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________________ २४० श्रीशुभचन्द्राचार्यवर्येण विरचितम् भाई ! यदि तुझे इस कथा के सुनने की अभिलाषा है तो मैं कहती हूँ, तू ध्यानपूर्वक सुन इसी पृथ्वीतल में आनंदित जनों से परिपूर्ण मनोहर एवं आनंद का आकर एक आनंद नाम का नगर है। आनंद नगर में अक्षय संपत्ति का धारक कोई शिव शर्मा नामक ब्राह्मण निवास करता था। शिव शर्मा को प्रिय भार्या कमलश्री थी। कमलश्री अतिशय मनोहरा, सुवर्ण वर्णा एवं विशाल नेत्रा थी। शिव शर्मा के प्रिय भार्या कमलश्री से उत्पन्न आठ पुत्र-रत्न थे। आठों ही पुत्र इन्द्र के समान सुन्दर थे, भव्य थे और धन आदि से मत्त थे। उन आठों भाइयों के बीच में अकेली बहिन थी। मेरा नाम भद्रा था। माता-पिता का मुझ पर असीम प्रेम था। सदा वे मेरा सम्मान करते रहते थे। मेरे भाई भी मुझ पर परम स्नेह रखते थे। मैं अतिशय रूपवती और समस्त स्त्रियों में सारभूत थी। इसलिए मेरी भौजाई भी मेरा पूरा-पूरा सम्मान करती थी। पासपड़ोसी भी मुझ पर अधिक प्रेम रखते थे और मुझे शुभ नाम से पुकारते थे। मुझे तुंकार शब्द से बड़ी चिढ़ थी। इसलिए मेरे पिता ने राज-सभा में भी जाकर कह दिया राजन् ! मेरी पुत्री तुंकार शब्द से बहुत चिढ़ती है इसलिए क्या तो मंत्री, क्या नगर निवासी और बांधव कोई भी उसके सामने तुंकार शब्द न कहे। मेरे पिता के ऐसे वचन सुन राजा ने मुझे भी बुलाया। राजा की आज्ञानुसार मैं दरबार में गई। मैंने वहाँ स्पष्ट रीति से यह कह दिया कि जो मुझे तुंकारी शब्द से पुकारेगा राजाके सामने ही मैं उसके अनेक अनर्थ कर डालूंगी। तथा ऐसा कहकर मैं अपने घर लौट आई। उस दिन से सब लोगों ने चिढ़ से मेरा नाम तुंकारी ही रख दिया। और मैं क्रोधपूर्वक माता-पिता के घर रहने लगी॥७७-८६।। अथैकदा बने शुभे गुणसागरसन्मुनिम् । आटितं संपरिज्ञाया राजाद्या वंदितुं ययुः ॥ ८७ ॥ नत्वा योगीश्वरं सर्वे तस्थुस्तत्र वृषेच्छवः । मुनिवक्त्रात्ततो धर्मं शुस्र वुः सा तदायिनं ।। ८८ ।। यथायथं व्रतं सर्वे जग्रहुर्तिसिद्धये । तदा श्रेण्डिन्मया रम्यं गृहीतं श्रावकव्रतं ॥८६॥ विना तुंकारशब्देन विना कोपं मयाद्रुतम् । उररीकृतमेमात्र नियमादिकसद्वतम् ॥ १० ॥ आगत्य मंदिरे सर्वैरहं तस्थौ मदावहा । मदाष्टकै: समाकीर्णा भ्रात्रष्टकसमुद्भवैः ॥ ६१॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002771
Book TitleShrenika Charitra
Original Sutra AuthorShubhachandra Acharya
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size18 MB
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