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________________ २६२ श्रीशुभचन्द्राचार्यवर्येण विरचितम् वसुदत्ताभिधा जाया तस्य चित्तापहारिणी । एकदा चाषणे नीत्वा लाभं संहृत्य सोद्यतः ॥२३६।। क्षपायां सर्वमादाय गृहं पित्सति वैश्यकः । तावद्दस्युः पलाय्याशु श्रेष्ठिन: शरणं ययौ ।।२३७।। रक्ष रक्षेति मां नाथमार्यमाणं कृपाद॑धीः । इति वाचालमावीक्ष्य वस्त्रेण पिहितस्तकैः ।।२३८।। धावंत: कोट्टपालाश्च पप्रच्छु: श्रेष्ठिनं प्रति । स्थूलोन्नतोदरं मन्यमानाश्चौराद्यवर्त्तनं ।।२३६।। पिचंडिलं समावीक्ष्य परावर्त्य च ते गताः । तत्र क्रमेण तद्वित्तं गृहीत्वा तस्करो गतः ।।२४०।। दधौ चित्ते वणिग्नाथः किमनिष्टं मया कृतं । अस्यानेनेति किं कृतं यः खलः खल एव सः ।।२४१॥ योगिन्युक्तं न वा तस्यै तत्तदा वचनं जगौ । मुनिविश्वासघाती स चौरो नारकमार्गगः ॥२४२॥ नाथ ! यदि देवदत्ता ने ऐसा काम किया तो परम मूर्खा समझनी चाहिये । मैं अब आपको तीसरी कथा सुनाता हूँ कृपया उसे ध्यानपूर्वक सुनें। इसी लोक में एक अतिशय मनोहर एवं प्रसिद्ध बनारस नाम की नगरी है। किसी समय बनारस में कोई वसुदत्त नाम का सेठ निवास करता था। वसुबत्त उत्तम दर्जे का व्यापारी धनी था सूवर्ण निर्मित मकान में रहता था और बड़ा तुंदिल (बड़ी थोंदि का धारक) था। वसुदत्त की प्रिय भार्या का नाम वसुदत्ता था। वसुदत्ता बड़ी चतुर थी। विनयादि गुणों से अपने पति को संतुष्ट करने वाली थी। और मनोहरा थी। कदाचित् उसी नगरी में एक चोर किसी के घर में चोरी के लिये गया। उस समय उस घर के मनुष्य जग रहे थे इसलिये चोर को उन्होंने देख लिया। देखते ही चोर भगा। भागते समय उसके पीछे बहुत-से मनुष्य थे इसलिये घबराकर वह सेठ सुभद्रदत्त के घर में घुस गया और सुभद्रदत्त से इस प्रकार विनय वचन कहने लगा कृपानाथ ! मुझे बचाइये मैं मरा। चोर के ऐसे वचन सुन सुभद्रदत्त को दया आ गई। उसने चोर को शीघ्र ही अपने कपड़ों में छिपा लिया। कोतवाल आदि सेठजी के पास आये। सेठजी से चोर के बाबत पूछा भी तो भी सेठजी ने कुछ जबाब न दिया। जहाँ-तहाँ सभी ने चोर देखा कहीं दिखाई नहीं दिया किंतु सेठजी की बड़ी थोंदि के नीचे ही वह छिपा रहा। इसलिये वे सब Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002771
Book TitleShrenika Charitra
Original Sutra AuthorShubhachandra Acharya
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size18 MB
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