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श्रीशुभचन्द्राचार्यवर्येण विरचितम्
नहीं सकते। अब तक जो हमारे जीवन की रक्षा हुई है, सो इसी कुमार की असीम कृपा से है । यदि यह कुमार न होता तो अब तक कब का हमारा विध्वंस हो गया होता। अबकी राजा ने कुमार को बुलाया यह बड़ा अनर्थ किया । हे ईश्वर ! हमने किस भव में ऐसा प्रबल पाप किया था । जिसका फल हम दुःख ही दुःख भोग रहे हैं। भो ईश्वर ! अब तो हमारी रक्षा कर । तथा इस प्रकार रोते-चिल्लाते हुए वे समस्त ब्राह्मण अभयकुमार की सेवा में गये । और ऊँचे स्वर से उनके सामने रोने लगे । विप्रों की ऐसी दुःखित अवस्था देख कुमार ने कहा
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ब्राह्मणो ! आप क्यों इतना व्यर्थ खेद करते हो । राजा ने जिस आज्ञा से बुलाया है । मैं वैसे ही जाऊँगा । मैं आप लोगों का पूरा-पूरा ख्याल रखूंगा। किसी तरह की आप चिंता न करें । तथा विप्रों को इस प्रकार धैर्य बँधाकर कुमार ने शीघ्र ही एक रथ मँगाया । और उसके मध्य में एक छींका बँधवाकर तैयार करवा दिया ।
जिस समय दिन समाप्त हो गया। दिन का अंत रात का प्रारंभ संध्याकाल प्रकट हो गया । कुमार ने राजगृह की ओर रथ हँकवा दिया। चलते समय रथ का एक चक्र (पहिया) मार्ग में चलाया गया और दूसरा उन्मार्ग में । कुमार ने चलते समय (हरिमंथक) चना का भोजन किया एवं छींके पर सवार हो कुमार अनेक विप्रों के साथ आनंदपूर्वक राजगृह नगर जा पहुँचे ॥१६८
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पौराश्च कामिनीचारा आजन्मादृष्टकौतुकम् । इतस्ततः पर्यटंत ईक्षं नृपदेहजम् ॥१७१॥ सायं ततो महाभूत्या मातामहसमं मुदा । अगमद्राजसमितौ कुमारो मार विभ्रमः ॥ १७२॥ ततो भूपं प्रणम्याशु समालिंग्य पुनः पुनः । सस्नेहं वचनालापं स चक्रे विनयान्वितः ॥१७३॥ दापयित्त्वा च विप्राणामभयं भयवर्जितः । अभयोभयसंरक्तो व्यक्त बुद्धिर्विचक्षणः ।। १७४।।
महाराज श्रेणिक के पुत्र अभयकुमार राजगृह आ गये । यह समाचार सारे नगर में फैल गया। समस्त पुरवासी लोग कुमार के दर्शनार्थ राजमार्ग पर एकत्रित हो गये । नगर की स्त्रियाँ कुमार को टकटकी लगाकर देखने लगीं। कुमार के आगमन - उत्सव में सारा नगर बाजों से गूंजने लग गया । बंदीगण कुमार की बिरदावली बखानने लगे । और पुरवासी लोग कुमार को देख उनकी भाँति-भाँति रीति से प्रशंसा करने लगे। इस प्रकार राजमार्ग से जाते हुए, पुरवासी जनों से भलीभाँति स्तुत, कुमार अभय राजमंदिर के पास जा पहुँचे । रथ से उतर कुमार ने अपने नाना इन्द्रदत्त के साथ राजसभा में प्रवेश किया । और सभा में महाराज को सिंहासन पर विराजमान देख अति विनय नमस्कार किया। महाराज के चरण स्पर्श किये । एवं प्रेमपूर्वक
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