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________________ ३३८ श्रीशुभचन्द्राचार्यवर्येण विरचितम् जन्मदत्तिर्विशेषतः । तस्येत्यमुचितं तव ॥ ६३ ॥ राज्यदाता विशेषतः । प्रकुर्वते । राज्यदत्तिः कृता येन विद्यादत्तिः कृता तुभ्यं जनकं पूज्यते दक्ष विद्यादाता विशेषेण त्वयेत्थं किं विधीयते ॥ ६४ ॥ उपकारादृते संत उपकारं उपकारे कृते किं न कुर्वति प्रत्युत स्फुटं ॥ ६५ ॥ उपकारं कृतं येऽत्र न जानंति नरास्तके | अधमाकीर्त्तिता लोके नरयं यांतिनिश्चितं ॥ ६६॥ कृतघ्नाः कीर्त्तिता राजन् कृतं धनंति यकेनराः । कृतज्ञाः कथितास्तेत्र कृतं जानंति ये नराः ॥ ६७ ॥ नोचितं तव पुत्रेत्थ मतः पित्रादिबंधनम् | महापापकरं निद्यं याहि मुंचय पातकं ॥ ६८ ॥ किसी समय धर्म सेवनार्थ चिन्ता विनाशार्थं और सुखपूर्वक स्थिति के लिए पूर्व जन्म के मोह से महाराज ने समस्त भूपों को इकट्ठा किया और उनकी सम्मतिपूर्वक बड़े समारोह के साथ अपना विशाल राज्य युवराज कुणक को दे दिया। अब पूर्व पुण्य के उदय से युवराज कुणक महाराज कहे जाने लगे। वे नीतिपूर्वक प्रजा का पालन करने लगे और समस्त पृथ्वी उन्होंने चौरादिभय विवर्जित कर दी । कदाचित् महाराज कुणक सानन्द राज्य कर रहे थे अकस्मात् उन्हें पूर्वभव के वर का स्मरण हो आया। महाराज श्रेणिक को अपना वैरी समझ पापी हिंसक महा अभिमानी दुष्ट कुक ने मुनि कंठ में निक्षिप्त सर्पजन्य पाप के उदय से शीघ्र ही उन्हें काठ के पिंजरे में बन्द कर दिया । महाराज श्रेणिक के साथ कुणक का ऐसा बर्ताव देख रानी चेलना ने उसे बहुत रोका किंतु उस दुष्ट ने एक न मानी उल्टा वह मूर्ख गाली और ममं भेदी दुर्वाक्य कहने लगा। महाराज श्रेणिक को खाने के लिए वह रूखा-सूखा कोदों का अन्न देने लगा और प्रतिदिन भोजन देते समय अनेक कुवचन भी कहने लगा । महाराज श्रेणिक चुपचाप कीलोंयुक्त पिंजरे में पड़े रहते और कर्म के वास्तविक स्वरूप जानते हुए पाप के फल पर विचार करते रहते थे । Jain Education International किसी समय दुष्टात्मा पापी राजा कुणक अपने लोकपाल नामक पुत्र के साथ सानन्द भोजन कर रहा था। बालक ने राजा के भोजन पात्र में पेशाब कर दिया। राजा ने बालक के पेशाब की ओर कुछ भी ध्यान न दिया वह पुत्र के मोह से सानन्द भोजन करने लगा और उसी समय उसने अपनी माता से कहा For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002771
Book TitleShrenika Charitra
Original Sutra AuthorShubhachandra Acharya
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size18 MB
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