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________________ श्रीशुभचन्द्राचार्यवर्येण विरचितम् उसके स्तन, अमृतकुम्भ के समान मोटे, कामदेव को जिलानेवाले, उत्तम हाररूपी सर्प से शोभित, दो कलशों के समान जान पड़ते थे ॥१०॥ और उसके उत्तम स्तनों के सम्बन्ध से मदन ज्वर तो कभी होता ही नहीं था ॥१०६॥ जैसे रसायन के खाने से ज्वर दूर हो जाता है वैसे ही उसके स्तनों के रसायन से मदन ज्वर भी नष्ट हो जाता था ।।१०७॥ तह इन्द्राणी अत्यन्त पवित्र, और नाना प्रकार की शोभाओं कर सहित, उपश्रेणिक राजा को आनन्द देती थी तथा वह राजा भी इस पटरानी के साथ सदा भोगविलासों को भोगता हुआ इस प्रकार परस्पर अतिशय प्रेमयुक्त, अत्यन्त निर्मल सुखरूपी सरोवर में मग्न, अत्यन्त पवित्र और महान, जिनके चरणों की वन्दना बड़े-बड़े राजा आकर करते थे, चारों ओर जिनकी कीति फैल रही थी, और समस्त प्रकार के दुःखों से रहित तथा पुण्य मूर्ति वे दोनों राजारानी इन्द्र के समान पुण्य के फलस्वरूप राज्य-लक्ष्मी को भोगते थे॥१०८-१०६॥ राजा उपश्रेणिक ने राज्य को पाकर उसे चिरकालपर्यंत भोग किया और समस्त पृथ्वी को उपद्रवों से रहित कर दिया, और उसके राज्य में किसी प्रकार के बैरी नहीं रह गये। उनके लिए ऐसे राज्य में महारानी इन्द्राणी के साथ स्थित होना ठीक ही था क्योंकि भव्य जीवों को धर्म की कृपा से ही राज्य सम्पदा की प्राप्ति होती है, धर्म से ही अनेक प्रकार के कल्याणों की प्राप्ति होती है, धर्म से उत्तमोत्तम स्त्रियाँ तथा चक्रवर्ती लक्ष्मी मिलती है और धर्म से ही स्वर्ग के विमानों के समान उत्तमोत्तम घर, आज्ञाकारी उत्तम पुन भी मिलते हैं, इसलिए भव्य जीवों को श्री जिनेन्द्र भगवान के सारभूत उत्कृष्ट धर्म की अवश्य ही आराधना करनी चाहिए ॥१११-११२॥ इस प्रकार भविष्यत्काल में होनेवाले श्री पद्मनाभ तीर्थंकर के पूर्वभव के जीव महाराज श्रेणिक के चरित्र में भट्टारक श्री शुभचन्द्राचार्य विरचित उपश्रेणिक को राज्य-प्राप्ति का वर्णन करनेवाला प्रथम सर्ग समाप्त हुआ। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002771
Book TitleShrenika Charitra
Original Sutra AuthorShubhachandra Acharya
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size18 MB
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