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श्रेणिक पुराणम्
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पूजाय केचनोत्तं गा भव्याभव्यादि संपदः । कनत्कंकणनारीभिांति देवा इवोत्तमाः ॥ ३३ ॥ ककेचना जना यत्र निर्वेद कायकादिषु । आसाद्य निर्वृतिं यांति तत्र का वर्णना परा ॥ ३४ ।। तच्छास्ता मित्रनामाभूत्प्रतापत्रस्तशात्रवः । पत्नी कांतिकलाकीर्णा श्रीमती तस्य श्रीमती ॥ ३५ ॥ तयोः सुमित्र इत्याख्यस्तनयो मयनायकः । सविवेको विशालाक्षः सुपक्षो नीतिपंडितः ।। ३६ ।। मतिसागर नामाभून्मंत्री मंत्रविचक्षणः । दयिता तस्याभवन्नूनं रूपिणी रूपचंद्रिका ।। ३७ ॥ अजनिष्ट तयोः सूनुः सुषेणः सुखसंगतः । बुद्धिविज्ञानवेत्ता च राजमार्गे परार्थकृत् ।। ३८ ।। सुमित्रो मंत्रिपुत्रेण रमते क्रीड़नैः सदा । संतापयति भूभृज्जो मंत्रिपुत्रं कदाचन ॥ ३९ ॥ मदाष्टतः सुमित्रेण तापितोऽपि सुमंत्रिजः । न ब्रूते वचनं भीतः सहमानः समाधिजं ॥ ४० ॥
कृपासिंधो ! मैं परभव में कौन था? जिस योनि से मैं इस जन्म में आया हूँ ? कृपया मेरे पूर्वभव का विस्तारपूर्वक वर्णन कहें। इस समय मैं अपने भवांतर के चरित्न सुनने के लिए अति आतुर एवं उत्सुक हूँ। अति विनयी महाराज श्रेणिक के ऐसे वचन सुन मुनिराज ने कहा
राजन् ! यदि तुम्हें अपने चरित्र सुनने की इच्छा है तो तुम ध्यानपूर्वक सुनो, मैं कहता
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इसी लोक में लाख योजन चौड़ा, द्वीपों का सिरताज, अपनी गोलाई से चंद्रमा की गोलाई को नीचे करनेवाला जंबूद्वीप है। जंबूद्वीप में सुवर्ण के रंग का सुमेरु नाम का पर्वत है। सुमेरु पर्वत की पश्चिम दिशा में जो विजयाद्ध पर्वत से छह खंडों में विभक्त, भरत क्षेत्र है। भरत क्षेत्र में एक अति रमणीय स्थान जो कि स्वर्ग के निरालंब होने के कारण, पृथ्वी पर गिरा हुआ स्वर्ग का टुकड़ा ही है क्या ? ऐसी मनुष्यों को भ्रांति करनेवाला आर्यखंड है। आर्यखंड में अपनी कांति से सूर्य-कांति को तिरस्कृत करनेवाला, जगद्विख्यात, समस्त देशों का शिरोमणि सूर्यकांत देश है। सूर्यकांत देश में कुक्कुट संपात्य ग्राम है। मनोहर पुरुषों के चित्तों को अनेक प्रकार से आनन्द प्रदान करनेवाली उत्तमोत्तम स्त्रियाँ हैं। सर्वदा यह देश उत्तमोत्तम धान्य सोना-चाँदी आदि पदार्थों से शोभित, और ऊँचे-ऊँचे धनिक गृहों से व्याप्त रहता है। इसी देश में एक नगर जो कि
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