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श्रेणिक पुराणम्
सः ।
कपिलाया अपुत्रायाः कालनिर्गमनाय समर्पितस्तकेनाशु गृहीतश्च तया पुनः ॥ २८६ ॥ संज्ञा च व्यवहारं च सा शिक्षत मनोहरम् । तस्य दत्तसुनाम्नश्च पुत्र संकल्पभागिनः ॥ २८७॥ सुतोऽजनि तया दैवाद्दिनैः कतिपयैः पुनः । तौ दंपती मुदं प्राप्तौ मन्यमानौ सुसंभवं ॥२८८॥ दोलके शयनं तस्य कारयित्वा शिशोः सिका । नकुलस्य समशु बहिस्तंदुल खंडने ॥ २८६॥ सा योग्रास स्थिता तावद्बालकाभिमुखं परं । समात महिं वीक्ष्य नकुलस्तं युयोध च ॥ २६०॥ बलात्तौ क्रुद्धमानस्कौ फूचीत्कारपरायणौ । तौ युयुध्य चिरं नागं नकुलोऽमीमरंस्ततः ॥२६१॥
श्रक् लिप्तास्यं मुदा तस्या आगत्यादर्शयत्तदा । पंचत्वं मे सुतो नीतोऽनेन सा निश्चयं व्यधात् ॥२६२॥ ऋधा तं मुशलैः सा च व्याजघान मदोद्धता । ततो दोलास्थितं बालं विदारितभुजंगमं ॥ २६३॥ गृहे वीक्ष्य शुचा क्रांता विललाप चिरं हृदि । अविचारितकर्त्तव्यं तस्यायुक्तं न वा वणिक् ॥ २६४॥
२६६
इस लोक में एक पद्मरथ नाम का नगर है। किस समय पद्मरथ नगर में राजा वसुपाल राज्य करता था । कदाचित् राजा वसुपाल को अयोध्या के राजा जितशत्रु से कुछ काम पड़ गया इसलिए उसने शीघ्र ही एक चतुर ब्राह्मण उसके समीप भेज दिया । ब्राह्मण राजा की आज्ञानुसार चला। चलते-चलते वह किसी अटवी में जा निकला वह अटवी बड़ी भयावह थी । अनेक क्रूर जीवों से व्याप्त थी । कहीं पर वहाँ पानी भी नजर नहीं आता था । चलते-चलते वह भी थक चुका था । प्यास से भी अधिक व्याकुल हो चुका था इसलिये प्यास से व्याकुल हो वह उसी अटवी में किसी वृक्ष के नीचे पड़ गया और मूर्च्छित-सा हो गया । भाग्यवश वहाँ एक बन्दर आया । ब्राह्मण की वैसी चेष्टा देख उसे दया आ गई वह यह समझ कि प्यास से इसकी ऐसी दशा हो रही है, शीघ्र ही उसे एक विपुल जल से भरा तालाब दिखाया और एक ओर हट गया । ज्यों ही ब्राह्मण ने विपुल जल से भरा तालाब देखा तो उसके आनन्द का ठिकाना न रहा वह शीघ्र उसमें उतरा अपनी प्यास बुझाई और इस प्रकार विचार करने लगा । यह अटवी विशाल अटवी है। शायद आगे इसमें पानी मिले या न मिले इसलिये यहीं से पानी ले चलना ठीक है ।
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