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________________ श्रेणिक पुराणम् १८५ चेलनाया गुरुः राजन्नयं चोद्भुतदेहकः । आकर्ण्यतिविकुप्याशु चिंतयामास मानसे ॥१५०॥ मद्गुरोरनया पूर्वमुपसर्गः कृतः खलु । राज्ञा ददामि तद्वैरं गुरोस्तद्वैरहानये ॥१५१॥ प्रशंस्य वचनै रम्यैर्मुमोच निजकुर्कुरान् । शतपंचप्रमान् दुष्टान् दीर्घदंष्ट्रान्हरिप्रमान् ॥१५२॥ ध्यानस्थं तं समासाद्य बभूवुः क्रोधवजिताः । चक्र : प्रदक्षिणां सर्वे सच्छ्रद्धा इव सन्नताः ॥१५३॥ नत्वा तत्पन्दपद्मांते तस्थुस्ते कीलिता इव । महामंत्रण नागा वा क्रु द्धाः कंपितविग्रहाः ॥१५४॥ रानी के इन युक्तिपूर्ण वचनों ने महाराज को अनुत्तर बना दिया। वे कुछ भी जवाब न दे सके।कित गरुओं का पराभव देख उनका चित्त शांत न हआ। दिनोंदिन उनके चित्त में ये विचार तरंगें उठती रहतीं कि इस रानी ने बड़ा अपराध किया है। मेरा नाम भी श्रेणिक नहीं जो मैं इसे बौद्ध धर्म की भक्त और सेविका न बना दूं। आज जो यह जिनेन्द्र का पूजन और उनकी भक्ति करती है सो जिनेन्द्र के बदले इससे बुद्धदेव की भक्ति कराऊँगा। तथा अशुभ कर्म के उदय से कुछ दिन ऐसे ही संकल्प-विकल्प वे करते रहे। कदाचित् महाराज को शिकार खेलने का कौतूहल उपजा। वे एक विशाल सेना के साथ शीघ्र ही वन की ओर चल पड़े। जिस वन में महाराज गये उसी वन में महामुनि यशोधर खड्गआसन से ध्यानारूढ़ थे। मुनि यशोधर परम ज्ञानी, आत्मस्वरूप के भली प्रकार जानकार एवं परम ध्यानी थे। उनकी आत्मा सदा शुभ योग की ओर झुकी रही थी अशुभ योग उनके पास तक भी नहीं फटकने पाता था। उनका मन सर्वथा वश में था। मित्र शत्रुओं पर उनकी दृष्टि बराबर थी। कालिक योग के धारक थे। समस्त मुनियों में उत्तम थे। अनंत अक्षय गुणों के भंडार थे। असंख्याती पर्यायों के युगपत् जानकार थे। दैदीप्यमान निर्मल ज्ञान से शोभित थे। भव्य जीवों के उद्धारक और उत्तम उपदेश के दाता थे। स्यादस्ति,स्यान्नास्ति इत्यादि अनेक धर्मस्वरूप जीवादि सप्त तत्त्व उनके ज्ञान में सदा प्रतिभाषित रहते थे। एवं बड़े-बड़े देव और इन्द्र आकर उनके चरणों को नमस्कार करते थे। महाराज की दृष्टि मुनि यशोधर पर पड़ी। उन्होंने पहले किसी दिगम्बर मुनि को नहीं देखा था इसलिए शीघ्र ही उन्होंने किसी पार्श्वचर से पूछा देखो भाई ! नग्न, स्नानादि संस्कार रहित एवं मुडमड़ाये यह कौन खड़ा है, मुझे शीघ्र कहो। पार्श्वचर बौद्ध था उसने शीघ्र ही इन शब्दों में महाराज के प्रश्न का जवाब दिया Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002771
Book TitleShrenika Charitra
Original Sutra AuthorShubhachandra Acharya
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size18 MB
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