक ने महाराज का संस्कार किया। रानी चेलना द्वारा रोके जाने पर भी मिथ्यादृष्टि राजा कुणक ने “महाराज सीधे मोक्ष जावें" इस अभिलाषा से सर्वथा व्रतरहित ब्राह्मणों के लिये गौ, हाथी, घोड़ा, घर, जमीन, धन आदि का दान दिवा और भी अनेक विपरीत क्रिया की। कदाचित् रानी चेलना सानन्द बैठी थी अकस्मात् उसके चित्त में ये विचार उठ खड़े हुए कि यह संसार सर्वथा असार है तथा संसार से सर्वथा भयभीत हो वह इस प्रकार सोचने लगी ॥१०३-१६॥ पितुः स्नेहो न वि पुत्र सुतस्नेहो न तातके । सर्वे स्वार्थाधिसंरूढा मूढा भुवि भवंति वै ॥११७॥ यावत्स्वार्थं नरास्तावत्तिष्ठति भवनोदरे । विना स्वार्थ क्षणं नैकं यथा वृक्षे शकुंतकाः ।।११८॥ अस्थिरं जीवितं लोके न स्थिराः संपदोऽखिलाः । अस्थिरं यौवनं नैव स्थिरमैं द्रियकं सुखम् ।।११६॥ भुज्यमानेषु भोगेषु न तृप्तिर्देहिनां क्वचित् । अभिलाषस्य वृद्धि: स्यात् काष्टेनेव धनंजयः ।।१२०॥ तैलाद्धनंजयस्यैव सलिलाज्जलधेः क्वचित् । कथंचित्तृप्तिरेव स्यान्न भोगादिद्रियस्य च ॥१२१॥ याता यांति च यास्यतिनरा मुक्त्वा धनादिकं । कथं स्थास्यामि दीनाहं सुतमोहविडंबिता ॥१२२।। विषयानुभवाज्जीवैः समुपाय॑ च किल्विषं । गम्यतेनरके नूनं पातालपरिपूरिते ॥१२३।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002771
Book TitleShrenika Charitra
Original Sutra AuthorShubhachandra Acharya
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy