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________________ १६६ श्रीशुभचन्द्राचार्यवर्येण विरचितम् जीवननाथ ! इस समय जो आप मुझे चिंतायुक्त देख रहे हैं। इस चिंता का कारण न तो आप हैं। और न कोई दूसरा मनुष्य है। इस समय मुझे चिंता किसी दूसरे ही कारण से हो रही है तथा वह कारण मेरा जैन धर्म का छूट जाता है। कृपानाथ ! जब से मैं इस राजमंदिर में आई हूँ एक भी दिन मैंने इसमें निर्ग्रन्थ मुनि को नहीं देखा! राजमंदिर में उत्तम धर्म की ओर किसी की दृष्टि नहीं। मिथ्या धर्म का अधिकतर प्रचार है। सब लोग बौद्ध धर्म को ही अपना हितकारी धर्म मान रहे हैं। किंतु यह उनकी बड़ी भारी भूल है क्योंकि यह धर्म नहीं कुधर्म है। जीवों को कदापि इससे सुख नहीं मिल सकता। रानी चेलना के ऐसे वचन सुन महाराज अति प्रसन्न हुए। उन्होंने इस प्रकार गम्भीर वचनों में रानी के प्रश्न का उत्तर दिया प्रिये! तुम यह क्या ख्याल कर रही हो? मेरे राजमंदिर में सद्धर्म का ही प्रचार है। दुनिया में यदि धर्म है तो यही है। यदि जीवों को सुख मिल सकता है तो इसी धर्म की कृपा से मिल सकता है। देख ! मेरे सच्चे देव तो भगवान् बुद्ध हैं। भगवान बुद्ध समस्त ज्ञान-विज्ञानों के पारगामी हैं। इनसे बढ़कर दुनिया में कोई देव उपास्य और पूज्य नहीं। जो पुरष उत्तम पुरुष हैं, अपनी आत्मा के हित के आकांक्षी हैं, उन्हें भगवान बुद्ध की ही पूजा-भक्ति एवं स्तुति करनी चाहिए। क्योंकि हे प्रिये ! भगवान बुद्ध की ही कृपा से जीवों को सुख मिलते हैं। और इन्हीं की कृपा से स्वर्ग-मोक्ष की प्राप्ति होती है। महाराज के मुख से इस प्रकार बौद्ध धर्म की तारीफ सन रानी चेलना ने उत्तर दिया ॥२५-२८॥ महिषी वचनं प्राह ततो राजन्नराधिप । जिनधर्म बिना धर्मोनाऽन्यो लोकत्रये मतः ।। २६ ।। नानाजंतुदयापूर्णः केवलज्ञानिभाषितः । धर्मो नाकं शिवं दत्ते राध्यमानो नरोत्तमैः ॥ ३० ॥ अष्टादशमहादोषकोशमुक्त: शिवप्रदः । केवलज्ञानने वाढ्यो देवो लोके विरागविट् ।। ३१ ।। तत्वं बाभाति जीवादिपरीक्षाक्षममुन्नतम् । जिनैरभाणि सन्माननयनिक्षेपनिश्चितम् ॥ ३२ ॥ कथंचिन्नित्यतारूढं स्यादनित्यं द्वयं तथा । स्यादवक्तव्यमित्यादिभंगरूढ मनंतयुक् ॥ ३३ ॥ सर्वथानित्यरूपादिहन्यमानं प्रमाणतः । तत्वमर्थक्रियाभावाद्विचारं सहते न च ॥ ३४ ॥ निग्रंथा साधवो जैना: शर्मादिगुणगुंठिताः । गुरवो रागमोहादिहंतारस्तपसान्विताः ॥ ३५ ॥ For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.002771
Book TitleShrenika Charitra
Original Sutra AuthorShubhachandra Acharya
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size18 MB
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