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श्रीशुभचन्द्राचार्यवर्येण विरचितम्
इनके अतिरिक्त दूध हो ही नहीं सकता। यदि हो भी तो वह दूध नहीं कहा जा सकता। महाराज ने अब यह दूध नहीं मांगा है हम लोगों के प्राण मांगे हैं।
विप्रों के वचन सुन कुमार ने उत्तर दिया-आप क्यों घबराते हैं ? गाय, भैंस, बकरी आदि से अतिरिक्त का भी दूध होता है। मैं अभी उसे महाराज की सेवा में भिजवाता है। आप जरा धैर्य रखें। तथा ऐसा कहकर कुमार ने शीघ्र ही कच्चे धान्यों की बालें मँगवाईं। और उनसे गौ के समान ही उत्तम दूध निकलवाकर कई घड़े भरकर तैयार कराये। एवं वे घड़े महाराज श्रेणिक की सेवा में राजगृह नगर भेज दिये ॥११०-११५।।
आदिदेशान्यदाधीश इति तान् द्विजनायकान् । एक एव सुयोद्धव्यः कुर्कुटो मे समीपतः ।।११६।। कुमार बुद्धितो विप्रा जग्मूराजगृहम् पुरम् । सादर्शास्ते हसंतश्च गृहीत्वा चरणायुधम् ॥११७॥ ततो भूपति सांनिध्ये युयोध चरणायुधः ।। दृष्टतत्प्रतिबिंबोऽसौ मुकुरे क्रोधतस्तदा ॥११८॥ चरणाहतिमाकुर्वन् वक्त्रघातं च दर्पणे । वैरिणं मन्यमानः स स्थितं दीर्घ युयोध च ॥११६॥ दृष्ट्वा तदाननं भूभृद्विस्मितोऽभूत्स्वमानसे । दत्तोऽन्यदा निदेशस्तु विप्राणां भूभृता हठात् ॥१२०॥ बालुकावेष्टनं शीघ्रमानेतव्यं द्विजाधिपः । अन्यथा ग्रामतो नाशो भवतां नात्र विचारणा ॥१२१।।
दूध के भरे हुए घड़ों को देख महाराज आश्चर्य-समुद्र में गोता लगाने लगे। नन्दिग्राम के विनों की बुद्धिबल की ओर ध्यान दे उन्हें दांतों तले उंगली दबानी पड़ी। वे बार-बार यह कहने लगे कि नन्दिग्राम के विप्रों का बुद्धिबल है कि कोई बलाय है ? मैं जिस चीज को परीक्षार्थ उनके पास भेजता हूँ। फौरन वे उसका जवाब मेरे पास भेज देते हैं। मालूम होता है उनका बुद्धिबल इतना बढ़ा-चढ़ा है कि उन्हें सोचने तक की भी जरूरत नहीं पड़ती। अस्तु, अब मैं उन्हें अपने सामने बुलाकर उनकी परीक्षा करता हूँ। देखें, वे कैसे बुद्धिमान हैं ? तथा क्षणेक ऐसा अपने मन में दृड़ निश्चय कर महाराज ने शीघ्र ही एक सेवक को बुलाया। और उससे यह कहा-तुम अभी नन्दिग्राम जाओ और वहाँ के विप्रों से कहो कि महाराज ने यह आज्ञा दी है कि नन्दिग्राम के विप्र एक ही मुर्गे को मेरे सामने आकर लड़ावें। यदि वे ऐसा न करें तो नन्दिग्राम खाली कर चले जायें।
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