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________________ ३०८ श्रीशुभचन्द्राचार्यवर्येण विरचितम् स्थित्वा सप्तमनारकस्य विविधैः पापाढ्यजीवः परः । चायुः कर्मवित्तिभिर्युज इति प्रोद्भूतभावादिभिः ।। लब्ध्वा तीर्थपदस्य कारणपराः सद्भावना प्रोन्नतो। भूत्वा तीर्थकरस्य योग्यवृषभाग् रेजेसभायां नृपः ॥१६६॥ क्व नारकी सप्तमभूमिसंस्थितिः, __ क्व रत्नप्रभाप्राथमिके बिले स्थितिः । सुसन्मुखश्चेद्वष एक उन्नतः, करोति शर्म प्रगुणं नृणां सदा ॥१६७।। धर्मतो भवति पापसत्क्षितिर् धर्मतो भवति दुर्गतेः क्षतिः । धर्मतो भवति तीर्थनाथता, धर्ममेव कुरुतां च यत्नतः ॥१६८।। भगवान ! पुराण श्रवण से जैन धर्म में मेरी बुद्धि दृढ़ है। संसार नाश करने वाली श्रद्धा भी मुझमें है तथापि प्रभो ! मैं नहीं जान सकता मेरे मन में ऐसा कौन-सा अभिमान बैठा है। जिससे मेरी बुद्धि व्रतों की ओर नहीं झुकती। मगधेश के ऐसे वचन सुन गणनायक गौतम ने कहा राजन् ! भोग के तीव्र संसर्ग से गाढ़ मिथ्यात्व से मुनिराज के गले में सर्प डालने से दुष्चरित्र से और तीन परिग्रह से तूने पहले नरकायु बाँध रखी है इसलिए तेरी परिणती व्रतों की ओर नहीं झुकती। जो मनुष्य देव गति का बन्धन बाँध चुके हैं। उन्हीं की बुद्धि व्रत आदि में लगती है। अन्य गति की आयु बाँधने वाले मनुष्य व्रतों की ओर नहीं झुकते । नरनाथ ! संसार में तू भव्य और उत्तम है। पुराण श्रवण से उत्पन्न हुई विशुद्धि से तेरा मन अतिशय शुद्ध है। सात प्रकृतियों के उपशम से तेरे औपशमिक सम्यग्दर्शन था। अन्तर्मुहूर्त में क्षायोपशमिक सम्यक्त्व पाकर उन्हीं सात प्रकृतियों के क्षय से अब तेरे क्षायिक सम्यक्त्व की प्राप्ति हो गई है। यह क्षायिक सम्यक्त्व निश्चल अविनाशी और उत्कृष्ट है। ___ भव्योत्तम ! जिनेन्द्र द्वारा प्रतिपादित, पूर्वा पर विरोध-रहित शास्त्रों द्वारा निरूपित निर्दोष सात तत्वों का श्रद्धान सम्यग्दर्शन कहा गया है। इस सम्यग्दर्शन की प्राप्ति अतिशय दुर्लभ मानी गई है। संसाररूपी विष वृक्ष के जलाने में सम्यग्दर्शन के सिवाय कोई वस्तु समर्थ नहीं। सम्यग्दर्शन से बढ़कर संसार में कोई सुख भी नहीं और न कोई कर्म और तप है। देखोसम्यग्दर्शन की कृपा से समस्त सिद्धियाँ मिलती हैं। सम्यग्दर्शन की ही कृपा से तीर्थंकरपना और Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002771
Book TitleShrenika Charitra
Original Sutra AuthorShubhachandra Acharya
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size18 MB
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