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________________ श्रीशुभचन्द्राचार्यवर्येण विरचितम् बलभद्र था कुमार के वचन से मारे हर्ष के उसका शरीर रोमांचित हो गया। उसने चट तुंबी के छिद्र से निकल आनंदपूर्वक भद्रा का हाथ पकड़ लिया। नकली बलभद्र की यह दशा देख सभा-भवन में बड़े जोर-शोर से हल्ला हो गया। सबके मुख से ये ही शब्द निकलने लगे कि यही नकली बलभद्र है। असली बलभद्र तो कोठरी के भीतर बैठा है। एवं अपनी विचित्र बुद्धि से अभयकुमार ने नकली बलभद्र को मार-पीटकर नगर से बाहर भगा दिया। और असली बलभद्र को कोठे से बाहर निकाल एवं उसे भद्रा देकर अयोध्या जाने की आज्ञा दी ।।७३-५१॥ अनीदृशी महाबुद्धिःसर्वदानंददायिका । अभये वर्त्तते नित्यमिति लोका जगुस्तदा ।। ८२॥ अन्यदा मुद्रिकां कूपे पतितां वीक्ष्य भूमिपः । जगावत्र स्थितः पुत्रानय वेण्वादिना विना ।। ८३ ॥ ततोऽभयो विमृश्याशु कूपे पानीयवजिते । चिक्षेप गोमयं तत्र निमग्ना मुद्रिका ततः ॥ ८४ ॥ शुष्कं गोमयमाजातं कालेन कियता पुनः । परिज्ञाय जलेनेमं पूरयामास भूपजः ॥ ८५॥ आकंठं पूरिते कूपे वारिणा तरितं तदा । तदंगीकृतं मूर्द्धस्थं तेन कूपस्य सापि च ॥८६॥ इत्यादि कौतुकं धीमान् दर्शयन्नखिले जने । रराज गुरुवत्प्राज्ञोऽभयः श्रेणिकपूजितः ।। ८७ ॥ कौतुकावलि विलोल मानसो मानवाधिपति पूजितांह्निकः । राजते रमितराजनंदनो नंदनोऽभयकुमार मंत्रिकः ॥ ८८ ॥ नानान्यायनिरस्तनीतिरहितो मार्गः सुमार्गः सुधीः । स्वर्गस्वर्गि सुवर्गसर्गसुगुरु प्रख्यः सुविख्यातमान् ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002771
Book TitleShrenika Charitra
Original Sutra AuthorShubhachandra Acharya
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size18 MB
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