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________________ द्वितीयः सर्गः नौमि पद्मश्रियं देवं पद्मनाभं जिनेश्वरम् । भावितीर्थं विशिष्टार्थं प्रतिपादकमीश्वरम् ॥ १ ॥ पद्म की शोभा को धारण करनेवाले जिनेश्वर तथा भविष्य में तीर्थों की प्रवृत्ति करनेवाले ईश्वर श्री महापद्मनाथ भगवान को मैं मस्तक झुकाकर नमस्कार करता हूँ॥१॥ तयोरथ महापुण्याच्छेणिकः सुखसन्ततिः । तनुजो जनितानेक सन्तोषः परमद्धिकः ॥ २ ॥ गुणायस्मिन् शुभं रूपं यस्मिन्नर्मल्यमुत्तमम् । यस्मिन् वर्तेत सौभाग्यं यस्मिल्लक्ष्मी परिग्रहः ।। ३ ।। यस्य मूनि कचारेजुः कामिनी मोहकारकाः । मुखपंकज सौगन्ध्यान्नागा इव समागताः ॥ ४ ॥ विस्तीर्णं सुन्दराकारं ललाटं तिलकाकुलम् । दिद्युते पट्टकं दत्त वेधसालिखनाय च ॥ ५ ॥ नेत्रविस्फारि राजेत नीलोत्पल दलायतम् । सीमंकृते घृतानाशा सुगंधाति सुलोलुपा ॥ ६ ॥ अनन्तर इसके उन दोनों राजा-रानी के महान पुण्य के उदय से, अनेक सुखों का स्थान, भले प्रकार माता-पिता को सन्तुष्ट करनेवाला, परम ऋद्धिधारक, श्रेणिक नाम का पुत्र उत्पन्न हुआ॥२॥ कुमार श्रेणिक में सर्वोत्तम गुण थे, उसका रूप शुभ और अतिशय निर्मल था। वह अत्यंत भाग्यवान और लक्ष्मीवान था ॥३॥ कुमार श्रेणिक के कामिनी स्त्रियों के मन को लुभानेवाले काले-काले केश ऐसे जान पड़ते थे मानो उसके मुख-कमल की सुगन्धी से सर्प ही आकर इकट्ठे हए हैं॥४॥ उसका विस्तीर्ण सुन्दर और अतिशय मनोहर तिलक से शोभित ललाट ऐसा मालम पड़ता था मानो ब्रह्मा ने तीनों लोक के आधिपत्य का पट्टक हो रचा है ॥५॥ बालक के दोनों नेत्र नीलकमल के समान विशाल अतिशय शोभित थे। दोनों नेत्रों की सीमा बाँधने के लिए उनके मध्य में अतिशय मधुर सुगन्धि को ग्रहण करनेवाली नासिका शोभित थी॥६॥ मुखचंद्रं स्फुरद्दीपं दोषाकर समन्वितम् । निर्दोषं च सदोद्योतं मुक्तं कलंक संपदा ॥ ७ ॥ तार हारकराकीर्णं विस्तीर्ण भार धारणात् ।। बभौ वक्ष स्थलं तस्य नाना शोभा समन्वितं ।। ८ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002771
Book TitleShrenika Charitra
Original Sutra AuthorShubhachandra Acharya
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size18 MB
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